नई दिल्ली:अमेरिका की एक तरफा कार्यवाही के बाद तुर्की पर आर्थिक संकट के बादल मंडराने लगे हैं,तुर्की की करेंसी लड़खड़ा गई है जिसके कारण महँगाई बढ़ना कुदरती बात है,इस मुश्किल घड़ी के तुर्की को उसके मित्र राष्ट्र फिलिस्तीन का भी साथ मिला है।
फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने गुरुवार को राष्ट्रपति रजब तय्यब एर्दोगान के साथ फोन कॉल पर तुर्की के साथ एकजुटता व्यक्त की।
राष्ट्रपति एर्दोगान अमेरिका के फैसले के बाद कहा था कि उनके पास अगर डॉलर है तो कोई बात नही हमारे पास अल्लाह है,तुर्की ने अमरीकी पादरी एंड्र्यू ब्रनसन को अक्टूबर 2016 में गिरफ़्तार किया था तो उसे शायद ही पता रहा होगा कि इसका असर दो साल बाद ऐसा होगा कि मुल्क की अर्थव्यवस्था हिल जाएगी।
राष्ट्रपति एर्दोगान के प्रेस प्रवक्ता के मुताबिक फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने तुर्की के आर्थिक संकट पर चिंता जताते हुए कहा कि इस संकट की घड़ी में पूर्ण रूप से तुर्की के साथ हैं और उन्हें हमारा पूर्ण समर्थन मिलता रहेगा।
फिलिस्तीन से पहले क़तर ने तुर्की के आर्थिक संकट को टालने के लिये 15 अरब डॉलर का निवेश किया है जिससे तुर्की के मुद्रा में सुधार आने की उम्मीद लगाई जारही है,क़तर के बादशाह तमीम बिन हमद अल थानी ने तुर्की राष्ट्रपति से बातचीत के बाद इस का ऐलान किया।
अमरीका-तुर्की की दोस्ती में खटास क्यों ?
अमरीका और तुर्की पुराने सहयोगी रहे हैं. उनका आपसी सहयोग दूसरे विश्वयुद्ध के दौर से शुरू हुआ. तुर्की 1952 से नैटो का हिस्सा भी है. फिर दोनों के बीच रिश्ते क्या एक साल में ही बदल गए? जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में मध्य-पूर्व मामलों के प्रोफ़ेसर आफ़ताब कमाल पाशा बताते हैं कि इसकी शुरुआत आज से 16 साल पहले ही हो गई थी।
वो बताते हैं, “साल 2002 में जब तुर्की में अर्दोआन की पार्टी एकेपी (जस्टिस एंड डेवेलपमेंट पार्टी) पार्टी सत्ता में आई है, तब उसने लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की हमारी पार्टी इस्लामिक पार्टी है और तुर्की में जोमुस्तफा कमालअतातुर्क के ज़माने से सेक्युलरजिम है, वह ढकोसला है. अर्दोआन की पार्टी यहां इस्लामिक नज़रिए से हुकूमत चला रही है. साथ ही तुर्की में सेना अक्सर नागरिक सरकारों का तख्ता पलटती रहती थी.”
“मगर एकेपी ने सेना पर नियंत्रण लगाया और उसका रसूख और दखल कम कर दिया. इसके साथ ही इन्होंने न्यायपालिका, मीडिया और बुद्धिजीवियों को निशाने पर लिया. जो धर्मनिरपेक्ष लोग इस्लामीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, उन्हें या तो जेल में डाल दिया गया या फिर मार डाला गया है.”
“विदेश नीति में भी बदलाव आया जब साल 2003 में अमरीका ने इराक पर हमला किया. उस समय वो तुर्की के जरिए सेना भेजना चाहता था मगर अर्दोआन ने इसका विरोध किया और जाने नहीं दिया. यह तुर्की का अपने नैटो सहयोगी अमरीका के खिलाफ सीधा कदम था. फिर उसने कई ऐसे कदम उठाए, जैसे कि ईरान से रिश्ते गहरे करना, इसराइल से रिश्ते तोड़ना, फिर जोड़ना या फिर अरब मुल्कों में मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करना. वो लगातार ऐसी नीतियां अपना रहे हैं जो यूरोपीय संघ, अमरीका और नैटो के नज़रिए में, 50 साल तक उनके साथी रहे तुर्की की नीतियों से अलग हैं.”