विशेष

मानव के पूर्वजों की ”पूंछ” कब और कैसे ग़ायब हुई?

विज्ञान कहता रहा है कि मानव के पूर्वजों की पूंछ हुआ करती थी. तो फिर यह पूंछ कब और कैसे गायब हुई होगी? रिसर्चरों ने पहली बार इसका एक वैज्ञानिक कारण ढूंढने में सफलता हासिल की है.

मानव के पूर्वजों की पूंछ होती थी, तो फिर हमारी क्यों नहीं है? करीब दो से ढाई करोड़ साल पहले जब बंदरों से विकसित होकर कपि की प्रजाति तैयार हुई, तो इंसान के जीवनवृक्ष से पूंछ अलग हो गया. डार्विन के जमाने से ही वैज्ञानिकों को यह सवाल उलझाता रहा है कि आखिर यह कैसे हुआ होगा?

अब रिसर्चरों ने कम-से-कम एक ऐसे प्रमुख जेनेटिक बदलाव की पहचान कर ली है, जिसकी वजह से यह परिवर्तन हुआ होगा. 28 फरवरी को नेचर जर्नल में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. रिपोर्ट के सह लेखक और बोर्ड इंस्टिट्यूट के आनुवांशिकी विज्ञानी बो जिया ने बताया, “हमने एक महत्वपूर्ण जीन में एक म्यूटेशन को खोजा है.”

बिना पूंछ वाले चूहे
रिसर्चरों ने मानव समेत कपियों की छह प्रजातियां और पूंछ वाले बंदरों की 15 प्रजातियों के जीनोम की तुलना की, ताकि अलग-अलग समूहों में प्रमुख अंतर की पहचान की जा सके. एक बार जब उन्होंने म्यूटेशन को खोज लिया, तो फिर जीन एडिटिंग टूल सीआरआईएसपीआर के जरिए अपने सिद्धांत का परीक्षण किया. इसमें उन्होंने चूहों के भ्रूणों में उसी जगह परिवर्तन किए. इसके बाद उन भ्रूणों से जो चूहे पैदा हुए, उनकी पूंछ नहीं थी.

जिया ने सावधान करते हुए कहा है कि मुमकिन है, दूसरे जेनेटिक बदलावों ने भी इंसान की पूंछ के खत्म होने में भूमिका निभाई हो.

इसके साथ ही एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या पूंछ नहीं होने से कपियों के पूर्वजों और फिर इंसानों को धरती पर जीने में कोई मदद मिली थी? या फिर यह महज एक म्यूटेशन की वजह से हुआ और धरती पर इंसानों की आबादी दूसरी वजहों से बढ़ी?

क्लेमसन यूनिवर्सिटी के आनुवांशिकी विज्ञानी मिरियम कोंकेल का कहना है, “यह संयोगवश हुआ हो सकता है, लेकिन मुमकिन है कि इससे विकास की प्रक्रिया में बहुत बड़ा फायदा मिला हो.” मिरियम कोंकेल इस रिसर्च में शामिल नहीं हैं.

पूंछ नहीं होने के फायदे
पूंछ के नहीं होने से मदद मिली होगी, इसे लेकर कई सिद्धांत हैं. इनमें से एक तो यह है कि पूंछ रहित होने पर मानव आखिरकार सीधे खड़े होकर चलने में सफल हुआ. स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूट के ह्यूमन ओरिजिंस प्रोजेक्ट के निदेशक रिक पॉट्स का कहना है कि पूंछ का नहीं होना कई कपियों के लिए शरीर को लंबवत रखने की दिशा में पहला कदम रहा होगा.

यहां तक कि पेड़ों पर रहना छोड़ने से पहले ही यह हुआ होगा. आज भी सारे कपि जमीन पर नहीं रहते हैं. ओरांगउटन और गिब्बॉन बिना पूंछ वाले कपि हैं और ये अब भी पेड़ों पर ही रहते हैं. हालांकि पॉट ने ध्यान दिलाया है कि इनकी चाल बंदरों से काफी अलग होती है.

बंदर पेड़ों की एक शाखा से दूसरी शाखा पर दौड़-भाग करते हैं और इस दौरान पूंछ का इस्तेमाल संतुलन बनाने में करते हैं. दूसरी तरफ कपि पेड़ की शाखाओं के नीचे लटकते हैं, एक से दूसरी शाखा पर जाने के दौरान भी वो लटक-लटक कर ही चलते हैं. इस दौरान उनका शरीर लंबवत सीधा होता है.

50 करोड़ साल पहले पूंछ लगभग सभी कशेरुकी जीवों के शरीर का अनिवार्य हिस्सा थी. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके खत्म होने से शायद हमारे पूर्वजों को पेड़ों से उतर कर जमीन पर रहने में मिली हो.

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के जीवविज्ञानी इताई याना भी इस रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक हैं. उनका कहना है कि पूंछ का खत्म होना निश्चित रूप से एक बड़ा बदलाव था. हालांकि इसके कारण का निश्चित तौर पर पता लगाने का एक ही तरीका है, “टाइम मशीन का आविष्कार.”

एनआर/एसएम (एपी, रॉयटर्स)