साहित्य

मैं समझ गई कि नौकरी और घर संभालने में बहुत अंतर होता है

Madhu Singh
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जब मेरी शादी हुई, तो मैं घर की बड़ी बहू बनी। मेरे बाद मेरी दो देवरानियाँ आईं। मैं पढ़ाई में उनसे कम थी और नौकरी भी नहीं करती थी, लेकिन वे दोनों मुझसे अधिक शिक्षित और आधुनिक थीं। मुझे खुशी थी कि घर में दो मॉडर्न देवरानियाँ आने वाली थीं। मैं अपने देवरों से कहती, “आप लोगों के साथ नहीं, पर दोनों देवरानियों के साथ मैं अपने सारे शौक पूरे करूंगी।” यह सुनकर वे शरमा जाते थे।

शादी के बाद, मैंने देखा कि मेरी देवरानियाँ पढ़ी-लिखी और नौकरीपेशा थीं, लेकिन घर के कामों में वे हाथ बँटाने में रुचि नहीं दिखाती थीं। मेरी सास और मैं उम्मीद करती थीं कि नई बहुएँ घर के काम में थोड़ा हाथ बँटा दें। मैंने कई बार अपनी देवरानी प्रिया से कहा, “प्रिया, मैं और माताजी दिन भर रसोई में रहते हैं। माताजी तुमसे उम्मीद कर रही हैं कि शाम को तुम घर का कुछ काम कर दो।” प्रिया ने उत्तर दिया, “भाभी, दिन भर ऑफिस में काम करने के बाद शरीर में इतनी ऊर्जा नहीं बचती कि घर का काम किया जा सके। और वैसे भी आप तो हैं ही घर में, तो क्या दिक्कत है।”

मैं समझ गई कि नौकरी और घर संभालने में बहुत अंतर होता है। मैं अपने काम में लग गई और हर दिन सुबह उठकर सबका नाश्ता, टिफिन पैक करने में व्यस्त रहती।

फिर 2021 में कोविड की लहर आई और मेरे पति और देवर दोनों इसकी चपेट में आ गए। उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। मेरी देवरानी अपने पति को अपने मायके ले गई और वहाँ प्राइवेट डॉक्टर से इलाज कराने लगी। मेरे पति की स्थिति बिगड़ने लगी, जबकि देवर की स्थिति सुधर रही थी। मैंने देवरानी से कहा, “भाभी, जीजाजी को भी इन्हीं डॉक्टर को दिखाते हैं, शायद वे ठीक हो जाएँ।” देवरानी ने उत्तर दिया, “दीदी, डॉक्टर एक दिन का 3000 लेता है, 2000 की दवाइयाँ हैं और 2000 का ऑक्सीजन सिलेंडर। क्या आप ये सब खर्चे देख लेंगी?”

यह सुनकर मुझे अहसास हुआ कि मैं ये खर्च कैसे उठाऊँगी। मेरे पास तो आय का कोई स्रोत ही नहीं था। भगवान की कृपा से मेरे पति और देवर दोनों ठीक हो गए और घर वापस आए। देवरानी का ऑफिस भी एक महीने बाद खुल गया। सुबह उठकर उन्होंने मुझसे कहा, “भाभी, आज लंच बना दीजिएगा, ऑफिस खुल गया है।” मैंने जल्दी-जल्दी सब बनाया। जब वे ऑफिस जाने लगीं, तो मुझसे टिफिन माँगा। मैं देने जा रही थी, तभी पिताजी की आवाज़ आई, “सुमन बेटी, रुको।” मैंने पूछा, “क्या हुआ पिताजी?” उन्होंने कहा, “अगर इन्हें लंच ले जाना है तो ये खुद बनाएँ। कल से ये जल्दी उठें और अपना लंच बनाकर ले जाएँ।”
शाम को जब हम सब खाने पर बैठे, तो पिताजी ने फिर से अपना फैसला सुनाया। मेरे पति ने पूछा, “पिताजी, आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?” पिताजी ने जवाब दिया, “तुम्हारी पत्नी दिन भर काम करती है, सुबह 9 से रात 9 बजे तक। बदले में उसे क्या मिलता है? कुछ नहीं। छोटी बहू भी काम करती है, 11 से 6 बजे तक, बदले में उसे पैसे मिलते हैं। लेकिन ये पैसे वह सिर्फ अपने और अपने पति पर खर्च करती है। बड़ी बहू को घर के काम के बदले कुछ नहीं मिलता, फिर भी वह निस्वार्थ भाव से सबके लिए खाना बनाती है, लंच पैक करती है। अगर यह सब काम न करे तो मुझे नहीं लगता कि छोटे बेटे और बहू ठीक से पैसे कमा पाएँगे।”

पिताजी ने आगे कहा, “अगर तुम चाहती हो कि यह तुम्हें खाना दे, तुम्हारी हिस्से की गृहस्थी भी संभाले, तो अपने वेतन का आधा हिस्सा इसे भी दो ताकि कल को ज़रूरत पड़े तो यह किसी के सामने हाथ न फैलाए।”

इस दिन के बाद से देवरानी को बात समझ आई और मुझे आधी तनख्वाह देने लगीं। पिताजी के इस कदम से छोटी बहू संतुष्ट हो गई क्योंकि उसे पता था कि ऑफिस में कुछ भी हो जाए, घर देखने वाला कोई तो है। और मैं संतुष्ट हूँ क्योंकि अब किसी आर्थिक ज़रूरत के लिए मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं है।

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि परिवार में हर सदस्य की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और हमें एक-दूसरे की मदद करने और समानता बनाए रखने की आवश्यकता है।
राधे राधे 🙏🙏🙏