साहित्य

*मेरे रिश्तेदार और तुम्हारे रिश्तेदार*

Harish Yadav
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* मेरे रिश्तेदार और तुम्हारे रिश्तेदार *
” तुम्हारे घर से जब कोई रिश्तेदार आता है तो तुम्हारे चेहरे की रौनक देखने लायक होती है। तब तो बड़े हंस-हंसकर आज ये बनवाओगे कल वो बनवाओगे। लेकिन जब मेरे घर से कोई आता है, तब तुम्हें क्या हो जाता है”
मानवी अपने पति समीर से शिकायत करते हुए बोली।
” मानवी मेरे पास तुम्हारी इन फालतू बातों के बारे में सोचने का कोई वक्त नहीं है। तुम पता नहीं बैठे-बैठे क्या मनगढ़ंत बातें बना लेती हो। और फिर बस उस बात को पकड़कर
बैठी रहती है”
समीर जैसे कुछ सुनना ही नहीं चाह रहा था।
” वाह समीर, तुम्हारा अच्छा है। मैं मनगढ़ंत बातें बना रही हूं? क्या मुझे दिखता नहीं है। आज तुम्हारी बहन यहां तुमसे मिलने आई तो कितना खुश होकर तुम तुम्हारे दीदी जीजा जी के लिए पकवान बनवा रहे थे। यहां तक कि तुमने छुट्टी भी ले
ली। पर उस दिन जब मेरे भाई भाभी आए थे तब तुम्हारे पास उनसे बात करने के लिए आधा घंटा भी नहीं था”
” तो तुम क्या चाहती हो मैं छुट्टी लेकर घर पर बैठा रहूं। रिश्तेदारों का क्या है? वो तो आते जाते रहेंगे। तुम्हारे भैया भाभी थे, तो तुम्हारा होना जरूरी था। तुम्हारे रिश्तेदारों को तो तुम ही हैंडल करोगी ना। भला मेरा क्या काम था जो छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही हो”
समीर ने लापरवाही से कहा।
समीर की बात सुनकर मानवी चौक गई,
” मेरे रिश्तेदार??”
“और नहीं तो क्या? तुम्हारे रिश्तेदार जब वो लोग तुमसे मिलने आएंगे तो तुम्हारा होना जरूरी है। मेरे रिश्तेदार आएंगे तो मुझे छुट्टी लेना जरूरी है। इसमें गलत क्या है?”
मानवी को जवाब देकर समीर अपने मोबाइल में लग गया।
मानवी गुस्से से अपने कमरे से निकल कर बाहर आई तो देखा सासू मां जानकी जी हाॅल में बैठी उन दोनों की बातें ही
सुन रही थी।
जैसे ही मानवी से उनकी नजर टकराई वो चुपचाप उठकर अपने कमरे में चली गई। उन्हें भी लगा कि कहीं मानवी उनसे
ही सवाल जवाब न करने लग जाए।
आखिर समीर के दिमाग में ये बातें वो ही तो डालती थी। मानवी और समीर की शादी को एक साल हो चुका था। पर इस एक साल में वो अपने पति और सास को बहुत अच्छे से जान चुकी थी।
दोनों अक्सर ही ऐसा करते थे। शादी के एक सप्ताह बाद ही मानवी का भाई जब उसे लेने आया, तब एक घंटे तक वो
अकेले ही बैठा रहा। पर मजाल कि कोई उसके साथ बैठा भी हो। समीर तो जरूरी काम का बहाना कर दोस्तों के साथ निकल गया। और सासू मां जानकी जी मानवी के कमरे में उसकी पैकिंग पर पैनी नजर रखे हुए थी कि वो क्या-क्या सामान मायके ले जा रही है।
पर ऐसा नहीं कि समीर नहीं है तो वो ही जाकर उसके भाई के पास बैठ जाए। उस समय तो ननद घर पर ही थी। उसी
ने भाई को चाय नाश्ता सर्व किया था। और चाय नाश्ता सर्व करने के बाद वो भी अपनी मां की तरह पैनी नजर रखने के
लिए मानवी के पास कमरे में आ गई।
मानवी को भी बड़ा अजीब लगा पर अब नई-नई शादी में क्या ही कहती। भाई ने भी खैर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
लेकिन जब ये अक्सर होने लगा तब भाई को भी समझ में आने लग गया कि मानवी के ससुराल वालों को उनके साथ बैठना पसंद नहीं है।
जब मानवी ने इस बारे में समीर से बात की तो समीर ने कहा,
” देखो मानवी मुझे नहीं पता तुम्हारे घर में क्या होता है। ऐसा है कि ससुराल वालों के साथ इतना ज्यादा भी उठना बैठना नहीं चाहिए। वरना अपनी इज्जत घट जाती है। और अपनी इज्जत करवाना अपने हाथों में है”
जब उसने इस बारे में जानकी जी से बात की तो जानकी जी ने भी समीर की ही बात को दोहरा दिया और कहा,
” देखो बहू, दामाद को ससुराल वालों से एक हद में रहकर ही बात करनी चाहिए। ताकि उसकी इज्जत बनी रहे। तुम्हारे
रिश्तेदारों के साथ उसे अच्छा नहीं लगता। इसलिए वो उनके साथ ज्यादा बैठना पसंद नहीं करता”
मानवी को उनकी सोच पर ही हैरानी होती थी क्योंकि जब ननद ननदोई घर पर आते थे तब तो ननदोई जी सबसे बड़े
