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मेहरगढ़ बलूचिस्तान से प्राप्त यह पहिया 6000 ईसा पूर्व का है

मेहरगढ़ बलूचिस्तान से प्राप्त यह पहिया 6000 ईसा पूर्व का है यानी लगभग आठ हजार साल पहले का, मोम की ढलाई द्वारा शुद्ध तांबे से बनाया गए छह तीलियों वाले इस पहिए को देखकर प्राचीन धातु विज्ञान पर भारत की तकनीक का पता चलता है।

दरअसल जिस समय को सिंधु घाटी सभ्यता का कालक्रम निर्धारित किया जा रहा था उसी समय के आस पास बंगाल में पांडु राजार ढिबी और दक्षिण भारत के कीझादी में समकालीन सभ्यताएं फल फूल रही थीं। जितना पढ़ा उसके आधार पर मैं वैदिक काल को सिंधु घाटी से पहले रखना चाहूंगा लेकिन अभी इस बात पर तथ्यों का आना बहुत कुछ बाकी है।

जिस लोहे को आर्यों के साथ जोड़ा गया उस पर यह बताना आवश्यक हो जाता है कि दक्षिण भारत में मिले लोहे भारत के धातु कर्म को लिखित साक्ष्य में 4500 वर्ष पीछे ले जाते हैं। तमिलनाडु की शिवगंगा नदी के किनारे विकसित होने वाली कीझादी सभ्यता में ब्राह्मी तमिल भाषा के स्क्रिप्चर प्राप्त हुए हैं जिनसे उत्तर और दक्षिण की सभ्यताओं के अलगाव स्पष्ट रूप से समाप्त हो जाते हैं।