साहित्य

*मेरे पापा के पास अलादीन का चिराग नहीं, जिसे घिसकर पैसे निकाल कर दे दिए*

Laxmi Kumawat
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* मेरे पापा के पास अलादीन का चिराग नहीं, जिसे घिसकर पैसे निकाल कर दे दिए *
रात के 10:30 बज रहे थे। श्रेया को बहुत नींद आ रही थी। पर फिर भी सासु मां की साड़ी को इस्त्री किए जा रही थी। सुबह से घर के और ऑफिस के काम करते करते थक चुकी थी। फिर सुबह जल्दी भी उठना होता था। अगर थोड़ा भी लेट हो जाता तो सारा काम उथल-पुथल हो जाता। पर अभी तक पति धर्मेश अपने माता-पिता के कमरे में ही बैठा हुए थे। जबकि रोज तो 9:30 बजे तक कमरे में आ जाते हैं।

दो-तीन दिन से यही हो रहा था। पता नहीं क्या चल रहा था इन लोगों के मन में। बताते भी नहीं हैं, सीधा विस्फोट करते हैं। जबकि धर्मेश को अच्छे से पता है कि जब तक वो कमरे में नहीं आ जाता श्रेया सो नहीं सकती। क्योंकि सासू मां तब तक उसे कोई ना कोई काम में लगा ही रखती हैं अभी ज्यादा कुछ नहीं तो कपड़े इस्त्री करने के लिए लगा दिया। जबकि कपड़े इस्त्री वाले से इस्त्री कराए जाते हैं। पर पता नहीं क्यों? आज ही सासू मां ने यह कपड़े इस्त्री करने को दिए।

जब भी उन्हें किसी काम की भूमिका बनानी होती है या फिर श्रेया से कोई काम निकलवाना होता है तो फिर वो इसी तरह के काम करती है। हमेशा धर्मेश के कंधे पर बंदूक रखकर चलाती है। पिछले एक साल में श्रेया को ये अनुभव तो हो चुका था।

पता नहीं, अब किस चीज की भूमिका बना रही है।
इतने में धर्मेश कमरे में आया। उसे देखते ही श्रेया बोली,
” धर्मेश आपको पता है ना मैं थक चुकी हूं। मुझे कितनी नींद आ रही है। बावजूद इसके आप अभी तक मम्मी पापा के कमरे में बैठे हुए थे। जल्दी आ जाया कीजिए मुझे भी ऑफिस के लिए जल्दी उठना होता है”
” अरे नाराज क्यों हो रही हो कोई जरूरी बात कर रहा था”

