इतिहास

*महान स्वतंत्रता सेनानी भारत-रत्न ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ”सरहद्द गांधी”* का जीवन!

Ataulla Pathan
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20 जानेवारी यौमे वफात
*स्वतंत्रता सेनानी भारतरत्न ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान सरहद्द गांधी*

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📗 *“दो बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित* हुए खान अब्दुल गफ्फार खान जिन्हे बादशाह खान भी कहते है, की जिंदगी और कहानी के बारे में लोग कितना कम जानते हैं।
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📕 *98 साल की जिंदगी में 35 साल उन्होंने जेल में* सिर्फ इसलिए बिताए ताकि इस दुनिया को इंसान के रहने की एक बेहतर जगह बना सकें।”

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📙 *महात्मा गांधी को छह-सात वर्ष तक जेल* में रहना पड़ा, *सू की को 15 वर्ष* तक और *नेल्सन मंडेला को 27 वर्ष* तक।

📘लेकिन यह सब *खान अब्दुल गफ्फार खान के संघर्ष* के सामने कुछ नहीं, *जिन्होंने अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर हिस्सा ब्रिटिश राज और फिर पाकिस्तान की जेलों* में गुजार दिए।

📗अपनी पूरी *जिंदगी मानवता की कल्याण के लिए संघर्ष* करते रहे ताकि एक बेहतर कल का निर्माण हो सके। सामाजिक न्याय, आजादी और शांति के लिए जिस तरह वह जीवनभर जूझते रहे,

📕वह *उन्हें नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गांधी* जैसे लोगों के *बराबर खड़ा* करती हैं।

📙बादशाह खान की *विरासत आज के मुश्किल वक्त में उम्मीद की लौ* जलाती है।

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🟪 *श्रीमती इंदिरा गांधी के आग्रह पे जब भारत आये*

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🟢 खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमान्त गांधी) 1969 में भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विशेष आग्रह पर इलाज के लिए भारत आये। हवाई अड्डे पर उन्हें लेने श्रीमती गांधी और जे पी नारायण गए ।

🟤 खान जब हवाई जहाज से बाहर आये तो *उनके हाथ में एक गठरी* थी जिसमे उनका कुर्ता पजामा था । मिलते ही *श्रीमती गांधी ने हाथ बढ़ाया उनकी गठरी की तरफ – “इसे हमे दीजिये ,हम ले चलते हैं”*

🟣 *खान साहब ठहरे, बड़े ठंढे मन से बोले – “यही तो बचा है ,इसे भी ले लोगी” ?*

*जे पी नारायण और श्रीमती गांधी* दोनों ने सिर झुका लिया ।

🟡 *जे पी नारायण* अपने को संभाल नहीं पाये *उनकी आँख से आंसू गिर रहे थे* । *बटवारे का पूरा दर्द* खान साब की इस बात से बाहर आ गया था ।

*क्योंकि वो बटवारे से बेहद दुखी थे । वे भारत के साथ रहना चाहते थे ,लेकिन भूगोल ने उन्हें मारा* ।

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*खान अब्दुल गफ्फार खान साहब की जीवन एक संघर्ष*

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🟢भारतरत्न खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का जन्म 6 फ़रवरी 1890 को चरसद्दा, ख़ईबर, पख़्तूनख़्वा, पेशावर जो कि वर्तमान में पाकिस्तान क्षेत्र का हिस्सा है, में हुआ था। पख़्तूनी पठान परिवार के ग़फ़्फ़ार ख़ां पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ते थे, हर समय पाकओो-पाकीज़ा रहते थे तथा क़ुरान शरीफ़ का नियमित अध्ययन भी करते थे। उनकी इसी सच्ची धार्मिक प्रवृति ने ही उन्हें सच्चा मानव प्रेमी, सच्चा देशभक्त तथा अहिंसा का पालन करने वाला बना दिया था। जबकि स्वभावतः पठान क़ौम की गिनती मार्शल व लड़ाकू क़ौमों में की जाती है। परन्तु ग़फ़्फ़ार ख़ां ने हमेशा सत्य व अहिंसा का परचम बुलंद रखा। महात्मा गाँधी से उनकी घनिष्ठ मित्रता का आधार ही दोनों की वैचारिक एकता ही थी। दोनों ही नेता अथवा महापुरुष अंग्रेज़ों से अहिंसक तरीक़े से लड़ाई लड़ने के पक्षधर थे यानि सत्य-अहिंसा ही दोनों का सर्वप्रिय ‘शस्त्र’ था। और *दूसरे यह की दोनों ही नेता धर्म के नाम पर भारत के विभाजन के प्रबल विरोधी थे*।

🟣अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान ने जिन्नाह की ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था और जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की मांग को स्वीकार कर लिया तो ग़फ़्फ़ार ख़ां ने दुख भरे लहजे में कहा था कि – ‘आपने तो हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है।

