साहित्य

मैं भिखारी नही हूँ, मैडम जी कुछ खाने को दे दो बच्चे दो दिन से भूखे है….

मैं भिखारी नही हूँ, मैडम जी कुछ खाने को दे दो बच्चे दो दिन से भूखे है !” निया के दरवाजे पर आई एक महिला बोली जिसके साथ मे दो छोटे बच्चे भी थे।
” भीख मांगते शर्म नही आती जब खिला नही सकते बच्चो को तो पैदा क्यो करते हो !” फोन मे लगी निया ने उस महिला को झिड़का।

” मैडम जी मैं भिखारी नही बस मजबूरी है माँ हूँ ना बच्चो को भूखा नही देख सकती इसलिए आज हाथ फैला दिया !” वो महिला भरे गले से बोली।
“कौन है निया बेटा ?” तभी एक सभ्रान्त महिला दरवाजे पर आई और पूछा।

” भिखारी है माँ और कौन होगा आप देखो इसे जरा भगाओ जल्दी से पता नही कहा से माँगने आ जाते है !” निया ये बोल फिर फोन पर लग गई। निया की माँ ने देखा दरवाजे पर आई महिला किसी नजर से भिखारी नही लग रही । लगता है कोई मजबूरी होगी बेचारी की। उन्होंने मन मे सोचा
” निया ये कौन सा तरीका है दरवाजे पर आये किसी इंसान को यूँ झाड़ू नही मारना चाहिए ( अपमानित नही करना चाहिए ) भले वो भिखारी क्यो ना हो। ईश्वर ने हमें साधन सम्पन्न बनाया है तो हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए ना की उनका अपमान !” उन्होंने निया से कहा और उस महिला और उसके बच्चो के लिए खाने को लाई । वो अपने दोनो बच्चो को अपने हाथ से खिलाने लगी । बच्चो का पेट भरते देख उसके चेहरे पर चमक आ गई।

” मैडमजी हम भिखारी नही है वो तो हमारा मर्द दो महीने पहले गाडी के नीचे आकर मर गया । उसके बाद हमने काम की बहुत तलाश की पर लोग हमें गलत नज़र से देखते है या दुत्कार कर भगा देते है । अब जो कुछ हमारे पास था सब खत्म हो गया तो बच्चो को भूखा नही देख पाए और माँगने निकल पड़े !” वो औरत बच्चो को खाना खिलाने बाद बोली।

” देखो तुम्हे काम की तलाश है मुझे एक कामवाली की अगर तुम चाहो मेरे यहाँ काम कर सकती हो जिससे कोई तुम्हे यूँ झाडू ना मार सके। पर पूरी ईमानदारी से काम करना मैं तुम्हे पैसे और रहने को एक कमरा दूँगी जिससे तुम्हारे बच्चे तुम्हारे पास रहे बोलो मंजूर है ? पर हाँ उससे पहले कल मैं तुम्हारा पुलिस सत्यापन करवाउंगी तुम तो जानती हो जमाना कितना खराब है और तुम मेरे लिए अजनबी हो । ” निया की माँ उससे बोली।

” हां हां मैडम जी मुझे सब मंजूर है और मैं पूरी ईमानदारी से काम करूंगी आप तो हमें इज्जत से रोटी कमाने का मौका दे रही है मैं आपको शिकायत का कोई मौका नही दूँगी !” वो महिला खुश होते हुए बोली।
संगीता अग्रवाल