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मेरे मित्र Vipul Tiwari ने तीन प्रश्न मुझसे पूछे हैं,…मेरे उत्तर…By-द्वारिका प्रसाद अग्रवाल

द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
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मेरे मित्र Vipul Tiwari ने तीन प्रश्न मुझसे मैसेज बॉक्स में पूछे हैं, मैं उनके उत्तर सार्वजनिक रूप से अपनी टाइमलाइन में दे रहा हूँ :

प्रश्न हैं :
(1) अगर आप आज अपने युवा काल मे पुनः प्रवेश करते हैं तो क्या ऐसा करते जो नहीं किया?

(2) क्या नही करते जिसे करना व्यर्थ था?

(3) उम्र के साथ किन चीजों की एहमियत खत्म होती जाती है जिसे हम अपने दुख का कारण बनाकर रोते हैं?

मेरे उत्तर :

(1) पुनः युवा हो जाने की बात ही इतनी रोचक है कि मत पूछिए। मैंने अपनी युवावस्था में वह सब किया जो आम तौर युवा करते हैं। पढ़ाई की, वकालत की, सत्साहित्य पढ़ा, इश्क किया, सिनेमा देखा, मिठाई बेची, भरपूर मेहनत की और सबसे मधुर संबंध बना कर रखे। परिवार और समाज से भरपूर जुड़कर रहा। कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका अनुभव मैंने नहीं किया हो इसलिए कोई भी आस अधूरी नहीं है।

(2) मैं अपने समय का मूल्य समझने में चूक गया। चुपचाप पारिवारिक कार्यों में लगा रहा जो मेरी भूल थी। मुझे अपने बारे में स्वयं निर्णय लेना था जबकि मैंने अपने संदर्भ के निर्णय परिवार वालों को सौंप दिए थे। इस वजह से जो मेरा भविष्य बनता, वह नहीं बन पाया बल्कि मुझे अपने जीवन में अत्यंत प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
युवावस्था में मुझे ‘रमी’ खेलने का चस्का लग गया जिसने मेरा बहुत समय बर्बाद किया। बात जीत-हार की नहीं थी, उस खेल में मनोरंजन भरपूर था, इसका प्रभाव मेरे निर्णय लेने की क्षमता पर भी पड़ा.
मैंने अपने जीवन की एक बहुत बड़ी भूल इसी चक्कर में की। युवावस्था में मैं तंबाखू खाने का शौकीन हो गया था जिसके कारण मैं कैंसर जैसे गंभीर रोग की गिरफ्त में आ गया था, अपने मुंह की मैंने तीन बार सर्जरी कराई, बचने की संभावना तो नहीं थी लेकिन शायद नहीं मरना था इसलिए बच गया।
ये तीन व्यर्थ बातें थी जिसे मुझे अपने जीवन में नहीं करना था।

(3) किसी भी उम्र में किसी बात की अहमियत खत्म नहीं होती। हर उम्र में मनुष्य समाज में पहचाने जाने की उम्मीद करता है, धन चाहता है, बेहतर स्वास्थ्य चाहता है, सुखी परिवार चाहता है, मस्ती का जीवन जीना चाहता है। जीवन में सब ‘मेरी पसंद’ का नहीं होता। सारी उम्मीदें भी पूरी नहीं होती। कुछ कसक सबके मन में रह जाती हैं। ये कसक यदि किसी ने अपने दिल में ले ली तो उसका दुखी होना तय है.
‘जो हुआ सो अच्छा हुआ’, ‘जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है’ ये भाव यदि मन में रहे तो कोई दुख आपके आसपास नहीं फटक सकता। रोने वाले को रोना शायद अच्छा लगता होगा, मुझे तो अपना जीवन मस्त लगता है।