🔵जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज़ भारत को विभाजित करने की अपनी चाल में कामयाब हो ही जाएंगे तब उन्होंने ‘ जून 1947 में पख़्तूनी स्वयंसेवी संगठन खुदाई ख़िदमतगार की ओर से एक ‘बन्नू रेजोल्यूशन’ पेश किया जिसमें मांग की गई कि पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने के बजाय पख़्तूनों के लिए अलग देश पख्तूनिस्तान, (Pakhtunistan is a separate country for Pakhtuns) बनाया जाए। हालांकि अंग्रेज़ों ने उनकी इस मांग को ख़ारिज कर दिया। इसी से ज़ाहिर होता है कि *वे धर्म के नाम पर पाकिस्तान के गठन के कितने विरोधी थे*।

🔴 *ग़फ़्फ़ार ख़ां को सीमांत गांधी, फ्रंटियर गांधी, बादशाह खान और बाचा ख़ान (Frontier Gandhi, Frontier Gandhi, Badshah Khan and Bacha Khan)* जैसे कई नामों से याद किया गया। उनके नाम के साथ गांधी शब्द केवल इसलिए लगाया गया क्योंकि वे न केवल गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे बल्कि वे अपने जीवन में स्वयं गाँधी को ही आत्मसात भी करते थे। कहा जा सकता है कि वे गाँधी को केवल मानते ही नहीं बल्कि जीते भी थे।

🟣वर्ष 1987 में *पहली बार भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राप्त करने वाले शख़्स ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान*, ही थे।

🟡 *बादशाह ख़ान हालाँकि दस्तावेज़ी तौर पर पाकिस्तानी नागरिक ज़रूर थे लेकिन भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से इसीलिए नवाज़ा क्योंकि वे इसके वास्तविक हक़दार* थे। दस्तावेज़ों में ग़ैर-हिंदुस्तानी होने के बावजूद वे दिल ओ जान से सच्चे हिंदुस्तानी थे।

🔵अंग्रेज़ी हुकूमत महात्मा गांधी को ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को एक साथ नहीं देखना चाहती थी। इसी साज़िश के तहत अंग्रेज़ों ने ग़फ़्फ़ार ख़ान पर झूठे मुक़दमे लगाकर उन्हें कई बार जेल भेजने की साज़िशें कीं। परन्तु वे इतने लोकप्रिय थे कि अदालत में उनके विरुद्ध पेश होने के लिए कभी कोई गवाह न मिलता।

🟣1929 में ग़फ़्फ़ार ख़ां ने अपने चंद सहयोगियों को साथ लेकर एक संगठन तैयार किया जिसका नाम था खुदाई ख़िदमतगार (khudai khidmatgar)। ’खुदाई ख़िदमतगारका अर्थ है ईश्वर की रची गई सृष्टि का सेवादार। खुदाई ख़िदमतगार भी गाँधी जी की ही तरह अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता और एकता के लिएअहिंसात्मक रूप से आंदोलनरत थे। दरअसल अंग्रेज़ हिंसक होने वाले स्वतंत्रता संबंधी आन्दोलनों को तो अपनी ताक़त से कुचल देते थे परन्तु वे सत्याग्रह, भूख हड़ताल, असहयोग जैसे शांतप्रिय व अहिंसक आन्दोलनों से घबरा जाते थे।
🟥 *सेवाग्राम में एक कार्यक्रम में 16 जुलाई, 1940 को महात्मा गांधी ने कहा था* –

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🟢‘ख़ान साहब पठान हैं. पठानों के लिए तो कहा जा सकता है कि वे तलवार-बंदूक़ साथ ही लेकर जन्म लेते हैं….पठानों में दुश्मनी निकालने का रिवाज इतना कठोर है कि यदि किसी एक परिजन का ख़ून हुआ हो तो उसका बदला लेना अनिवार्य हो जाता है. एक बार बदला लिया कि फिर दूसरे पक्ष को उस ख़ून का बदला लेना पड़ता है. इस प्रकार बदला पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिलता है और बैर का अंत ही नहीं आता. यह हुई हिंसा की पराकाष्ठा, साथ ही हिंसा का दिवालियापन. क्योंकि इस प्रकार बदला लेते-लेते परिवारों का नाश हो जाता था।’ ख़ान साहब ने पठानों का ऐसा नाश होते देखा. इसलिए उन्होंने समझ लिया कि पठानों का उद्धार अहिंसा में ही है. उन्होंने सोचा ‘अगर मैं अपने लोगों को सिखा सकूं कि हमें ख़ून का बदला बिल्कुल नहीं लेना है, बल्कि ख़ून को भूल जाना है, तो बैर की यह परंपरा समाप्त हो जाएगी और हम जीवित रह सकेंगे.’ यह सौदा नक़द का था. उनके अनुयायियों ने उसे अंगीकार किया, और आज ऐसे ख़िदमतगार देखने में आते हैं जो बदला लेना भूल गए हैं. इसे कहते हैं बहादुर की अहिंसा या सच्ची अहिंसा.’।

