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मोहब्बत की दुकान….ट्रेन आई और चली गई लाउडस्पीकर पर अनाउन्समेंट हुआ ज़रूर लेकिन….!!

Ritesh Tripathi Agyat

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रोज़ की तरह उस सुबह भी मार्गरेट अपने घर के नज़दीक के सबवे स्टेशन पहुँची और ट्रेन का इंतज़ार करने लगी हर लोकल ट्रेन के निकलने के बाद लाउडस्पीकर पर उसके महबूब पति ऑसवाल्ड की आवाज़ में एक अनाउन्समेंट होता था

यह 1 नवम्बर 2013 का दिन था
वह सुबह से ही ऑसवाल्ड को याद कर रही थी और उसकी पसंदीदा बेकरी से उसकी पसंदीदा डबलरोटी लेकर आई थी !
बेंच पर बैठी मार्गरेट इक्कीस साल पहले मोरक्को में की गई अपनी उस क्रूज़-यात्रा को याद करती हौले-हौले मुस्करा रही थी जब ऑसवाल्ड उसे पहली बार मिला था – ऑसवाल्ड लॉरेन्स जो कभी पेशेवर अभिनेता था पर बाद में करियर बदल कर क्रूज़ लाइनर में नौकरी करने लगा था. उसने करियर न बदला होता तो संभवतः दोनों की कभी मुलाक़ात भी न हो पाती – इस ख़याल ने उसकी मुस्कराहट को और चमका दिया !

ट्रेन आई और चली गई लाउडस्पीकर पर अनाउन्समेंट हुआ ज़रूर लेकिन ऑसवाल्ड की नहीं किसी दूसरे की आवाज़ में पिछले चवालीस सालों से वह अनाउन्समेंट ऑसवाल्ड की आवाज़ में होता आ रहा था और मार्गरेट की तरह लन्दन के उस स्टेशन के आसपास रहने वालों को उसकी आदत पड़ चुकी थी

अपनी गहरी दोस्ताना आवाज़ में ऑसवाल्ड अनाउन्समेंट करता – “लेडीज़ एंड जेंटलमैन…”
अचानक क्या हुआ कि ऑसवाल्ड की आवाज़ बदलनी पड़ गयी? – यह सवाल लेकर खिन्न मन से मार्गरेट स्टेशन इंचार्ज के पास गयी
उसे बताया गया नई पालिसी के तहत सभी सबवे स्टेशनों पर होने वाले अनाउन्समेंट डिजिटल बना दिए गए हैं जिनके लिए नई आवाजों का इस्तेमाल किया गया है पुराने अनाउन्समेंट टेप और कैसेट की मदद से होते थे ज़माने के साथ चलने के लिए ऐसा किया जाना ज़रूरी था !
1992 में मोरक्को में हुई पहली मुलाक़ात के बाद मार्गरेट और ऑसवाल्ड साथ रहे और 2003 में बाकायदा पति-पत्नी बन गए
मार्गरेट डाक्टर थी – डॉ. मार्गरेट मैककलम – और ऑसवाल्ड से बेपनाह मोहब्बत करती थी
अचानक 2007 में ऑसवाल्ड की मौत हो गई
इस असमय त्रासदी ने मार्गरेट को भीतर तक तोड़ डाला बेहद उदासी के दिनों में उसे अपने प्यारे की बहुत याद आया करती
एक दिन वह सबवे स्टेशन पर थी जब लाउडस्पीकर पर ऑसवाल्ड की आवाज़ गूंजी !

