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मधु मालती जी और ‘भूल-ग़लती’ का क़िस्सा…बेहद अँधेरे दिनों में भी हँसना ज़रूरी होता है!!
Kavita Krishnapallavi =============== · ( बेहद अँधेरे दिनों में भी हँसना ज़रूरी होता है I जीवन की विडम्बनाओं पर, त्रासदियों पर, अपने दुश्मनों पर, फ़ासिस्टों पर, नकली वामपंथियों पर, लिबलिब लिबरलों पर, कूपमंडूक “सद्गृहस्थों” पर दिल खोलकर हँसना चाहिए I हँसना ऊर्जस्वी और ताज़ादम बनाता है I इसलिए एकदम उन्मुक्तता और निर्मलचित्तता के साथ हँसना […]
‘मैं’ के संकीर्ण दायरे के बाहर की विस्तृत दुनिया…मीनू त्रिपाठी की #कहानी- वापसी
Saheli Magazine ============ #कहानी- वापसी “पापा, देखिए तो ज़रा किसका फोन है.” नैना की आवाज़ पर शरद ने बगल में बजते फोन का रिसीवर उठा लिया. “हेलो.” बोलते ही पहचानी-सी आवाज़ आई, “अंकल प्रणाम, नारायण बोल रहा हूं.” शरद अपने मथुरावाले घर के किराएदार नारायण की आवाज़ पहचान गए. कुछ कहते, उससे पहले ही नारायण […]
मैं अपनें आस पास जितने भी लोगों को देखती हूं उनमें बिलकुल शांत और ख़ुश मुझे कोई भी नहीं दिखाई पड़ता लेकिन…
मनस्वी अपर्णा =========== #थोड़ा_है_थोड़े_की_ज़रूरत_है जावेद अख़्तर साहब का एक बड़ा मशहूर शेर है उसी से अपनी बात शुरू करती हूॅं शेर कुछ यूं है..….. सबका खुशी से फासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है ये शेर और इसका मफहूम हमारी ज़मीनी हक़ीक़त है, मैं अपनें आस पास जितने भी […]