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#मोरबी पुल हादसा : 141 मौतों पर ऐसा सन्नाटा पहले कभी नहीं दिखा, #गुजरात हाईकोर्ट ने लगाई फटकार : रिपोर्ट

गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार को लगातार दूसरे दिन मोरबी पुल हादसे में स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मोरबी नगर पालिका को फिर आड़े हाथों लिया है। नगर पालिका ने दो नोटिसों के बावजूद 141 लोगों की मौत की घटना पर अब तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल नहीं की है।

एनडीटीवी के अनुसार, कोर्ट ने कहा, ‘कल आप चालाक बन रहे थे और आज मामले को हल्के में ले रहे हैं. इसलिए या तो बुधवार शाम तक अपना जवाब दायर करें या एक लाख रुपये का जुर्माना भरें।’ इसके जवाब में नगर पालिका ने दावा किया कि देरी के लिए निकाय के प्रमुख- डिप्टी कलेक्टर ज़िम्मेदार हैं, जिनकी चुनाव में ड्यूटी लगी हुई है। लाइव लॉ के मुताबिक़, नगर पालिका के वकील ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए 24 नवंबर तक का समय मांगा था, जिससे चीफ़ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की पीठ ने इनकार कर दिया। इससे पहले मंगलवार को अदालत ने नोटिस दिए जाने के बावजूद सुनवाई में अधिकारियों के उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगाई थी। साथ ही राज्य सरकार से पूछा था कि ब्रिटिश काल की इस संरचना के संरक्षण एवं संचालन के लिए किस आधार पर रुचि पत्र (letter of interest) के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और बिना निविदा निकाले ही किसी व्यक्ति विशेष पर ‘कृपा क्यों की गई?’


ज्ञात हो कि बीते 30 अक्टूबर को गुजरात के मोरबी शहर में माच्छू नदी पर बने केबल पुल के अचानक टूटने से क़रीब 141 लोगों की मौत हो गई थी। पुल के रखरखाव, रेनोवेशन व संचालन का ठेका भारतीय जनता पार्टी के क़रीबी माने जाने वाले ओरेवा समूह की अजंता मैन्युफैक्चरिंग के पास था। मंगलवार को स्वत: संज्ञान के आधार पर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने जानना चाहा था कि क्या राज्य सरकार ने अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (ओरेवा समूह) के साथ 16 जून, 2008 के समझौता ज्ञापन (एमओयू) और वर्ष 2022 के समझौते में फिटनेस प्रमाणपत्र के संबंध में किसी तरह की शर्त लगाई थी, यदि ऐसा था तो इसे करने के लिए सक्षम प्राधिकार कौन था? मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री ने कहा था, ‘यह समझौता सवा पन्ने का है जिसमें कोई शर्त नहीं है। यह समझौता एक ‘सहमति’ के रूप में है। राज्य सरकार की यह उदारता 10 साल के लिए है, कोई निविदा नहीं निकाली गई, किसी तरह की रुचि की अभिव्यक्ति (expression of interest) नहीं है।’

इस बीच अदालत ने पूछा, ‘15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बाद राज्य सरकार और मोरबी नगर पालिका द्वारा निविदा निकालने के लिए कौन से क़दम उठाए गए? क्यों अभिव्यक्ति की रुचि के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और कैसे बिना निविदा निकाले किसी व्यक्ति विशेष पर कृपा की गई।’ अदालत ने कहा कि 15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बावजूद अजंता (ओरेवा समूह) को पुल के रखरखाव और प्रबंधन का काम बिना किसी समझौते के जारी रखने के लिए कहा गया। कंपनी के साथ वर्ष 2008 में एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे जिसकी अवधि वर्ष 2017 में समाप्त हुई। उच्च न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या यह अवधि समाप्त होने के बाद संचालन और रखरखाव के उद्देश्य से निविदा निकालने के लिए स्थानीय प्राधिकारियों ने कोई क़दम उठाए? नगरपालिका के दस्तावेज़ों के अनुसार, मोरबी में घड़ी और ई-बाइक बनाने वाली कंपनी ‘ओरेवा ग्रुप’ को शहर की नगर पालिका ने पुल की मरम्मत करने तथा संचालित करने के लिए 15 साल तक का ठेका दिया था। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ओरेवा समूह ने यह ठेका एक अन्य फार्म को दे दिया था, जिसने रेनोवेशन के लिए आवंटित दो करोड़ रुपये में से मात्र 12 लाख ख़र्चे थे। इस बीच जानकारों का कहना है कि 141 लोगों की मौत पर जिस अंदाज़ और धीमी रफ़्तार से कार्यवाही हो रही है उससे यह आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार इस घटना को चुनाव को मद्देनज़र रखकर कार्यवाही कर रही है ताकि भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में इससे नुक़सान न हो। वहीं चुनाव के लिए 141 मृतकों और उनके परिवार वालों के साथ बेइंसाफ़ी शर्म की बात है।