साहित्य

*मायके वाले आ रहे हैं*

Laxmi Kumawat
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* मायके वाले आ रहे हैं *
इस कहानी की प्रमुख किरदार है काव्या। काव्या राजेन्द्र जी और रजनी जी की बहू, विराज की पत्नी है। काव्या की एक दो साल की बेटी नायरा भी है। छोटा सा परिवार है। काव्या की शादी को चार साल पूरे हुए हैं। इसी उपलक्ष्य में एक छोटा सा समारोह आयोजित किया है, जिसमें काव्या के मायके वालों को भी न्योता दिया गया है। उसके मायके वाले महाराष्ट्र में रहते हैं। वहीं, उसका ससुराल जयपुर में है।
जयपुर में काव्या के अलावा उसकी दो बड़ी बहनों के ससुराल भी हैं और असल समस्या यही है। दरअसल, काव्या के माता-पिता के कोई बेटा नहीं है। ले-देकर ये तीन बेटियां हैं। अब एक दिन भी किसी के घर में ज्यादा रह जाते हैं तो काव्या के ससुराल में बातें बन जाती है। ‘उसके घर तो रुक गए। वही एक बेटी है क्या? हम क्या बुरे थे, जो हमारे यहां नहीं रुके।’

पिछले चार सालों से ये सब सुनते-सुनते तो काव्या के दिल में डर ही बैठ गया है। जब भी उसे पता चलता है कि उसके मायके वाले आ रहे हैं, उसे घबराहट होने लग जाती है। ‘अब आने वाले एक-दो महीने तक मुझे ताने सुनने पड़ेंगे।’

आखिर माता-पिता की अपनी मर्जी है वो किस बेटी के पास रहना चाहते हैं, पर समझने वाला समझने को तैयार नहीं। दीदी के ससुर जी पापा के दोस्त रह चुके हैं। इसलिए मम्मी-पापा भी बड़ी दीदी के ससुराल में अपने आपको बहुत फ्री महसूस करते हैं।

ऊपर से काव्या की सास का छोटी-छोटी बातों को पकड़ लेना भी उन्हें अखरता था। उन्होंने हमें यह कह दिया, उन्होंने हमें वो कह दिया। एक तो तुम अपने घर पर रुकने के लिए बुलाते हो और फिर खुद से कोई बात बर्दाश्त नहीं होती। ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी’ वही हालत है। आखिर इंसान कितना सोच-समझकर बोले।

काव्या की शादी की सालगिरह के उपलक्ष में माता-पिता जयपुर आ चुके थे और बड़ी दीदी के यहां ठहरे थे क्योंकि बेटी के ससुराल खाली हाथ तो जा नहीं सकते थे, सो दीदी उन्हें तोहफे खरीदवा देती। इससे भी उसकी सास को आपत्ति हो रही थी कि सीधे यहीं आ जाते। तोहफें हम खुद ही उनके साथ जाकर खरीद लेते।

‘काव्या, तुम्हारे माता-पिता को तुम्हारी बड़ी बहन के यहाँ रुकने की क्या जरूरत थी? हमारे पास सीधे नहीं आ सकते थे? क्या हमें खरीदारी करनी नहीं आती।’

‘नहीं मम्मी जी, दीदी के ससुर जी पापा के दोस्त हैं तो वे उनके साथ कंफर्ट जोन में रहते हैं। इसीलिए वहीं चले गए। वैसे आ तो रहे हैं कल।’
‘हां, लेकिन प्रोग्राम हमारे घर पर है तो फिर हमारे घर पर आना चाहिए था ना। लगता है तेरे मम्मी-पापा तुझसे ज्यादा प्यार नहीं करते।’

काव्या ने वहां से उठकर जाना ही बेहतर समझा क्योंकि थोड़ी देर और वहां पर बैठती तो शायद सिरदर्द ही शुरु हो चुका होता। यह बात रजनी जी को अच्छी नहीं लगी। जब विराज ऑफिस से आया तो पता नहीं रजनी जी ने उससे क्या-क्या कहा। वह नाराज होते हुए काव्या के पास आया और कहने लगा, ” यार तुम्हारे मम्मी-पापा को जरा सी भी अक्ल नहीं है क्या? जब यहां के प्रोग्राम के लिए आए हैं तो यही आना चाहिए था ना। मेरी मम्मी-पापा का कोई स्वाभिमान नहीं है क्या? जो हर बार इस तरह से बेइज्जत होते हैं।”

“विराज कैसी बात कर रहे हो तुम? तुम ऐसे मेरे मम्मी-पापा के लिए कैसे बोल सकते हो?”

“यार, मैं परेशान हो गया हूं तुम्हारे मम्मी-पापा के इस रवैये से। जब भी आते हैं, मैं परेशान हो जाता हूं।”

“तुम क्यों परेशान होते हो मेरे माता-पिता के आने से। परेशान तो मैं हो जाती हूं मेरे माता-पिता के आने से। तुम्हारे मम्मी-पापा को पता नहीं किस चीज से समस्या है। मेरे मम्मी-पापा ज्यादा दिन अगर मेरी बड़ी बहन के घर पर रह जाते हैं तो आखिर उन्हें क्यों परेशानी होती है। दीदी के ससुर जी पापा के दोस्त हैं। कुछ दिल की बातें कर लेते हैं वो लोग।”

“हां, एक समधी को ज्यादा इज्जत दो और दूसरे को दो ही मत। यह कोई बात होती है?”

“अरे पर ये उन लोगों की मर्जी कि वो लोग कहां रुकना चाहते हैं। और वैसे भी आ तो रहे हैं कल। और तुम क्यों परेशान हो रहे हो। मंझली दीदी के घर पर तो नहीं रुके, वह तो कुछ नहीं कह रही। परेशान तो मुझे होना चाहिए कि जब भी मेरे माता-पिता यहां आते हैं मेरे घर की शांति भंग हो जाती है। जीना दुश्वार हो जाता है मेरा क्योंकि सुबह की शुरुआत भी तानों से होती है मेरी। हर लड़की अपने माता-पिता के आने से बेहद खुश होती है, पर शायद मैं अकेली हूं जो उनके आने से डर जाती है। उनके आने पर ही मेरी खुशियाँ खो जाती हैं क्योंकि उन्हें भी सुनना पड़ता है और मुझे भी।”

” हां, हम तो तुम्हारी खुशियों पर ग्रहण है ना कि हमारे कारण तुम्हारी खुशियाँ खो जाती हैं। मेरे माता-पिता पर बेवजह का इल्जाम मत लगाओ।”
“सही कहा, अभी तुम्हें कुछ भी समझ नहीं आएगा। तुम्हें तब समझ में आएगा जब तुम्हारी नायरा के साथ ऐसा होगा। भगवान ना करे उसे भी मेरी तरह ससुराल मिले, तो तुम्हें अच्छी तरह समझ से आ जाएगा। जब तुम्हारी बेटी अपने माता-पिता की ससुराल न आने की कामना करें।”

विराज के पास काव्या की इस बात का कोई जवाब नहीं था, पर काव्या अपने दिल की बात कह चुकी थी।

“मायके वाले आ रहे हैं” यह ऐसा वाक्य है जिसे सुनकर हर महिला के चेहरे पर अपने आप मुस्कान आ जाती है। चाहे वह नवविवाहिता हो या बुजुर्ग महिला। हर उम्र की महिला के चेहरे पर सदा मुस्कान लाने वाला यह वाक्य कई बार सिरदर्द भी बन जाता है क्योंकि उसके बाद के तूफान को उसे ही झेलना पड़ता है।

मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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