साहित्य

#माॅंगें_मिले_न_भीख…By-मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा
==========
#माॅंगें_मिले_न_भीख
किसी भी आम इंसान की तरह मुझे भी एक लंबे अरसे तक कुदरत के इंसाफ़ और नाइंसाफ़ी को लेकर अच्छी खासी ज़हनी जद्दोजहद रही है, मुझे भाग्यवाद का formula कभी समझ नहीं आया, मेरे दिमाग़ को प्रत्येक बात का कोई rationale answer चाहिए होता था, जबकि मेरे आस पास लगातार ऐसा कुछ न कुछ घट रहा था जो तर्क से परे था, मैंने अपने जीवन की बहुत सी घटनाओं के लिए बहुत दिमागी कसरत की ताकि कोई न कोई तार्किक जवाब मिल जाए, ज्योतिष साधना चाहा, मनोविज्ञान खंगाला, आध्यात्म टटोला यानि इन सबके विशेषज्ञों से यथा संभव चर्चाएं की ख़ुद भी कुछ प्रयास किए, लेकिन नतीजे वह नहीं मिले जो मैं चाह रही थी हालांकि यह कहना भी गलत होगा कि इस सबसे मुझे कुछ नहीं मिला, यक़ीनन बहुत कुछ मिला पर उस बात का उत्तर नहीं मिला जिसके लिए यह सब यत्न प्रयत्न मैं कर रही थी।

हार कर धीरे–धीरे मैंने अपने उन सवालों को खयाल में लाना छोड़ दिया, और वो मेरे दिमाग की तहों में कहीं गुम होते चले गए वैसे ही अनुत्तरित…. शायद मैंने अंजाने में ही भाग्यवाद के formula को मान लिया था पर मानसिक जुगाली जारी रही किन्हीं और कलेवरों में और वो सवाल भी गाहे बगाहे अपनें हिस्से की माथा फोड़ी करने आते ही रहे, अब भी आते हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मुझे यह अहसास सा हो रहा है कि कुदरत हमारे पास उसी चीज़ को क़ायम रहने देती है जिसकी हमें actually में ज़रूरत होती है, वो नहीं जिसे हम अपने लिए ज़रूरी मान रहे होते हैं और इस क्रम में वो हमसे चीज़ें, भावनाएं या इंसान दूर करती रहती है जो सबके दूर हो जाने के बावजूद भी बचा रह जाता है वही हमारा होता है, और हम मानें या न मानें लेकिन हमारी ज़िंदग़ी उसी से चलने वाली होती है।


बात को थोड़ा सरल करती हूं, प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तित्व किन्हीं विशेष कारणों और परिस्थितियों की देन होता है या तो इन कारणों या परिस्थितियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति उसके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और कुदरत उसके लिए वो साधन जुटाती है जिनके सहयोग से उसका यह व्यक्तित्व बना रहे, मैं इस बात का पहले भी उल्लेख कर चुकी हूं कि प्रत्येक की अपनी एक अलग driven force होती है और यही उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है। तो बतौर इंसाफ़ कुदरत आपके पास सब कुछ ख़त्म हो जाने या छिन जाने के बाद जो कुछ भी बाक़ी बचाए रखती है यक़ीन जानिए यह वही चीज़ होती है जो ख़ास आपके survival के लिए ज़रूरी होती है। अगर आपके पास धन बचा है तो धन, परिवार या समाज बचा है तो परिवार या समाज, प्रतिष्ठा बची है तो प्रतिष्ठा, और अगर कुछ भी नहीं बचा और सिर्फ़ आप बचे हैं तो खुश होइए कि कुदरत आपके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ आपको लायक मानती है।

तो मेरी फिलहाल की समझ यह कहती है कि जीवन का मध्यान्न आते- आते हमारे पास वही बचा रह जाता है जिसके सहारे हमने अपने जीवन का उत्तराह्न काटना है तो ग़ौर से देखिए कि आपके लिए क्या बचाया जा रहा है और उसको सहेजना सीखिए क्यूंकि अंततः यही वह सहारा है जो आपके लिए कुदरत ने चुना है।
ऐसा मुझे मेरे मतानुसार लगता है।

मनस्वी अपर्णा