धर्मेश ने कहा तो उसने सोचा कि शायद श्रेया उससे पूछेगी, पर श्रेया ने कुछ नहीं पूछा। बल्कि वो तो बिस्तर पर आ कर लेट गई। उसे लेटा देखकर धर्मेश ने कहा,
” अरे तुम तो हद करती हो। पति अभी कमरे में आया है और तुम सोने लग गई। तुमने तो पूछा ही नहीं कि क्या काम था। लोगों की पत्नियों को तो उत्सुकता रहती है कि ऐसी क्या बातचीत हो रही है घर में?”
” मैं थक गई हूं, मुझे बहुत नींद आ रही है। पर फिर भी आपको जो कहना है कहिए”
” वो मैं यह कह रहा था कि तुम्हें तो पता ही है मेरा बिजनेस बिल्कुल भी ठीक नहीं चल रहा है। और अब दीदी के ससुराल में उसके ससुर जी का रिटायरमेंट का प्रोग्राम है। सभी के कपड़े और शगुन का सामान तो हम ले आए हैं। पर इतना काफी नहीं लग रहा। अब हमारी तरफ से कुछ अच्छा ही देना बनता है। नहीं तो हमारे परिवार की क्या इज्जत रह जाएगी”
” आप कहना क्या चाहते हैं सीधे-सीधे कहिए। बात को घुमाइए मत”
“वो मैं क्या कह रहा था कि तुम्हारे भाई भावेश ने इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान खोली है ना। तो अपनी तरफ से एक एलईडी गिफ्ट कर देते हैं। अपना सम्मान भी रह जाएगा और भावेश तो घर का है उसे पैसे फिर कभी दे देंगे”
धर्मेश ने कहा तो श्रेया ने हैरानी से उसकी तरफ देखा,
” आप कैसी बात कर रहे हो? भावेश ने अभी अभी दुकान खोली है वो भी लोन लेकर। अब दुकान खोलते से ही उधारी देना शुरू कर देगा तो कमा कर क्या खाएगा?”
” तुम भी हद करती हो एक एलईडी से क्या नुकसान होगा। और फिर मना थोड़ी ना कर रहा हूं। भविष्य में पैसे दे देंगे”
“अच्छा! पिछली बार भी एक लाख रुपये लिए थे और उससे पहले पचास हजार रुपये लिए थे तुमने पापा से, आज तक तो दिए नहीं। ऊपर से और उधारी लेने के बात कर रहे हो”
श्रेया ने कहा तो सासु माँ तुनकते हुए कमरे में आ गई। शायद दरवाजे पर ही कान लगाकर खड़ी थी और आते ही कहा,
” अरे अपनी बेटी को इतना सा नहीं दे सकते हैं क्या? आखिर तुम्हारा भी तो उस घर पर हक है। आखिर कहां लेकर जाएंगे तुम्हारे पापा इतना सब कुछ। भाई के साथ साथ तुम्हारा भी बराबर का हक है वहां पर”
” पर मम्मी जी, मैं कुछ नहीं मांगूंगी। अब मुझे मांगते हुए शर्म आती है क्योंकि पिछले दो बार का भी हमने अभी तक लौटाया ही नहीं। क्या फायदा अपने पैरों पर खड़ा होने का, जब पैरों पर खड़ा होकर उनके सामने हाथ फैलाकर हम चुका ना पाए”
श्रेया ने कहा तो धर्मेश बीच में ही बोला,
” अरे तुम्हारे पापा के पास क्या पैसों की कमी है? इतना सा नहीं दे सकते क्या? दुनिया के सामने तो खूब पैसा वाला बनते हैं”
“बस करो धर्मेश। मेरे पापा के पास कोई अलादीन का चिराग नहीं है जिसे जब चाहा घिस कर के पैसे निकाल कर तुम्हें दे दिए, पैसा कमाना पड़ता है। मेहनत करनी पड़ती है”
“बड़ी जबान खुल गई है तेरी। हमें धौंस दिखा रही है। अपनी बेटी के ससुराल हम क्या खाली हाथ चले जाए? और तू भी तो कमाने जाती है थोड़ा बहुत दे सकती थी, लेकिन..”
सासु मां अभी भी हार मानने को तैयार नहीं थी। आखिरकार श्रेया ने कहा,
” लेकिन क्या? आपकी बेटी आपका सम्मान है। उसे जो देना है आप दीजिए। उसके लिए मेरे मायके वालों को झुकाना जरूरी है क्या? जो भी देना है अपनी हैसियत के मुताबिक दीजिए। वो लोग तो खुद लोन लेकर अपना बिजनेस खड़ा करने में लगे हुए हैं। ऐसे में उन पर वजन डालना जरूरी है क्या? और रही बात मेरी कमाई की। तो पहले मैं मेरे मायके वालों का कर्जा चुकाऊंगी। ताकि सिर उठाकर जा सकूं। स्वाभिमान जिंदा है मुझ में अभी। उसके बाद ही मुझसे उम्मीद कीजिएगा। अब मुझे माफ कीजिए, मुझे नींद आ रही है। मैं अब इस विषय में कोई बात नहीं करना चाहती”
श्रेया का स्पष्ट रुख देखकर के आगे किसी की बोलने की हिम्मत ना हुई। आखिरकार श्रेया की ननद के प्रोग्राम में शगुन और कपड़े ही गये। और कुछ महीनों बाद श्रेया और धर्मेश ने मिलकर उसके पापा के सारे कर्जे चुका दिए।
मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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