मार्गरेट जैसे नींद से जागी
उसे याद आया वे दोनों कई बार ऐसे ही ऑसवाल्ड की आवाज़ सुनने भर के लिए भी स्टेशन चले जाते थे
अब जब ऑसवाल्ड नहीं था, उसके साथ नज़दीकी महसूस करने के लिए वह सबवे स्टेशन तो आ ही सकती थी. पिछले पांच सालों से वह हर सुबह लन्दन के एम्बैंकमेंट स्टेशन पहुँचती और उसकी आवाज़ सुनती
इस तरह वह हर रोज़ ऑसवाल्ड के साथ कुछ पल बिता लिया करती थी !
मगर 1 नवम्बर की उस घटना ने उसे उदास और दुखी कर दिया था !
जब स्टेशन मास्टर ने कहा कि अनाउन्समेंट की आवाज़ बदलना सरकारी पालिसी का हिस्सा है और वे कुछ नहीं कर सकते तो मार्गरेट ने अनुरोध किया कि उसे अपने पति की आवाज़ का वह कैसेट दे दिया जाय जो पिछले चवालीस सालों से बजाया जा रहा था
शीघ्र ही उसकी यह इच्छा पूरी कर दी गई
लेकिन मार्गरेट ने इसके बाद भी स्टेशन जाना नहीं छोड़ा अपने महबूब के लिए अपनी मोहब्बत के इज़हार का यही एक तरीका उसे आता था !
मार्गरेट की कहानी ने स्टेशन मास्टर को भीतर तक विचलित कर दिया था
उसने पूरा वाकया अपने सीनियर्स को बताया
बात ऊपर पहुँची और मार्गरेट को एक खुशनुमा सरप्राइज़ देने का फैसला किया गया !
एक सुबह मार्गरेट के पास एम्बैंकमेंट स्टेशन के स्टेशन मास्टर का फोन आया, “मिसेज़ मैककलम, क्या आप आधे घंटे में यहाँ आ सकती हैं?”
मार्गरेट पहुँची तो उसने पाया स्टेशन के लाउडस्पीकर पर ऑसवाल्ड की वही पुरानी आवाज़ गूँज रही थी !
“बाकी लन्दन का तो हम नहीं कह सकते मिसेज़ मैककलम, लेकिन एम्बैंकमेंट के पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम से अब आपके पति की आवाज़ कभी नहीं हटाई जाएगी ”
कौन कहता है आज के ज़माने में लोग मोहब्बत करना भूल गए हैं !

मोहब्बत की दुकान
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यह बंद दुकान दीनानाथ की है जो इंडिया-पाकिस्तान बटवारे के वक़्त बहुत अफसोस के साथ इस दुकान को पाकिस्तान छोड़कर इंडिया चले आए लेकिन जाते वक्त बहुत रोए ओर पूरे गांव को भी रुलाया।फिर गाँव के लोगों को यह दिलासा दिलाया कि मैं वापिस आप लोगों के पास लौट कर आऊँगा। पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रोविंस के जिला लोरा लाई में मौजूद इस दुकान पर अभी तक वही ताला लगा है जो दुकानदार दीनानाथ जी जाते वक्त लगाकर चाबी अपने साथ ले गया थे। 73 साल से यह दुकान बंद पड़ी है। पाकिस्तानी मकान मालिक जो अब इस दुनियाँ में नही रहा उसने एक कदम आगे बढाते हुए वसीयत कर दी कि इस दुकान का ताला तोड़ना नही जब तक दुकानदार बापिस नहीं आता।इस दुकान के मालिक के मरने के बाबजूद उसके बच्चों ने भी इसका ताला नहीं तोड़ा।वसीहत में लिखा कि मैंने उस दुकानदार को जबान दी है कि यह दुकान तुम्हारे आने तक बन्द रहेगी। मकान मालिक की औलादों ने आज तक उस ताले को हाथ तक नही लगाया।हालाँकि उन्हें मालूम है की दुकानदार यानी दीनानाथ जी इस दुनियाँ में नही रहे लेकिन वफ़ा की यादगार के तौर पर अब तक यह दुकान दो इंसानों के बीच यादगार की मिसाल बन गई है।कमाल के बंदे थे दोनों-मकान मालिक ते दुकानदार।इंसानों के बीच इतना प्यार ! फिर नफ़रतें कहाँ से आ गई ? कौन ले आया ?
विनय शर्मा एडवोकेट
हिमाचल हाई कोर्ट शिमला
पूर्व डिप्टी एडवोकेट जनरल
हिमाचल सरकार
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