लेकिन इन सबके बावज़ूद ब्रिटिश सरकार पठानों से ही सबसे ज़्यादा भय खाती थी। ख़ुदाई ख़िदमतगार जैसे अहिंसक संगठनों पर भी अंग्रेज़ों ने कई बार क़हर बरपाया।

ग़फ़्फ़ार ख़ान को अंग्रेज़ हमेशा संदेह की दृष्टि से देखते रहे.
*लेकिन 1939 में म्यूरियल लेस्टर नाम की एक ब्रिटिश शांतिवादी ने जब फ़्रंटियर का दौरा किया, तो वह बादशाह ख़ान के अहिंसक व्यक्तित्व से इस क़दर प्रभावित हो गईं कि उन्होंने महात्मा गांधी को चिट्ठी में लिखा*-

🔵‘ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को अब भली-भांति जान लेने के बाद मैं ऐसा महसूस करती हूं कि जहां तक दुनिया भर में अद्भुत व्यक्तियों से मिलने का सवाल है, इस तरह का सौभाग्य मुझे अपने जीवन में शायद कोई और नहीं मिलने वाला है. वे ‘न्यू टेस्टामेंट’ की सौम्यता से युक्त, ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के राजकुमार हैं. वे कितने भगवत्परायण हैं! आपने उनसे हमारा परिचय कराया, इसके लिए मैं आपकी आभारी हूं.’

*बाद में इस पत्र के हवाले से बादशाह ख़ान के प्रति ब्रिटिश हुकूमत के नज़रिए की आलोचना करते हुए 28 जनवरी, 1939 के ‘हरिजन’ में महात्मा गांधी ने लिखा* –
🔴‘…फिर भी अंग्रेज़ अधिकारियों के लिए इस व्यक्ति का कोई उपयोग नहीं है. वे इससे डरते हैं और इस पर अविश्वास करते हैं. यह अविश्वास वैसे मुझे बुरा न लगता, पर इससे प्रगति में बाधा पड़ती है. इससे भारत और इंग्लैंड की हानि होती है और इस तरह विश्व की भी होती है।’

🟡दंगों के दौरान बिहार में जब गांधी घूम-घूमकर शांति स्थापित करने के प्रयासों में लगे थे, उस समय भी बादशाह ख़ान छाया की तरह गाँधी के साथ रहा करते थे।

🟩 *पटना में 12 मार्च, 1947 को एक सभा में गांधी ने ख़ान साहब की ओर इशारा करते हुए कहा*-

🟣 *‘बादशाह ख़ान मेरे पीछे बैठे हैं. वे तबीयत से फ़क़ीर* हैं, लेकिन लोग उन्हें मुहब्बत से बादशाह कहते हैं, क्योंकि वे सरहद के लोगों के दिलों पर अपनी मुहब्बत से हुकूमत करते हैं. वे उस कौम में पैदा हुए हैं जिसमें तलवार का जवाब तलवार से देने का रिवाज है. जहां ख़ानदानी लड़ाई और बदले का सिलसिला कई पुश्तों तक चलता है. लेकिन बादशाह ख़ान अहिंसा में पूरा विश्वास रखते हैं. मैंने उनसे पूछा कि आप तो तलवार के धनी हैं, आप यहां कैसे आए? उन्होंने बताया कि हमने देखा हम अहिंसा के ज़रिए ही अपने मुल्क को आज़ाद करा सकते हैं. और अगर पठानों ने ख़ून का बदला ख़ून की पॉलिसी को न छोड़ा और अहिंसा को न अपनाया तो वे ख़ुद आपस में लड़कर तबाह हो जाएंगे. जब उन्होंने अहिंसा की राह अपनाई, तब उन्होंने अनुभव किया कि पठान जनजातियों के जीवन में एक प्रकार का परिवर्तन हो रहा है।’

🟡बादशाह ख़ान का जीवन आतंकवाद व हिंसा में लिप्त उन मुसलमानों के लिए भी एक आदर्श है और उन हिंदूवादियों के लिए भी जो द्विराष्ट् के जिन्नाह के सिद्धांत के आधार पर समूचे भारतीय मुसलमानों पर सवाल खड़ा करते हैं।

🟤 *‘बादशाह ख़ान, अबुल कलाम आज़ाद, रफ़ी अहमद क़िदवई, तय्यब जी, आसिफ़ अली, मोहम्मद यूनुस, ज़ाकिर हुसैन, जैसे सैकड़ों वरिष्ठ मुस्लिम नेता थे जो पाकिस्तान के गठन* का विरोध व संयुक्त भारत की कल्पना करते थे मगर अंग्रेज़ों ने अपनी चिर परिचित नीति अपनाकर भारत का विभाजन करा दिया।
🟢 *सीमान्त गाँधी किसी धर्म के नहीं बल्कि मानवता के सच्चे हितैषी व नायक थे और एकीकृत भारत की प्रबल आवाज़* भी थे।

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Source-1- लेखक- निर्मल रानी
हस्तक्षेप .com से साभार
2) heritagetimes

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संकलन *अताउल्ला पठाण सर*
*टूनकी तालुका संग्रामपूर*
*बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726