इतिहास

महान स्वतंत्रता सेनानी मौलवी अली मुसालियर को 17 फ़रवरी 1922 को फांसी पर लटका दिया गया था

Ataulla Pathan
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17 फरवरी- यौमे शहादत
स्वतंत्रता सेनानी मौलवी अली मुसालियर( र.अ.)
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📘 अखिरकार *मौलवी अली मुसालियर र.अ. को 17 फरवरी सन् 1922 को फांसी पर लटका दिया गया था।*

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🔵 केरल के मंजेरी ज़िले के पण्डीक्कड गांव में सन् 1853 में पैदा हुए मौलवी अली मुसालियर र.अ. के वालिद का नाम मोहिउद्दीन और वालिदा का नाम आमिना था। आपकी शुरुआती पढ़ाई मंजेरी में ही हुई। उसके बाद आला मज़हबी तालीम के लिए मौलवी अली र.अ.मक्का चले गये। वहां से लौटकर आप एक स्कूल टीचर हो गये।

🟢उस समय मालाबार के
इलाकों में *मोपला मूवमेंट शुरू हो चुका था* जिसका असर ईस्ट वेस्ट मंजरी पर भी पड़ा था। नतीजे के तौर पर इस इलाके में भी ब्रिटिश कारिंदों की जुल्मो ज्यादती बढ़ने लगी थी। मौलवी मुसालियर र.अ. साहब ने इन हालात का जायज़ा बहुत बारीकी से किया और नौजवानों की एक टीम बनाकर उन सभी जगहों पर लोगों में अंग्रेजों के ख़िलाफ आंदोलन करने के लिए मीटिंग की जहां मुकामी मोपला-किसानों पर अंग्रेज़ अफ़्सरों के ज़रिये जुल्म हो रहे थे। इससे मोपला किसान अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए तैयार हो गये।

🟣इसके बाद अली साहब ने महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जोहर र.अ. से मुलाक़ात करके उन्हें यहां के किसानों पर जुल्मों ज्यादती की जानकारी देकर इसे नेशनल मूवमेंट का हिस्सा बनाया।

मौलवी अली र.अ.के द्वारा नौजवानों को ट्रेन्ड करने की खबर जब अंग्रेज़-अफ्सरों को हुई तो उन्होंने आपको गिरफ्तार करने के लिए पुलिस भेजी।

मुकामी किसानों से पुलिस की ज़बरदस्त झड़पें हुई, लेकिन मौलवी अली को गिरफ्तार नहीं किया जा सका।

🟡दूसरी बार ब्रिटिश अफसर ज्यादा तैयारी से बड़ी तादात में फोर्स लेकर आपकी गिरफ्तारी के लिए पहुंचे, तो उन्हें खिलाफत लीडर मौलवी कुनाई कादर साहब की कयादत में हज़ारों मोपला- किसानों की भीड़ का सामना करना पड़ा ।

🟤दोनों में जबरदस्त मुकाबला हुआ लेकिन अंग्रेज़ अफ़सरों को भीड़ के आगे झुकना पड़ा। इस बार भी मौलवी अली र.अ.की गिरफ्तारी न हो सकी, जबकि अंग्रेज़ पुलिस नेगोलियां भी चलायी । जवाब में अवाम ने ईटों, पत्थरों और तीरों से मुकाबला किया ।अंग्रेज़ अफ़सरों को वापस होना पड़ा।अंग्रेजों ने मौलवी अली र.अ.को खतरनाक बागी के नाम से मशहूर कर दिया।

🟢मौलवी साहब र.अ.ने कांग्रेस के सूबाई लीडरों केशव मेनन, मोहम्मद अब्दुल रहमान, ई. गोपाल राव और मौलवी ई. मोइदू से मीटिंग कर यह तय किया कि दो बार की लड़ाइयों में कोई नतीजा भी नहीं निकला और मोपलाओं का काफ़ी नुक्सान भी हुआ- लिहाज़ा, अंग्रेज़-अफसरों से बातचीत करके मामले का
हल निकालने की कोशिशें की जायें। इसके लिए ब्रिटिश अफुसर तैयार हो गये।

🟡त्रिरूनेगादी में मीटिंग तय हुई, लेकिन जब अंग्रेज़ अफ़सर वहां पहुंचे तो उन्होंने भारी फोर्स के साथ पूरी त्रिरूनेगादी को घेर लिया। मुजाहेदीन ने जब यह देखा तो वे उन्होंने जामा-मस्जिद (जहां मौलवी अली मुसालियर र.अ.ठहरे हुए थे) पहुंचकर मोर्चाबंदी कर ली। उस वक्त 114 मुजाहेदीन वहां मौजूद थे।
🔵अंग्रेज़-अफ़सरों ने मौलवी साहब को सरेंडर करने के लिए कहा, लेकिन मुजाहेदीन और अवाम इसके लिये राज़ी नहीं हुई।

अंग्रेज़-अफ़सरों ने गोलियां चलानी शुरू कर दिया। जवाब में मुजाहेदीन ने भी गोलियां चलायी लेकिन असलहों की कमी की वजह से बहुत देर तक मुकाबला नहीं कर सके और आख़िरकार 32 मुजाहेदीन के साथ मौलवी साहब गिरफ्तार कर लिये
गये।

🟣इस लड़ाई में *जंगे-आज़ादी के 22 दीवानें शहीद हुए*। अंग्रेज़ी फौज के 20 सिपाही और अफ़सर भी मारे गये।
🟣ब्रिटिश अफसरों ने बिना मुकदमा चलाये ही स्पेशल मजिस्ट्रेट ऑन ड्यूटी के हुक्म से *मौलवी अली र.अ.और 12 मुजाहिदों को मौत की सज़ा*, जबकि बाकी को उम्रकैद की सज़ा सुना दी। इस तरह मौलवी अली मुसालियर को 17 फरवरी सन् 1922 को फांसी पर लटका दिया गया।

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संदर्भ : 1)THE IMMORTALS
— Syed Naseer Ahamed
*लहू बोलता भी है*
– *सय्यद शहनवाज अहमद कादरी,कृष्ण कल्की*

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संकलक तथा अनुवादक लेखक-
*अताउल्लाखा रफिक खास पठाण सर टूनकी
संग्रामपूर,बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726