विशेष

‘यशोधरा का उपहार’

Vipassana Meditation & Wisdom
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शीर्षक – ‘यशोधरा का उपहार ‘
आर्य आप शाक्य वंश के पूर्ण गौरव।
भोग विलास के मध्य रह कर भी निर्लिप्त रहना,
अपार वैभव को सबके हित में त्याग देना,
आप ही से सीखा है अपने निज स्वार्थ का बलिदान करना।
आर्य मेरी विनती सुन आपने निशा में ही गमन किया,
मेरी अस्थिरता का मान कर राहुल से भी नहीं ली विदा।
चन्ना और कंठक को भी छोड़ की अनोमा पार,
हम सबको आपका यह निस्वार्थ त्याग है शिरोधार्य।
आर्य मुझे चिंता अपनी नहीं पर राहुल का बोध हो आता है,
माता पिता वृद्ध है उनकी स्थिति देख मन सहम जाता है।
हमारी राग की बेड़ियाँ और भय ही शायद हमारे दुखो का भार है,
संपूर्ण जगत की शांति हेतु यह अल्प त्याग यशोधरा का उपहार है।
आर्य, कभी ना देखी दुर्गम प्रयास की ऐसी तत्परता युगो में,
अस्वीकार कर चले रोग, जरा, मृत्यु, के विरासती दुष्चक्र को।
जब की संपूर्ण विश्व था लिप्त दुःख, आसक्ति और भोगमें,
आप धन्य है जो गए परम मुक्ति का मार्ग खोजने।
आर्य, बोधिसत्व बन अनेको बार अपने मुक्ति को अस्वीकारा,
कैसा अद्वितीय धैर्य जो असंख्य जन्मो में संगृहीत किया।
में साक्षी हुँ आपके शील और अति दुर्गम पुरषार्थ की,
आज परीक्षा है यशोधरा के त्याग और आपके परमार्थ की।
आर्य हर्षित है मन आज, आपकी अनंत शांत आभा देख।
महान बोधि और निर्वाण ही आपका सही अलंकार है,
आज आप प्रबुद्ध बन लौटे दिया वचन निभाने,
गहरी नींद में सोये दुखियरो को यथाभूत ज्ञान से जगाने।
आर्य आपके ह्रदय की संवेदनशीलता कैसी विशाल है।
हम आसक्त, लोभी, क्रोदियो के प्रति ये कैसा सहानुभाव है,
अबोध कैसे समझे उन करुणा के महान सागर को,
तिमिर से तिमिर की और अग्रसर, हमपर यह अज्ञान ही का प्रभाव है।
आर्य, राहुल ने पूछा मुझसे, पिता से क्या है कहना?
मैंने कहा अपने पिता से उनकी विरासत लेना।
आप ही वे पिता हैं जो दे सके पुत्र को धर्म सार,
आपने प्रवज्या व उपसम्पदा दे राहुल का किया उद्धार।


आर्य आपने दिखाया, स्त्री को अपना संपूर्ण स्वतंत्र अस्तित्व।
हमारे अज्ञान मे बनाये कर्म ही हमारे दुःख की है तैयारी,
अनंत काल से पुरुष, पिता, पुत्र की आश्रिता ही रही – नारी,
महान हैं बुध, जो कहें, स्त्री भोग्या नहीं, निर्वाण की है समान अधिकारी।। …… विशाल
Notes – मैथलीशरण जी द्वारा लिखी कविता ‘सखी वे मुझसे कह कर जाते’ अनूठी है पर क्या ये बुध और यशोधरा के जीवन की सही कहानी है? इस बात का निर्णय कैसे हो, स्कूलों में हम बच्चो को भी ये कविता सिखाई गई यशोधरा की व्यथा दिखाई गई पर बुध की उपलब्धि और उनके ज्ञान की चर्चा जरा भी नहीं. जिस सत्य की खोज सम्बुद्ध ने की उसे कही दबा दिया गया, इतिहास साक्षी है की किस तरह से बुध के नाम तक को मिटाया गया इस राष्ट्र से. अपने स्वार्थ मे अज्ञानियों ने बुध की महान खोज उनका दुखो से मुक्ति का “आर्य असटांगिक मार्ग” हम सब से छिपा दिया. दुःख मिटता तो भय मिटता, भय मिटता तो भगवान के नाम पर चल रही सांप्रदायिक दुकाने बंद हो जाती इसी मूर्खता के चलते बुध और उनकी खोज को षड्यंत्र करते हुए भारतवर्ष में खत्म किया गया.
लेकिन इन्ही सवालो के मध्य में यह यशोधरा की सही कहानी जो महान लेखक गुप्त जी की कविता का सौंदर्य तो नहीं पर सत्य प्रकट करने का प्रयास अवश्य करेगी!! यह स्त्री का सामान्य रुदन नहीं. यशोधरा असामन्य नारी है इसलिए पुरुष की दुर्लभ उपलब्धि के प्रतिउत्तर में यह कविता उनका मुदिता का भाव है.