सेहत

मां की बनाई हथपोई रोटी!

अरूणिमा सिंह
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पनहेथी या हथपोई रोटी!
मेरा संयुक्त नहीं बल्कि महासंयुक्त परिवार था।
बाबा तीनों भाई परिवार सहित एक साथ एक ही घर में रहते थे।
सबसे बड़के भाई यानी मेरे बाबा, मेरे बाबा के बड़के पुत्र यानि बाबू जी और उनकी पत्नी मेरी मां यानी घर की ही नहीं बल्कि कुल की सबसे बड़की और उस समय तक यानि मेरे बचपन में इकलौती बहुरिया थीं।
परिवार में सदस्यों की संख्या बहुत अधिक थी और सभी सदस्य वरिष्ठ व जवान लोग थे। बच्चों में हम भाई बहन दो ही थे।
मां अकेले ही पूरी रसोई संभालती थीं। दोनों आजी पर घर की ही बहुत ज्यादा जिम्मेदारी थी। यूं भी हमारे यहां बहु के ब्याह कर आने के बाद सास को रसोई घर से फुर्सत मिल जाती है।
जब तक बड़की बहु अकेली रहती है तब तक रसोई वो अकेले ही संभालती है और जब देवरानी आती है तब देवरानी जेठानी मिलकर रसोई संभालते हैं।
अगर छोटी ननद होती है तब तो सब्जी काटने, आटा गूंथने जैसे काम में मदद मिल जाती है।
मेरी बुआ नहीं थीं इसलिए मां को अकेले रसोई संभालना होता था।
कभी कभी देर हो रही होती थी तो मुझे आटा चालने यानी छानने के लिए कह देती थी। मैं सुकुमार सी आटा छानते छानते रोने लगती थी कि कितना आटा छानना है मेरे हाथ दुख गए।
मां हंस कर कहती बताओ तुम इतने में ही थक गई और मुझे इतना सारा आटा गूंथना है और फिर चूल्हे आगे बैठकर रोटी भी बनाना है।
इतने सदस्यों के लिए कम से कम पचास रोटी एक समय में मां बनाया करती थीं। सारी रोटी बना लेने के बाद अंतिम की दो तीन रोटी पनहेथी बनाती थीं।
पनहेथी यानी सूखा आटा लगाए बगैर रोटी बनाना।
इस रोटी को बनाते समय सूखे आटे के बजाय पानी का प्रयोग किया जाता था। हाथों में पानी लगा कर फिर दोनों हथेली से थपकी देकर रोटी बड़ी की जाती है।
ये पनहेथी रोटी अधकची सी तवे पर सेंकी जाती है और फिर चूल्हे में सावधानी से खड़ी कर देते हैं। चूल्हे की गर्मी से ये सुनहरी रंग की सिंक भी जाती है और दोनों तरफ से डिब्बे जैसी फूल भी जाती है।
मां की बनाई हथपोई रोटी के तीन परत होते थे। दो रोटी के छिलके और एक मोटी परत रोटी का गूदा की तरह अंदर होता था।
ये मोटी हथपोई खाने के शौकीन मेरे मझले बाबा जी थे। मां उनके लिए हर दिन दोनों समय दो मोटी रोटी जरूर बनाया करती थीं।
कभी कभी जब आटा कम होता था तब रोटी में लगाने वाला सूखा आटा यानि परथन को गूंथ कर हथपोई रोटी बना देती थी।
परथन वाली रोटी का स्वाद तो कई गुना अधिक बढ़ जाता था क्योंकि परथन का आटा मोटा हो जाता था इसलिए इस आटे से बनी रोटी दानेदार और कुरकुरी सी बनती थी बाकी सोंधी मिठास तो होती ही थी।
इस मोटी हाथपोई रोटी को आप गर्म गर्म ही सरसों तेल और तीखे नमक संग या गन्ने के रस से बने सिरके संग खाइए अहा! स्वाद कभी नहीं भूलेंगे!

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अरूणिमा सिंह