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महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद हिंसक हो गया है, क्या है यह पूरा विवाद, जानिये!

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद हिंसक हो गया है. इस विवाद की जड़ 1956 के एक कानून में है और हल कहीं नजर नहीं आ रहा है. क्या है यह पूरा विवाद…

महाराष्ट्र विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर कर्नाटक के 865 गांवों को अपने यहां मिलाने की ‘कानूनी प्रक्रिया’ शुरू करने की बात कही है. कुछ ही दिन पहले कर्नाटक विधानसभा ने ऐसा ही एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया था कि अपनी एक इंच जमीन भी किसी अन्य राज्य को नहीं दी जाएगी.

नेताओं के बीच का यह विवाद हिंसा के रूप में सीमा तक पहुंच चुका है. बीते मंगलवार दोनों राज्यों में एक दूसरे के वाहनों पर हमले किए गए. इस तरह हिंसा के और भड़कने का डर भी बढ़ गया है. क्या है यह विवाद जिसने मसले को बारूद के ढेर में बदल दिया है?

महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद
महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के बीचसीमा विवाद की जड़ 1956 के राज्य पुनर्गठन कानून में है. इस कानून के तहत राज्यों को भाषा के आधार पर पुनर्गठित किया गया था. इस तरह 1 मार्च 1960 को महाराष्ट्र वजूद में आया. तभी से यह उन 865 गांवों पर दावा कर रहा है, जिनमें मराठी भाषी लोग रहते हैं. इन गांवों में बेलगावी (जिसे पहले बेलगाम कहते थे), कारवर और निपाणी शामिल हैं. कर्नाटक इन गांवों को छोड़ने को राजी नहीं है.

25 अक्टूबर 1966 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया था जिसने बेलगाम पर महाराष्ट्र के दावे को खारिज कर दिया था. हालांकि उस आयोग ने 264 गांवों को महाराष्ट्र में शामिल करने की सिफारिश की थी. इन गांवों में निपाणी, खानपुर और नंदगढ़ शामिल हैं. साथ ही आयोग ने महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक को देने की सिफारिश भी की थी. इन गांवों में जट्ट, अक्कलकोट और सोलापुर शामिल थे.

महाराष्ट्र ने आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और यह विवाद लटक गया. 2004 में महाराष्ट्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. उसी दौरान कर्नाटक ने बेलगाम का नाम बदकर बेलगावी कर दिया और उसे राज्य की दूसरी राजधानी बना दिया.

कानूनी हल की जरूरत
कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों ही राज्य इस बात को समझ रहे हैं कि अब इस विवाद का हल राजनीतिक तरीकों से नहीं निकाला जा सकता और इसे कानूनी तरीकों से हल किए जाने की जरूरत है. 2004 से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. दोनों राज्य अपने-अपने दावे छोड़ने को तैयार नहीं हैं. अलग-अलग दलों की सरकारें आने के बावजूद राज्यों के रुख नहीं बदले हैं.

2010 में केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में पुनर्गठन कानून के तहत राज्यों की सीमाओं के निर्धारण को सही ठहराया था. सरकार ने कहा जिन 1956 के कानून के तहत क्षेत्र विशेष को अलग-अलग राज्यों को देना सही था.

 

विवाद पर राजनीति
यह विवाद हमेशा से दोनों राज्यों की राजनीति के केंद्र में रहा है. महाराष्ट्र में हर पार्टी के घोषणापत्र में इस मुद्दे का जिक्र होता है और राज्यपाल जब विधानसभा में भाषण देते हैं, तब भी इस विवाद पर बात होती है. लेकिन इस बार मामला आगे बढ़ गया है.

दो हफ्ते पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सीमा विवाद की समीक्षा करने के लिए एक बैठक बुलाई और अपने दो मंत्रियों, चंद्रकांत पाटील व शंभूराज देसाई को इस विवाद के राजनीतिक व कानूनी हल खोजने की जिम्मेदारी सौंप दी. साथ ही, उन्होंने बेलगावी और अन्य मराठीभाषी इलाकों के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का ऐलान कर दिया.

एक ही दिन बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने जवाबी कार्रवाई करते हुए महाराष्ट्र के कन्नड़ स्कूलों के लिए वित्तीय मदद की घोषणा कर दी. बोम्मई ने यह भी कहा कि उनकी सरकार महाराष्ट्र के सांगली जिले के 40 गांवों पर दावा करने पर विचार कर रही है. सोलापुर जिले के कुछ सीमांत गांवों पर भी बोम्मई ने दावा ठोक दिया है.

इस कदम की महाराष्ट्र में तीखी प्रतिक्रिया हुई और वहां के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार ‘एक भी गांव कर्नाटक को नहीं देगी.’ उसके बाद ही जगह-जगह कई बार हिंसा हो चुकी है.

रिपोर्टः विवेक कुमार

 

आकाशवाणी समाचार
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महाराष्ट्र विधानसभा ने आज सर्वसम्मति से महाराष्ट्र के मराठी भाषी 865 गांवों के साथ-साथ कर्नाटक के बेलगाम, निप्पनी, कारवार, बीदर और भाल्की को महाराष्ट्र में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया।

ANI_HindiNews
@AHindinews
बेलगावी, कर्नाटक | महाराष्ट्र एकीकरण समिति और राकांपा के सदस्यों ने अंतर्राज्यीय सीमा मुद्दे को लेकर कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा के पास कोग्नोली टोल प्लाजा के पास विरोध प्रदर्शन किया, धारा 144 लागू है।

पुलिस का कहना है कि महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा मुद्दे को लेकर अधिकारी अलर्ट पर हैं।

Akhilesh Sharma
@akhileshsharma1

महाराष्ट्र, कर्नाटक और केंद्र तीनों जगह बीजेपी सरकार होने के बावजूद इन दो राज्यों का सीमा विवाद बताता है कि क्षेत्रीय अस्मिता किस कदर हावी है। भाषा के आधार पर राज्यों के गठन के बाद भी कुछ ऐसे ऐतिहासिक विवाद चल रहे हैं जो ठीक नहीं। इनका जल्दी से जल्दी निपटारा होना चाहिए।

ANI_HindiNews
@AHindinews

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक में तय हुआ कि (महाराष्ट्र-कर्नाटक)सीमा विवाद पर कोई भी पक्ष नया दावा नहीं करेगा। कर्नाटक में मंत्रियों, विधायकों और कांग्रेस अध्यक्षों द्वारा किए गए दावे गृह मंत्री के साथ बैठक के अनुसार नहीं हैं: महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री

Shashank Dwivedi
@vickyBadshahsha

Sanjay Raut: ‘चीन जैसे भारत में घुसा है वैसे हम कर्नाटक में घुसेंगे’, सीमा विवाद पर संजय राउत की चुनौती
कर्नाटक और महाराष्ट्र सीमा मुद्दे पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों राज्यों के बीच बढ़ते तनाव पर अब शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता संजय र…

DW Hindi
@dw_hindi

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच का ये सीमा विवाद दशकों पुराना है. भाषायी आधार पर स्टेट रीऑर्गनाइजेश ऐक्ट, 1956 के माध्यम से हुए राज्यों के पुनर्गठन के अंतर्गत मई 1960 में महाराष्ट्र राज्य बना. तब से ही वह #Belagavi (पहले बेलगाम) समेत कर्नाटक के 865 गांवों पर अपना दावा करता रहा है.