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मुसलमानों की लीडरशिप ”जीरो” हो चुकी है, मुस्लिम क़ौम का ‘वजूद’ ख़तरे में है!

1947 में भारत के बटवारे के बाद अनेक मुस्लमान नेता भारत में हुए हैं, ये नेता पार्टियों और सरकारों में बड़े पदों पर भी विराजमान रहे थे, अपने समय के उन नेताओं ने हुकूमतों से मिली सुविधाओं का अपने लिए अपने परिवार वालों के लिए, अपने कुछ क़रीबियॉं के लिए सहूलतें उपलब्ध करवाने के लिए हो सकता है क्या हो, मगर किसी एक ने भी कभी कोई काम समाज या क़ौम के लिए नहीं किया

मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे, से शुरू करें तो डॉ.फखरुद्दीन अली अहमद, डॉ.ज़ाकिर हुसैन, हामिद अंसारी, सी.के.ज़फर शरीफ, सी.ऍम.इब्राहिम, ग़ुलाम नबी आज़ाद, सलमान खुर्शीद, रशीद अल्वी, डॉ.मसूद, डॉ.अरशद, निहालुद्दीन, खान आतिफ खान, नईमुल्लाह अंसारी, नसीमउद्दीन सिद्दीकी, डॉ.अयूब आदि-आदि अनेक और नेताओं को अगर देखें तो इन्होने कभी एक भी काम ‘संगठन’ खड़ा करने, अखबार, समाचार चैनल शुरू करने का किया हो, सत्ता में जो भी रहा उसने सत्ता को इंजॉय किया, समाज/कौम-वौम से इनका कोई सरोकार नहीं हुआ करता था

तारीफ करना होगी आरएसएस की कि उसने एक सदी तक लगातार काम किया, और आज वो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के बिलकुल करीब है, हज़रत अली का कहना है, कि इंसान जिस मैदान में भी मेहनत करता है, कोशिश करता है, उसे कामयाबी हासिल हो जाती है, मुसलमानों ने कभी ‘संगठन’ के रूप में काम नहीं किया, उनके पास जो सियासी लीडर थे उनके अपने निजी मकसद तो थे लेकिन उनका अपने समाज से कोई वास्ता नहीं था

मुसलमानों के मज़हबी रहनुमा भी मुसलमानों को सिर्फ इबादतों की तब्लीग़ तो करते रहे मगर उन्होंने मुसलमानों को ”दीन” की तरफ बुलाना मुनासिब नहीं समझा, आज सारे मुस्लमान मस्जिदों में जाते हैं, वो वहां एक फ़र्ज़ इबादात को अदा करने जाते हैं, इमाम के साथ खड़े हो जाते हैं, सलाम फेर कर, अपने मतलब की दुआएं मांग कर चले आते हैं, और मस्जिद के बाहर आते ही वो ”खो” जाते हैं दुनियां में, मौलानाओं ने मुसलमानों को बताया ही नहीं कि मस्जिदें सिर्फ नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं हैं, नमाज़ तो कोई भी आदमी, कहीं भी अदा कर सकता है

मस्जिदें मुसलमानों को दीन सिखाने के लिए, जमा करने, उन्हें संगठित करने, एकता और अनुसाशन सिखाने के लिए, रोज़ाना की जिंदिगी में अगर कोई मसला है तो उसके बारे में सलाह करने के लिए होती हैं, इस्लाम मज़हब में ”इज्तेमाई” अमल को अहमियत दी गयी है, मतलब ये कि अकेले नहीं ज़यादा से ज़यादा के साथ मिलने-जुलने यानी संगठित बनने के लिए होती हैं, मस्जिदें ”शिक्षा” के केंद्र होती हैं, जहां पर इंसान को दीन/दुनियां का ज्ञान हासिल करना चाहिए, और फिर समाज में दीन के मुताबिक अपनी जिंदिगी जिए, मगर अफ़सोस लोग मस्जिदों में जाते हैं और ख़ाली हाथ बाहर चले आते हैं

अज़ाम खान को तीन साल की सज़ा हुई, उनकी MLA की मेम्बरशिप चली गयी, आज अज़ाम खान बेबस, लाचार, हारे हुए इंसान नज़ार आते हैं, जिस वक़्त इन के पास वक़्त था, तब इन्होने भी बाकी मुस्लमान नेताओं की तरह अपना जीवन जिया, आखिर में जा के एक यूनिवर्सिटी बनायीं, जिसका वजूद भी अब उनके अपने वजूद की तरह खतरे में हैं, समाप्त होने की कगार पर है, ऐसा ही कुछ पूरी मुस्लमान कौम का है, मुसलमानों की लीडरशिप ”जीरो” हो चुकी है, मुस्लिम क़ौम का ‘वजूद’ आज़म ख़ान की तरह ख़तरे में है,,,,परवेज़ ख़ान

आज़म ख़ां की सदस्यता रद्द, सीट हुई ख़ाली

हेट स्पीच मामले में तीन साल की सज़ा सुनाए जाने के एक दिन बाद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खां की उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई।

उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने यह जानकारी दी। उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रधान सचिव प्रदीप दुबे ने बताया कि विधानसभा सचिवालय ने रामपुर सदर विधानसभा सीट को रिक्त घोषित कर दिया है। उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा पारित फ़ैसले के कारण अयोग्यता के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय द्वारा सीट रिक्त की घोषणा की गई है।

यह पूछे जाने पर कि क्या आज़म खां को अयोग्य घोषित किया गया है? दुबे ने कहा कि हम एक वर्तमान सदस्य को अयोग्य घोषित नहीं करते हैं, हम केवल संबंधित सीट की रिक्ति की घोषणा करते हैं, अयोग्यता तो अदालत के आदेश के बाद पहले ही हो चुकी है।

आज़म ख़ां ने फ़ैसले के ख़िलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर करने के लिए आठ दिनों का समय मांगा था जो उन्हें दे दिया गया लेकिन, जुलाई 2013 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक एक अपील दो साल से अधिक की सज़स पाए किसी सांसद या विधायक की अयोग्यता के रास्ते में नहीं आती।

वरिष्ठ सपा नेता आज़म ख़ां ने हाल ही में संपन्न 2022 विधानसभा चुनावों में 10वीं बार रामपुर सीट से जीत हासिल की थी। विधायक चुने जाने पर आज़म ख़ां ने रामपुर लोकसभा सीट से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा के आकाश सक्सेना को हराया था।

ज्ञात रहे कि 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आजम खान के खिलाफ चोरी से लेकर भ्रष्टाचार तक के 87 मामले दर्ज किए गए।

जमीन क़ब्ज़ाने से संबंधित मामले में वे करीब दो सालों तक जेल में रहे थे। इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट अंतरिम जमानत मिलने के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया था।