हंस-हंसकर बात करते थे। उन्हें देखकर भी क्या ये लोग कुछ नहीं सिखते थे।
पिछले सप्ताह जब मानवी के भाई भाभी घर पर आए थे तब तो मानवी को लगा था कि भाभी पहली बार घर पर आ रही
है तो शायद समीर कुछ देर रुक कर उनसे बातचीत तो कर ही लेगा। लेकिन नहीं, जैसे ही उन लोगों ने घर में प्रवेश किया
समीर ने बस उन्हें नमस्ते किया और ऑफिस के लिए रवाना हो गया।
मानवी और भाई एक दूसरे की शक्ल देखते रह गए। समीर क्या कम था, जो सासू मां भी थोड़ी देर में सत्संग का बहाना कर रवाना हो गई। भाभी ने तो आखिर पूछ ही लिया कि कंवर साहब किसी बात से नाराज है क्या।
मानवी को तब बहुत बुरा लगा। आखिर ये सब देखकर भाई भाभी भी थोड़ी देर में चाय पानी पीकर ही रवाना हो गए।
जब मानसी ने इस बारे में बात की तो समीर ने सीधा सा जवाब दिया,
” तुम्हारे रिश्तेदारों को तुम हैंडल करो। और मेरे रिश्तेदारों को मैं हैंडल करूंगा। बस इससे ज्यादा मुझे अब कुछ नहीं कहना है “
लेकिन आज जब खुद समीर के दीदी जीजा जी आए तो ऑफिस से छुट्टी भी ले ली और बोल बोल कर पकवान बनवाए वो अलग।
बस मानवी भी अब ठान चुकी थी कि उसे अब जवाब देना ही पड़ेगा। आज तो उसने कुछ नहीं कहा। बस वो अगले मौके की तलाश में थी।
खैर, जब दो महीने बाद समीर के दीदी जीजा जी का दोबारा आना हुआ तो उनके आने के थोड़ी देर बाद ही मानसी अपना बैग पैक करके बाहर आ गई।
उसे सामान के साथ देखकर ननद ने पूछा
” अरे भाभी, आप कहीं जा रही हो क्या?”
” हां दीदी, मैं अपने मायके जा रही हूं”
मानवी का जवाब सुनकर समीर ने कहा,
” अरे तुम अभी कैसे जा सकती हो? दीदी आई हुई है, जीजा जी आए हुए हैं। घर में मेहमान आए हुए हैं। तुम्हारा होना तो जरूरी है”
” मेहमान?? लेकिन ये तो आपके रिश्तेदार है ना। फिर भला मेरा रुकना क्यों जरूरी है”
मानवी का जवाब सुनकर जानकी जी बीच में बोली,
” बहू कैसी बातें कर रही हो तुम? शर्म बेच खाई है क्या तुमने?”
” और ये मेरे रिश्तेदार, तुम्हारे रिश्तेदार क्या होता है? भूलो मत, तुम इस घर की बहू हो”
समीर ने कहा।
” अरे! ये मेरी जबान नहीं है। ये तो आप ही की जबान है। याद कीजिए आपने ही कहा था ना कि जब तुम्हारे रिश्तेदार आएंगे तो तुम हैंडल करना। और जब मेरे रिश्तेदार आएंगे तो मैं हैंडल करूंगा। तो मैं गलत क्या कह रही हूं”
” अरे समीर ने कुछ कह दिया तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम जिम्मेदारी से अपना मुंह मोड़ोगी। और यहां दामाद जी के सामने हमारी बेइज्जती करोगी”
जानकी जी नाराज होते हुए बोली।
” अच्छा! मेरे ये सब करने से आप लोगों की बेइज्जती होती है। लेकिन आप जो मेरे परिवार वालों के साथ करते हो, उसमें तो आप लोगों की बड़ी इज्जत बढ़ जाती है। आप मेरे रिश्तेदारों से बात करना भी पसंद ना करो और बदले में आप लोग मुझसे उम्मीद करते रहो कि मैं आपके रिश्तेदारों को अपना मानती रहूंगी। ये अब मुझसे नहीं होगा”
मानवी की बात सुनकर समीर चिढ़ता हुआ बोला ,
“अरे तुम्हें कितनी बार समझाया है। एक बार में समझ में नहीं आती है क्या। एक दामाद को अपने ससुराल वालों से कम ही
बोलना चाहिए। और उठना बैठना भी कम से कम ही करना चाहिए। वरना उसकी इज्जत घट जाती है”
” अरे साले साहब, ये बात तो मुझे भी नहीं पता थीं। मैं तो यहां दो-दो दिन तक रुक जाता हूं। और सबसे बड़ा हंस-हंसकर बात करता हूं। मतलब मेरी तो अब ससुराल में
कोई इज्जत ही नहीं है”
अचानक दामाद जी के कहते ही कमरे में खामोशी छा गई।
” अरे जीजा जी आप अपने पर क्यों ले रहे हो। आपकी बात तो अलग है”
समीर बात संभालते हुए बोला।
” क्यों? मेरी बात अलग क्यों है? मैं भी तो दामाद ही हूं। जो बात तुम पर लागू होती है वो बात मुझ भी लागू होती है। अगर तुम लोगों की सोच ऐसी है तो फिर मुझे भी आने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा”
आखिर अपने जीजा जी की बात सुनकर समीर ने हाथ जोड़कर माफी मांगी। जानकी जी से भी कुछ कहते नहीं बना।
साथ ही समीर ने मानवी से माफी मांगी और वादा किया कि आइंदा वो इस तरह की हरकत नहीं करेगा।
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