साहित्य

‘मैं इतनी तरह के अपमान सहता रहा, जिनकी गिनती करना कठिन है, सिर्फ़ इसलिए कि….हत्यारों और सौदागरों का लोकतंत्र…

Kavita Krishnapallavi
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‘मैं इतनी तरह के अपमान सहता रहा, जिनकी गिनती करना कठिन है : सिर्फ़ इसलिए कि मेरी कविता सस्ती होकर एक रिरियाहट बनने से बची रहे।’
~ पाब्लो नेरुदा
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हिन्दी कविता के परिदृश्य के सन्दर्भ में,
‘यश की कामना और अमरत्व के लिए
मैंने इतनी तिकड़में कीं, इतनी जुगत भिड़ाई,
इतनी तरह के अपमान सहे
जिनकी गिनती करना कठिन है।
मिली तो प्रसिद्धि, पुरस्कार भी मिले
लेकिन मेरी कविता
बस रिरियाहट बनकर रह गयी।’

Kavita Krishnapallavi
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हत्यारों और सौदागरों का लोकतंत्र और कला-साहित्य के मेले
फिर सत्तासीन हत्यारों और सौदागरों ने
बार-बार एक-दूसरे को हृदय से धन्यवाद कहा।
इसके बाद हत्यारों ने सौदागरों से कहा,
“अब कला-साहित्य-संस्कृति का एक रंगारंग मेला लगाओ
और एक भव्य मंच सजाओ
और वहाँ अपने लोगों के साथ कुछ
जनवादियों और प्रगतिशीलों को भी बुलाओ।”
फिर ऐसा ही हुआ और कुछ जनवादी और प्रगतिशील भी
पहुँचे उस साहित्यिक महाकुम्भ में।
उन्होंने वीरतापूर्वक निहायत नफ़ीस और कलात्मक भाषा में
सत्ता की आलोचना भी की और कुछ सुझाव भी दिये।
फिर लौटकर उन जनवादियों और प्रगतिशीलों ने
छाती ठोंककर कहा कि हम तो उनके मंच पर जाकर भी
अपनी बात कह आते हैं।
उधर हत्यारों ने असहमत लोगों से कहा,
“अब तो मान लो कम्बख्तो
कि हम कितने लोकतांत्रिक हैं
और अपनी आलोचनाओं के प्रति कितने सहिष्णु
और कितने उदार!
अरे हम तो हत्या करने के पहले भी
बहुसंख्या की सहमति लेते हैं
और लोकतंत्र और संविधान का पूरा सम्मान करते हैं।
लोगों की सहमति लेकर ही हम शासन करते हैं।”
फिर हर्षोन्मत्त उन्मादी भीड़ ने जैकारे लगाये
और शासन करने वालों से पूछा कि असहमत लोगों का क्या करना है?
इसपर ठठाकर हँसे हत्यारे
और शरारत से आँखें नचाते हुए बोले,
“क्या यह भी बताना पड़ेगा!”