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“मैं जेल में सोचता था कि सरकार मुझसे क्यों डरती हैं? जबकि मैं 90% विकलांग हूं”, नहीं रहे ”साईबाबा”, मोदी सरकार ने उन्हें नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप में 10 साल जेल में रखा!

Hansraj Meena
@HansrajMeena
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“मैं जेल में सोचता था कि सरकार मुझसे क्यों डरती हैं? जबकि मैं 90% विकलांग हूं।”

जी.एन. साईबाबा एक समर्पित शिक्षक, नागरिक अधिकारों के योद्धा और लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षक थे। समाज के वंचित और हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों के लिए उनका संघर्ष अनुकरणीय था। पाँच साल की उम्र में पोलियो के कारण व्हीलचेयर पर सीमित रहने के बावजूद, उन्होंने साहस और दृढ़ संकल्प का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में उनका व्यक्तित्व बौद्धिकता और इंसानियत का प्रतीक था, लेकिन माओवादी होने के आरोपों के चलते उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया गया।

मोदी सरकार ने उन्हें नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप में 10 साल जेल में रखा, हालांकि कोई भी एजेंसी इन आरोपों को साबित नहीं कर पाई। मार्च में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था। प्रो. साईबाबा शारीरिक रूप से असक्त थे, लेकिन उनकी वैचारिक दृढ़ता अतुलनीय थी। इसी प्रतिबद्धता के कारण उन्हें लगभग आठ वर्षों तक जेल में रहना पड़ा। सत्ता ने राम रहीम जैसे अपराधियों को पैरोल देकर खुला घूमने का मौका दिया, लेकिन प्रो. साईबाबा को उनकी माँ की मृत्यु पर भी पैरोल नहीं दी गई। वह दुर्दांत अपराधी नहीं, बल्कि एक समर्पित शिक्षक थे, जिन्हें उनकी शारीरिक जटिलताओं और बीमारियों के बावजूद जेल की अंडा सेल में रखा गया।

उनकी वैचारिकता से सत्ता भयभीत थी, और इसलिए उनकी तकलीफों की अनदेखी की गई। लंबी जद्दोजहद के बाद उन्हें जमानत पर रिहाई मिली। अब, उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है, और उनके शरीर को मानवता की बेहतरी के लिए शोध के लिए मेडिकल कॉलेज को दान किया जाएगा। उनके योगदान और साहस को सलाम करते हुए, हम कॉमरेड जी.एन. साईबाबा को आखिरी लाल सलाम देते हैं। आपकी प्रेरणा और संघर्ष हमेशा जीवित रहेंगे!

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार/जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है