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मेरे वालिद मेरी जन्नत का दरवाज़ा, ‘वो गए उनकी परछाइयाॅं रह गईं’….By-फ़ारूक़ रशीद फ़रूक़ी

Farooque Rasheed Farooquee
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. मेरे वालिद मेरी जन्नत का दरवाज़ा
‘वो गए उनकी परछाइयाॅं रह गईं’
‘ऐसा कहाॅं से लाऊॅं कि तुझ-सा कहें जिसे’
(प्रोफ़ेसर रशीद कौसर फ़ारूक़ी)
हमारे बाद अंधेरा रहेगा महफ़िल में
बहुत चराग़ जलाओगे रोशनी के लिए

आपकी मौत को पंद्रह साल गुज़र गए। इस दुनिया को आपके साथ देखा और आपके बाद भी देखा। दुनिया में मुझे आप जैसा इंसान न मिला। आपका वुजद मेरे लिए घना साया था। आप मेरे दिल में उठने हर सवाल का जवाब थे। आप हर अंजुमन रोशनी थे। हर ज़मीन के आसमाॅं थे। आपने बेशुमार इंसानों को हक़ और सच्चाई का रास्ता दिखाया। आपने इस्लाम और इंसानियत का सबक़ सिखाया। आपकी ज़ात से दुनिया रोशन हुई और इंसानियत को सुकून मिला। आपका ख़ुबसूरत कलाम और प्यारी आवाज़ आज भी दिल का क़रार है। आपका तरन्नुम फ़ज़ाओं में गूॅंजता है।

English के प्रोफ़ेसर की हैसियत से Pune University, Karnataka University, Oxford University और Cambridge University में आपकी यादें बसी हुई हैं। जब आपकी क़िरअत (यानी क़ुरआन की तिलावत) सुनता हूॅं तो रूह फूलों में बसी मालूम होती है।

पंद्रह साल पहले आपको क़ब्र के हवाले किया था। बता नहीं सकता कि किस दिल से आपकी क़ब्र पर मिट्टी डाली थी। जैसे आप आवाज़ दे रहे थे —

मिट्टी का मुझको रिज़्क़ बनाकर कहाॅं चले
मैं इक शाहकार था नाज़-ए-फ़ुनून था
दुनिया का दस्तूर था, हम सब मजबूर थे और अल्लाह का फ़ैसला था। हम बस दुआ करते हैं और दुआ ही कर सकते हैं कि अल्लाह आपकी क़ब्र को नूर से भर दे और आपको जन्नतुल फ़िरदौस में ऊॅंचा मक़ाम अता फ़रमाए। आमीन! आज भी आपकी याद बहुत आती है —-
अकेला हूॅं मगर आबाद कर देता हूॅं वीराना
बहुत रोएगी मेरे बाद मेरी शाम-तन्हाई
बहुत जल्द आपसे मुलाक़ात होगी। इंशा अल्लाह!
(फ़ारूक़ रशीद फ़रूक़ी)

میرے ابی حضور میری جنت کا دروازہ
‘وہ گئے ان کی پرچھائیاں رہ گئیں’
‘ایسا کہاں سے لاؤں کہ تجھ سا کہیں جسے’
(پروفیسر رشید کوثر فاروقی)
ہمارے بعد اندھیرا رہے گا محفل میں
بہت چراغ جلاؤ گے روشنی کے لئے

آپ کی موت کو پندرہ سال گذر گئے۔ اس دنیا کو آپ کے ساتھ دیکھا اور آپ کے بعد بھی دیکھا۔ مجھے دنیا میں آپ جیسا انسان نہ ملا۔ آپ کا وجود میرے لئے گھنا سایہ تھا۔ آپ میرے دل میں اٹھنے والے ہر سوال کا جواب تھے۔ آپ ہر انجمن کی روشنی تھے، ہر زمین کے آسماں تھے۔ آپ نے بیشمار انسانوں کو حق اور سچائی کا راستہ دکھایا۔ آپ نے اسلام اور انسانیت کا سبق سکھایا۔ آپ کی ذات سے دنیا روشن ہوئی اور انسانیت کو سکون ملا۔ آپ کی خوبصورت اور پیاری آواز آج بھی دل کا قرار ہے۔ آپ کا ترنم فضاؤں میں گونجتا ہے۔ انگلش کے پروفیسر کی حیثیت سے پونا یونیورسٹی، کرناٹک یونیورسٹی، آکسفورڈ یونیورسٹی اور کیمبرج یونیورسٹی میں آپ کی یادیں بسی ہوئی ہیں۔ آپ کی قرآن کی تلاوت جب سنتا ہوں تو روح پھولوں میں بسی معلوم ہوتی ہے۔

پندرہ سال پہلے آپ کو قبر کے حوالے کیا تھا۔ بتا نہیں سکتا کہ کس دل سے آپ کی قبر پر مٹی ڈالی تھی۔ جیسے آپ آواز دے رہے ہوں —–
مٹی کا مجھ کو رزق بنا کر کہاں چلے
میں اک شاہکار تھا ناز فنون تھا
دستورِ دنیا تھا، ہم سب مجبور تھے اور اللہ تعالیٰ کا فیصلہ تھا۔ ہم بس دعا کرتے ہیں اور دعا ہی کر سکتے ہیں کہ اللہ تعالیٰ آپ کی قبر کو نور سے بھر دے اور آپ کو جنت الفردوس میں اعلیٰ مقام عطا فرمائے۔ آمین! آج بھی آپ کی یاد بہت آتی ہے —–
اکیلا ہوں مگر آباد کر دیتا ہوں ویرانہ
بہت روئے گی مرے بعد مری شام تنہائی
بہت جلد آپ سے ملاقات ہوگی انشا اللہ!
(فاروق رشید فاروقی)