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मुग़लों के ज़माने का भारत दुनिया का सबसे अमीर देश था, ब्रिटिश राज में कैसे दुनिया का सबसे ग़रीब देश बन गया : चौंने वाले आंकड़े

दो साल पहले ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में 32 फ़ीसद ब्रितानी नागरिकों ने कहा था कि उन्हें देश के औपनिवेशिक इतिहास पर गर्व है।

दुनिया पर ब्रिटिश राज की जब भी बात होती है, तो भारत को सबसे बड़े औपनिवेशिक देश के उदाहरण के रूप में पेश किया जाता है। इसी के साथ, ब्रिटेन के क़ब्ज़े वाले भारत की तुलना मुग़लों के राज वाले भारत से भी की जाती है।

मुग़लों के दौर में भारत दुनिया का सबसे अमीर देश था और उसकी जीडीपी विश्व की कुल जीडीपी की एक तिहाई से भी ज़्यादा थी।

लेकिन जिस औपनिवशिक इतिहास पर ब्रितानी नागरिकों को गर्व है, उसकी तस्वीर ऐतिहासिक रिकॉर्ड से टकराती है। आर्थिक इतिहासकार रॉबर्ट सी एलन के शोध के मुताबिक़, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में ग़रीबी और भुखमरी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। एक समय सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश में सन् 1810 में 23 प्रतिशत ग़रीबी थी, जो 20वीं सदी के मध्य तक बढ़कर 50 प्रतिशत से अधिक हो गई थी।

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, 19वीं शताब्दी में लगातार अकाल और भुखमरी ने घातक रूप ले लिया था। उपनिवेशवाद से भारतीय लोगों को लाभ पहुचने की बात तो दूर, इसे मानवीय इतिहास की एक भयानक त्रासदी क़रार दिया जा सकता है।

इतिहासकारों का मानना है कि 1880 से 1920 तक (ब्रिटिश उपनिवेश का शिखर) ख़ास तौर पर भारत के लिए विनाश और तबाही का दौर था। 1880 के दशक में ब्रिटिश शासन द्वारा की गई मर्दुम शुमारी से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान मृत्यु दर में काफ़ी वृद्धि हुई। 1880 के दशक में हर 1,000 लोगों पर 37.2 मौतों से बढ़कर 1910 के दशक में 44.2 हो गई। जबकि जीवन प्रत्याशा 26.7 वर्ष से घटकर 21.9 वर्ष हो गई।


वर्ल्ड डवलप्मैंट पत्रिका में हाल में प्रकाशित हुए एक पेपर के मुताबिक़, 1881 से 1920 के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान, भारत में लगभग 16.5 करोड़ से ज़्यादा अतिरिक्त मौतें हुईं।

यहां सवाल यह है कि ब्रिटिश शासन में इतनी ज़्यादा मौतें कैसे हुईं? इन मौतों के कई कारण थे। उनमें से एक कारण यह था कि ब्रिटिश साम्राज्य ने प्रभावी रूप से भारत के औद्योगिक और व्यवसायिक क्षेत्र को नष्ट कर दिया था। उपनिवेशीकरण से पहले, भारत दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक उत्पादकों में से एक था। यह देश दुनिया भर में उच्च गुणवत्ता वाले वस्त्रों और हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात करता था। यहां तक कि इंग्लैण्ड में तैयार किया जाने वाला चमकीला कपड़ा भी यहां के कपड़े के मुक़ाबले में कहीं नहीं ठहरता था।

हालात उस वक़्त और भी बदतर होते चले गए, जब ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने भारतीयों के धन की लूट के लिए एक क़ानूनी प्रणाली स्थापित कर ली, जिसे समकालीन लोग धन की निकासी के रूप में जानते थे।

ब्रिटिश राज ने भारतीयों पर कर लगाया और फिर प्राप्त होने वाले राजस्व को भारतीय उत्पादों जैसे कि नीले रंग की डाई, अनाज, कपास, चाय और अन्य उत्पादों को ख़रीदने के लिए किया। इस तरह से इन सामानों को उन्होंने मुफ़्त में प्राप्त किया। दूसरे शब्दों में भारतीयों की मेहनत की कमाई से उनके ही उत्पाद ख़रीदे।

इस सिस्टम के तहत अंग्रेज़ों ने आज के खरबों डॉलर के मूल्यों के माल को चुरा लिया। देश में सूखा या बाढ़ के कारण होने वाले अकाल के दौरान भी अंग्रेज़ों ने बड़ी ही निर्दयता से इस प्रणाली को जारी रखा और करोड़ों भूखे लोगों के पेट पर लात माकर खाद्य पदार्थों का निर्यात जारी रखा।

इतिहास को बदला नहीं जा सकता और ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किए गए अपराधों को मिटाया नहीं जा सकता।