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मेनोपॉज़ किस तरह महिलाओं को प्रभावित करता है, मेनोपॉज़ क्या है? !!रिपोर्ट!!

मेनोपॉज को दशकों से एक लांछन की तरह देखा गया है. इसे बीमारी बताकर इलाज सुझाए गए हैं. नए अध्ययन कहते हैं कि समाज को अपना नजरिया बदलना चाहिए और मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं की मदद करनी चाहिए.

पीरियड्स या माहवारी को सदियों से कलंकित किया गया है. ओल्ड टेस्टामेंट में माहवारी को ‘संक्रामक समय’ कहा गया, वहीं हिंदू धर्म में कई इसे ‘अस्वच्छ’ बताते हैं. इसके साथ अशुद्धि या शर्म का भाव जुड़ा होता है.

रेचल वाइस ब्रिटेन की मनोसामाजिक परामर्शदाता हैं. वह कहती हैं, “आप सोचेंगे कि मेनोपॉज आने पर जश्न मनाया जाता होगा क्योंकि तब महिलाएं ‘गंदी’ नहीं होतीं, लेकिन ऐसा नहीं होता है.” मेनोपॉज आज भी एक टैबू है. वाइस कहती हैं कि उन्होंने 2017 में पहली बार टीवी पर इसका जिक्र होते हुए देखा था. तब उन्होंने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘दी मेनोपॉज एंड मी’ देखी थी. इससे उन्हें पता चला कि मेनोपॉज किस तरह महिलाओं को प्रभावित करता है.

 

आधुनिक विज्ञान ने मेनोपॉज से जुड़े लांछन को बढ़ावा देने का काम किया. 20वीं सदी के वैज्ञानिकों (खासतौर पर पुरुषों) ने पता लगाया कि मेनोपॉज के लक्षणों को हार्मोन उपचार के जरिए ठीक किया जा सकता है, जिसमें एस्ट्रोजन हार्मोन का इस्तेमाल होता है. मेनोपॉज होना बेहद सामान्य और प्राकृतिक है. लेकिन शोध ने इसे हार्मोन की कमी से होने वाली बीमारी घोषित कर दिया. ऐसी बीमारी, जिसके लिए इलाज की जरूरत होती है.

बाद में ‘हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी’ को मेनोपॉज के इलाज के तौर पर प्रचारित किया गया. 1950 के दशक में पुरुषों से कहा गया कि हार्मोन की गोलियां महिलाओं को पहले जैसा बना देती हैं. यह लांछन आज भी मौजूद है. इस वजह से कई महिलाएं मेनोपॉज के अपने अनुभवों के बारे में बात नहीं कर पातीं. वाइस कहती हैं, “कल्पना कीजिए कि आप प्यूबर्टी को एक बीमारी घोषित कर दें और बच्चों को इसका डर दिखाएं. फिर उनसे कहें कि एक गोली इसे ठीक कर सकती है. मेनोपॉज को अक्सर इसी तरह पेश किया जाता है.”

 

मेनोपॉज क्या है?
अभिनेत्री ग्वेनेथ पाल्ट्रो ने एक पुराने इंटरव्यू में मेनोपॉज के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था, “मुझे लगता है कि मेनोपॉज आने से पहले शरीर में बहुत सारे बदलाव होते हैं. मैं हार्मोन और मूड में हो रहे बदलाव को महसूस कर पाती हूं. पसीना आने लगता है. आप बिना किसी बात के अचानक गुस्सा होने लगते हैं.”

मेनोपॉज में महिलाओं को पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं. इसके बाद महिलाओं की प्रजनन शक्ति खत्म हो जाती है. इसकी शुरुआत प्रजनन हार्मोन, खासकर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन में धीरे-धीरे कमी आने से होती है. ये दोनों हार्मोन अंडाशयों में बनते हैं. मेनोपॉज की प्रक्रिया औसतन सात साल तक चलती है और यह आमतौर पर 45 से 55 साल की उम्र के बीच होता है. हार्मोन में बदलाव की वजह से महिलाओं को कई तरह के लक्षणों का सामना करना पड़ता है. जैसे- गर्मी लगना, रात में पसीना आना और मूड बदलना. 38 फीसदी महिलाएं इन लक्षणों को मध्यम से गंभीर बताती हैं.

 

लैंसेट अध्ययनों में क्या पता चला
5 मार्च को ‘दि लैंसेट’ में अध्ययनों की एक नई शृंखला प्रकाशित हुई. इसमें मेनोपॉज के लिए एक नई सोच लाने की बात कही गई है. इन अध्ययनों में समाज से अपील की गई है कि वे मेनोपॉज को बीमारी के तौर पर ना देखें. एक ऐसा मॉडल लाने की कोशिश करें, जो मेनोपॉज के दौरान महिलाओं की मदद करे.

मेलबर्न विश्वविद्यालय की मार्था हिकी इस सीरीज की सह-लेखिका हैं. वह कहती हैं, “मेनोपॉज का अनुभव हर महिला के लिए अलग होता है. हमारे अध्ययन में मांग की गई है कि महिलाओं को व्यक्तिगत स्तर पर सटीक, तर्कसंगत और निष्पक्ष जानकारी उपलब्ध कराई जाए, ताकि वो सोच-समझकर ऐसे फैसले ले सकें जो उनके मेनोपॉज बदलाव के लिए सही हों.”

