सेहत

मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं दुनियभार में तेज़ी से बढ़ती जा रही हैं, भारत में भी बढ़ रहा है ख़तरा : रिपोर्ट

शरीर को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की सेहत को ठीक रखने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना जरूरी है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं, इनमें से एक में भी गड़बड़ी का असर दूसरी सेहत पर सीधे तौर पर पड़ सकता है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं दुनियभार में तेजी से बढ़ती जा रही हैं, जिसको लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं।

विशेषज्ञ कहते हैं, अक्सर हम लोग शरीर को स्वस्थ रखने के उपाय तो कर लेते हैं, पर मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते। यह खतरनाक हो सकता है क्योंकि कई मानसिक बीमारियों को गंभीर शारीरिक रोगों का प्रमुख कारण माना जाता है।

इसी बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इसके अनुसार सिंगापुर में एक तिहाई से अधिक युवा आबादी खराब मानसिक स्वास्थ्य का सामना कर रही है। गुरुवार को जारी युवा मानसिक स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार, देश के एक तिहाई युवाओं ने अवसाद, चिंता या तनाव के गंभीर या बहुत गंभीर लक्षणों का अनुभव करने की बात स्वीकारी है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ये काफी चिंताजनक विषय है। तनाव-अवसाद के गंभीर लक्षण कई मामलों में खतरनाक हो जाते हैं, जिसपर समय रहते ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

क्या है इसकी वजह?

सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 35 वर्ष की आयु के हर तीन में से एक युवा (30.6 प्रतिशत) ने बताया कि वे चिंता और तनाव जैसे मानसिक रोगों से बहुत परेशान हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (आईएमएच) द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि जिन युवाओं की साइबर बुलिंग हुई, जिनका रोज सोशल मीडिया पर तीन घंटे से अधिक समय बीतता है या फिर जो लोग अपनी शरीर की बनावट या किसी शारीरिक समस्या से परेशान हैं उनमें लक्षण और भी अधिक देखे गए हैं।

क्या कहती हैं अध्ययकर्ता?

साल 2022 में सिंगापुर में 15-35 वर्ष की आयु के बीच मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का आकलन करने के लिए ये शोध शुरू किया गया था, जिसके चौंकाने वाले रिपोर्ट देखे गए हैं।

आईएमएच मेडिकल बोर्ड की सदस्य और अध्ययन की प्रमुख लेखक प्रोफेसर स्वप्ना वर्मा कहती हैं, पिछली पीढ़ियों की तुलना में आज के युवा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ कई अन्य जटिलताओं के अधिक शिकार देखे जा रहे हैं। सोशल मीडिया उनमें लगातार तुलना करने वाली सोच भरता जा रहा है, जिससे शरीर की बनावट जैसे मोटापा, कद, रंग, बालों की दिक्कत को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ जाती हैं। इसका मन पर नकारात्मक असर होता है।

भारत में भी बढ़ रहा है खतरा

गौरतलब है कि युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम सिंगापुर तक ही सीमित नहीं है, दुनिया के कई देश इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। भारत में भी इसका जोखिम बढ़ता हुआ देखा जा रहा है।

आंकड़ों के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भारत में भी एक बड़ी चिंता का विषय हैं, जो हर सात में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। भारत में 2016 के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, हर 20 में से एक व्यक्ति अवसाद से पीड़ित पाया गया। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार, भारत की लगभग 18.1% वयस्क आबादी या 40 मिलियन लोग चिंता विकारों से प्रभावित हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

बातचीत में वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं, पिछले एक दशक में ये समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं, कोरोना के बाद इसमें और तेजी आई है। समय के साथ लोगों का आपसी मेल-जोल कम होना, वर्चुअल दुनिया को हकीकत मानना, सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल इसका कारण माने जा रहे हैं। गरीबी और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं इन विकारों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

सबसे चिंताजनक बात ये है कि बड़ी संख्या में लोग तो ऐसे हैं जिन्हें वर्षों से मानसिक विकार होगा पर कभी निदान ही नहीं हो पाया। जिन्हें पता भी है उनमें से भी कई लोग सामाजिक कलंक के भाव से इलाज नहीं ले रहे हैं। एनसीआरबी के डेटा बताते हैं कि देश में आत्महत्या के मामले भी बढ़ गए हैं, ये खराब मानसिक स्वास्थ्य का ही परिणाम है।

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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: तीसरी जंग हिंदी के लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।