सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यों वाली बेंच ने बुधवार को न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ को रिहा करने का आदेश दिया है.
जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने ये भी कहा कि पुरकायस्थ की गिरफ़्तारी और उसके बाद उन्हें हिरासत में रखे जाना क़ानून की नज़र में अवैध था.
अदालत ने ये भी कहा कि पुरकायस्थ की गिरफ़्तारी के समय ये नहीं बताया गया कि इसका आधार क्या था. इसकी वजह से गिरफ़्तारी निरस्त की जाती है.
कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत द्वारा तय की गई मुचलके की राशि को जमा करने के बाद प्रबीर पुरकायस्थ को जेल से रिहा किया जा सकता है.
पुरकायस्थ को बीते साल अक्तूबर में चीन से अवैध फ़ंडिंग लेने के आरोपों में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
प्रबीर के वकील ने क्या कहा
प्रबीर पुरकायस्थ के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी थी कि उनके मुवक्किल को हिरासत में लिए जाते समय गिरफ़्तारी का आधार नहीं बताया गया था, जबकि इसकी जानकारी लिखित में दी जानी चाहिए थी.
हालांकि, दिल्ली पुलिस की ओर से एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि पुरकायस्थ को बताया गया था कि उनकी गिरफ़्तारी किन आधारों पर की गई है.
उन्होंने कहा कि लिखित में इसकी जानकारी देना यूएपीए के तहत अनिवार्य नहीं है.
वकील अर्शदीप खुराना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ़्तारी और रिमांड की प्रक्रिया को ग़ैर-क़ानूनी माना है और पुरकायस्थ की रिहाई के निर्देश दिए हैं.
उन्होंने कहा, “हमें ट्रायल कोर्ट के आगे ज़मानत का बॉन्ड भरने का निर्देश दिया गया है. यह बहुत बड़ी राहत है क्योंकि हम शुरुआत से कह रहे हैं कि उनके ख़िलाफ़ पूरी प्रक्रिया ग़ैर-क़ानूनी है और उन्हें जिस तरह से गिरफ़्तार किया गया उसे सुप्रीम कोर्ट ने भी ग़ैर-क़ानूनी माना है.”
अब आगे क्या?
प्रबीर पुरकायस्थ अब ट्रायल कोर्ट के आगे पेश होंगे जो कुछ शर्तें तय करेगा. ये इसलिए होगा ताकि जिस शख़्स पर आरोप है वो ट्रायल में शामिल हो और इससे भागे नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी माना है कि पुरकायस्थ को बिना किसी शर्त के रिहा किया जाए. हालांकि इस मामले में उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हो चुकी है.
क्या वो दोबारा गिरफ़्तार होंगे?
इसकी संभावना बेहद कम है कि उन्हें दोबारा गिरफ़्तार किया जाए क्योंकि एक बार गिरफ़्तारी को ख़ारिज कर दिया गया तो अभियुक्त को दोबारा गिरफ़्तार नहीं किया जाता.
पुरकायस्थ के वकील कपिल सिब्बल ने उनकी दोबारा गिफ़्तारी को लेकर शंका जताई जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा कि शर्तें तय करते समय इस शंका का भी ध्यान रखा जाए.
कोर्ट ने कहा, “आदेश में जहां ज़मानत बॉन्ड भरने को कहा गया है वहां शंका का ध्यान रखा जाए.”