एक अध्ययन में बताया गया है कि जल्दी होने वाले मेनोपॉज को गंभीरता से लेना चाहिए. जिन महिलाओं को जल्दी मेनोपॉज होता है, उन्हें दिल से जुड़ी बीमारियों और ऑस्टियोपोरोसिस का ज्यादा खतरा होता है. अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में करीब आठ से 12 फीसदी महिलाओं को जल्दी या समय से पहले मेनोपॉज होता है. भारत जैसे देशों में यह आंकड़ा ज्यादा है. यहां करीब 20 फीसदी महिलाओं को 30 या 40 साल की उम्र के बाद ही मेनोपॉज होने लगता है. जल्दी होने वाले मेनोपॉज की पहचान अक्सर देर से हो पाती है और इसका ढंग से ध्यान भी नहीं रखा जाता.

 

एक अन्य अध्ययन में इस बात को चुनौती दी गई है कि मेनोपॉज का संबंध खराब मानसिक स्वास्थ्य से है. इस बात का कोई मजबूत सबूत नहीं मिला कि मेनोपॉज से चिंता, बाइपोलर डिसऑर्डर या मनोविकृति का खतरा बढ़ता है. ऐसी महिलाएं जो पहले डिप्रेशन में रह चुकी हैं, उनमें मेनोपॉज के दौरान इसके लक्षण दिखाई दे सकते हैं.

वाइस कहती हैं, “ऐसा नहीं है कि एस्ट्रोजन की कमी से डिप्रेशन होता है, बल्कि मेनोपॉज से जुड़े दूसरे सामाजिक और सांस्कृतिक कारक महिलाओं को बेकार महसूस करवाते हैं. कई महिलाओं को जब मेनोपॉज होता है, तब तक उनके बच्चे किशोरावस्था में पहुंच चुके होते हैं और हार्मोनल बदलाव से गुजर रहे होते हैं. वहीं, उनके माता-पिता भी बुजुर्ग और बीमार हो रहे होते हैं. इन वजहों से भी महिलाओं की चिंता और परेशानी बढ़ जाती है.”

 

मेनोपॉज से जुड़े कलंक से निपटना
लैंसेट की शृंखला में एक मुख्य थीम मेनोपॉज से जुड़े कलंक और शर्म से निपटने की जरूरत है. एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर मेनोपॉज को सामान्य माना जाने लगे और महिलाओं को निष्पक्ष और विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराई जाए, तो वे बेहतर ढंग से इससे जुड़े फैसले ले सकती हैं.

अध्ययनकर्ताओं ने लिखा है कि मेनोपॉज को एक खराब और गिरावट वाला समय मानने की सोच को चुनौती देनी होगी. साथ ही, मेनोपॉज के अनुकूल काम का माहौल तैयार करना होगा. इससे महिलाओं को काफी मजबूती मिल सकती है. 2017 में रेचल वाइस ने एक चैरिटी मेनोपॉज कैफे की शुरुआत की थी. यहां होने वाले कार्यक्रमों में महिलाएं मेनोपॉज के अपने अनुभव बता सकती थीं और दूसरे लोगों से चर्चा कर सकती थीं. अध्ययन में मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं को मजबूत बनाने और इससे जुड़े मिथकों को दूर करने में इस कैफे को एक प्रभावी कदम बताया गया.

 

वाइस कहती हैं, “हमारे चैरिटी कैफे का मकसद लोगों की मदद करना है, जिससे वे मेनोपॉज के अपने अनुभवों के बारे में बात कर पाएं. साथ ही, यह जान पाएं कि क्या उन्हें चिकित्सकीय मदद की जरूरत है.” वह आगे कहती हैं, “20 फीसदी महिलाओं को मेनोपॉज के गंभीर लक्षणों का सामना करना पड़ता है. उनके लिए यह एक चिकित्सकीय समस्या होती है. ऐसी महिलाओं के लिए हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, यानी एचआरटी एक विकल्प होता है. एचआरटी समेत दूसरी दवाएं उन महिलाओं की भी मदद कर सकती हैं, जिनकी आम जिंदगी मेनोपॉज के लक्षणों के चलते ज्यादा प्रभावित होती है.”

लैंसेट के अध्ययनों में बताया गया है कि मेनोपॉज से जुड़े लांछन समाज में कितनी गहराई तक मौजूद हैं. कई महिलाओं ने बताया कि शुरुआत में उन्हें माहवारी आने पर शर्म महसूस होती थी और अब माहवारी के ना आने पर होती है. वाइस कहती हैं, “महिलाओं के मन में यह बिठा दिया जाता है कि वे पीरियड्स के बारे में बात ना करें. एक दूसरा पहलू उम्र बढ़ने से भी जुड़ा है. मैंने कई महिलाओं को यह कहते हुए सुना है कि वे बॉस को अपने मेनोपॉज के बारे में नहीं बता सकतीं क्योंकि इसका मतलब होगा कि वे इससे गुजर चुकी हैं. हमारे समाज में उम्र बढ़ने का मतलब होता है, एक महिला के रूप में बेकार हो जाना.”

ब्रिटेन जैसे कुछ देशों में मेनोपॉज पर विचार-विमर्श बढ़ रहा है. इससे जागरुकता बढ़ रही है और शर्म और कलंक को कम करने में भी मदद मिल रही है. लैंसेट के अध्ययनों में उम्मीद जताई गई है कि मेनोपॉज को देखने के नजरिए में बड़ा बदलाव होगा. इसे एक बीमारी नहीं, बल्कि महिलाओं के जीवन की एक सामान्य घटना माना जाएगा.

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