साहित्य

मुहब्बतों के शायर थे जिगर मुरादाबादी

जयचंद प्रजापति
=============
मुहब्बतों के शायर थे जिगर मुरादाबादी
…………
जिगर मुरादाबादी उर्दू के एक महान शायर व गजलकार थे जिनका जन्म मुरादाबाद में 6 अप्रैल 1890 को हुआ। बीसवीं सदी के इस महान शायर ने ’आतिश-ए-गुल’ किताब पर 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। परेशानियों में जिंदगी बीती। पढ़ाई नही कर सके। घर पर फारसी सीखा।

पिताजी दादाजी भी शायर थे। शायरी विरासत में मिली। उनके कलाम में उनकी शायरी में गंभीरता, उच्चता, स्थायित्व था। जिस अंदाज से वो शायरी कहते थे सैकड़ों शायर उनकी नकल उतारा करते थे। उनकी शायरी की धार मोहब्बत करने वालों को असली प्रेमी बना देती थे।

आगरा की तवायफ वहीदन से प्रेम विवाह किया। बेमेल मिजाज से तलाक हो गया। फिर मैनपुरी की गायिका शीरजन से शादी की। वह भी नहीं चल पाई। शायरी शिद्दत से करते थे। जिगर नाम था जिगर खोलकर रख देते थे जिगर मुरादाबादी। इनका असली नाम अली सिकंदर था।
इनका शेर देखिए….

इब्तिदा वो थी कि जीना था मुहब्बत में मुहाल
इंतिहा ये है कि अब मरना भी मुश्किल हो गया
मुहब्बत में एक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है
कि आंसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुगयानी नहीं जाती

मुशायरों की जान होते थे। इन्हे मुहब्बतों का शायर कहा जाता था। खुद्दार आदमी थे। मुंबई के एक मुशायरा में दिलीप कुमार हीरो दस हजार रुपए तंगी हाल को देखकर दे रहे थे। ठुकरा दिए। किसी से मुहब्बत तबियत से करते थे। इनकी मृत्यु 9 सितंबर 1960 गोंडा में हुई।

… जयचन्द प्रजापति ’जय’
प्रयागराज