साहित्य

मूँगफली के छिलके : मुकेश कुमार की रचना

Kumar Mukesh ·
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मूँगफली के छिलके :
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संतोष रोज़ शाम की तरह आज भी टहल कर वापस आया और टीवी वाले रुम में रखे टेबल पर बैठ गया. छोटा भाई और संतोष की बेटी टीवी देख रहे हैं. दोनों टीवी देखने में इतने मशगूल हैं की ध्यान ही नहीं दिया. संतोष की पत्नी बग़ल के किचन में खाना बना रही है.
योगेश ने प्लास्टिक के थैले से मूँगफली का लिफ़ाफ़ा निकाल कर टेबल पर रखा और सबको आवाज़ लगाया.

सब पास आ कर बैठ गए और मूँगफली को फोड़ कर खाने लगे. बेटी मूँगफली खाने के बाद काला नमक चाटते हुए चटकारे भी ले रही है.
छोटा भाई भी कोई कम थोड़े न रहने वाला था, भतीजी के साथ चटकारे की जुगलबंदी करने लगा. पत्नी महोदया किचन से ही सब को देख रही थी. संतोष ने बुलाया तो अनसुना कर के काम में लगी रही. मुँगफली खाना तो वो भी चाहती थी लेकिन उसका मन उसे आने से रोक रहा था. रोकता भी कैसे नहीं? सुबह-सुबह ही तो देवर-भाभी बातों का युद्ध हुआ था. भाभी कमरे की सफ़ाई कर रही थी तो सोचा चलो देवर के कमरे की भी सफ़ाई कर दी जाए. वैसे देवर अपने कमरे की सफ़ाई खुद ही करता था, उसको क़तई पसंद नहीं था की कोई उसके समान को इधर-उधर कर दे.

भाभी ने कुछ भी इधर-उधर नहीं किया फिर भी देवर भड़क गया. भाभी पीछे रह जाए हो नहीं सकता. दोनों में जी भर कर बहस हुआ और फिर तत्काल प्रभाव से दोनों में बातचीत बंद.

माता-पिता रिश्तेदार से मिलने गए थे इसलिए द्विपक्षीय समझौता कराने वाला कोई न था. योगेश भी बेटी को स्कूल छोड़ता हुआ ऑफिस जा चुका था.

ऑफिस से वापस आने के बाद टहलने निकल गया.
पत्नी को मुँगफली न खाते देख एक दो बार बुलाया भी लेकिन वो टस से मस न हुई. बल्कि कान में फ़ोन का लीड लगा कर गाना सुनने लगी.
जब मूँगफली ख़त्म हो गई तब पत्नी महोदया झाड़ू ले कर आई और आते ही एक लहरता हुआ ताना देवर की तरफ़ दे मारा “जिसको अपने समान की परवाह ज़्यादा हो वो उसे संभाल कर रख लो” मैं झाड़ू लगाउँगी, बाद में चैं-चपट मत करना. या फिर “अभी ही बता दो, उधर झाड़ू लगाना है या नहीं?”

संतोष कुछ समझ न पाया, आवाक हो कर पत्नी का मुँह ताकने लगा.

देवर समझ गया इसलिए बीन बोले चुपचाप उठ कर सोफ़ा पर बैठ गया. अपनें दोनों पाँव उपर करते हुए भतीजी को बोला “इधर आ जा बेटा, छिलके उड़ेंगे तो सुरसुराहट होगी और फिर तुम छिंकने लगोगी”
उधर भाभी मुँह बिचकाते हुए जमा किए छिलकों को उठाने लगी.
संतोष भी उठ कर कमरे में चला गया.
भाभी जब सब निपटा कर किचन में गई तो देवर भी गया:
भौजी, ए लो.
क्या है?
कुछ मूँगफली छुपा कर आपके लिए रख लिया था.
बहुत फ़िक्र है तुम्हें भौजी की जैसे…
और नहीं तो क्या?
अच्छा? इसीलिए सुबह उतना प्रवचन दिया?
भौजी आपको पता है न? मेरा समान मेरे सामने हो कर भी नहीं मिलता है मुझे.
तो शांति से भी तो बोल सकते थे न?
हाँ भौजी, गलती हो गई… चलो अब ग़ुस्सा ख़त्म करो और मूँगफली चखो.
नहीं, मेरा मन नहीं है.
मान भी जाओ भौजी.

देवर ने मूँगफली छिल कर भाभी के मुँह में ज़बरदस्ती खिला दिया. भाभी भी चबाते हुए बोली, रख दो और जाओ तुम्हारा गाना वाला प्रोग्राम निकल रहा है टीवी पर… और हाँ आगे से मुझ पर ग़ुस्सा दिखाया तो तुम्हारी बीवी से बदला लुँगी मैं शादी के बाद.
दोनों देवर-भाभी हँसने लगे… भाभी मूँगफली खाते हुए काम में लग गई और देवर टीवी देखने चला गया.
मुकेश कुमार (अनजान लेखक)