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यह है हल्दी घाटी की मिट्टी. मिट्टी का रंग पीला है हल्दी के जैसा

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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यह है हल्दी घाटी की मिट्टी. मिट्टी का रंग पीला है हल्दी के जैसा और इस लिये यह कहलाई हल्दी घाटी.
उदयपुर में सिटी पैलेस घूमते हुवे गाइड ने एक बहुत अच्छी बात बोली. उसने बताया मैंने दो घंटे में आपको पूरा महल दिखाया. अलग अलग राजाओं ने भव्य आभूषण बनवाये, महल बनवाये, महल का फर्नीचर बनवाया. आप पाँच सौ की टिकट ख़रीद यह देखने आते हैं, फ़ोटो खींचते हैं. लेकिन घर पहुँच तय है इनमें एक का नाम याद न रहेगा, नाम याद रहेगा महाराणा प्रताप का जो इस महल में एक दिन न रहे, नाम याद रहेगा हल्दी घाटी का जहां पहली बार अकबर को राजस्थान में हारना पड़ा.

भारत का दुर्भाग्य यह रहा कि आज़ाद भारत में भी इतिहास दिल्ली से बैठ कर ही लिखा गया. एक जनरल लॉजिक था हल्दीघाटी के युद्ध में आक्रमण अकबर ने किया था, महाराणा प्रताप पर. क्या इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने आत्म समर्पण किया? क्या अकबर महाराणा प्रताप का राज छीनने में सफल हुवे? इन सबका उत्तर न है. इन फैक्ट हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात राजपूतों का उत्साह बढ़ गया और महाराणा प्रताप के जीवन काल में ही वह अपना पूरा मेवाड़ का राज वापस पाने में सफल हुवे.

महाराणा प्रताप को आभास था कि मुग़लिया सल्तनत अपने इतिहास में इस शर्मनाक पराजय को जीत के रूप में दर्ज करेगी. आफ्टर आल मुग़लिया इतिहास लिखने वाले बादशाह के दरबारी भाँट होते थे. तो हल्दीघाटी की विजय के पश्चात् मेवाड़ में जश्न मनाया गया. खरसन गाँव में लक्ष्मी नारायण मंदिर में पत्थर के शीला लेख पर इतिहास दर्ज किया गया जिसमें स्पष्ट शब्दों में हल्दी घाटी का युद्ध, अकबर के सेनापति मान सिंह की वापसी और महाराणा प्रताप की विजय का लिखित प्रमाण है. पत्थर की विशेषता यह होती है कि कार्बन डेटिंग से आयु पता चल जाती है और यह माना गया कि यह शिला लेख सन् 1576 का ही है हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात.

ज़ाहिर सी बात थी अगर मुग़ल विजेता होते तो न जनता महाराणा की जीत का जश्न मना पाती, और कम से कम शिला लेख पर इस तरह इतिहास तो न ही लिखा जाता कि मुग़लों की हार हुई.

पिछले दस वर्षों में मिले इन विविध साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध हो चुका है कि हल्दी घाटी का युद्ध राजपूतों ने जीता था. हाँ अकबर की चाटुकारिता में लिखी आईने अकबरी में अबुल फैजल ने इसका उल्टा लिखा. आज़ाद भारत में भी उसी आइने अकबरी में लिखी चाटुकारिता को ज्यों का त्यों इतिहास का नाम दे दिया गया.
राजस्थान में अब इतिहास फिर से लिखा जा रहा है. वहाँ नवीन इतिहास में महाराणा की सेना को विजेता पढ़ाया जा रहा है.