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मलेशिया में समलैंगिक महिलाओं को शरई अदलात ने सुनाई कोड़े मारने की सज़ा,देखिए कैसे सिखाया सबक ?

नई दिल्ली: भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध ना मानते हुए उस पर लगी रोक को हटा दिया है जिसके बाद इससे पीड़ित लोगों में जश्न का माहौल है,लेकिन दुनियाभर के कई देशों में इसे अपराध माना जाता है और इस पर कड़ी सजा का भी प्रावधान है।

दुनियाभर में अपनी विशेष पहचान रखने वाला मुस्लिम बहुल राष्ट्र मलेशिया पर इस पर कड़ी सजा सुनाई जाती है और शरई कानून के मुताबिक सज़ा सुनाई जाती है,जिसके कारण पिछले दिनों दो महिलाओं को सज़ा सुनाई गई है।

प्राप्त समाचार अनुसार मलयेशिया में दो महिलाओं को शरई कानून के मुताबिक कोड़े बरसाने की सजा सुनाई गई क्योंकि उन्होंने आपस में समलैंगिक रिश्ते बनाए थे। शरिया अदालत द्वारा सार्वजनिक रूप से दी गई इस सजा पर मानवाधिकार संगठनों ने सख्त एतराज जताया है। इन दोनों लेस्बियन महिलाओं को तीन सितंबर को सौ लोगों के सामने छह-छह कोड़े मारने की सजा सुनाई गई।

इस सजा को त्रिंगानु राज्य की शरिया अदालत के बाहर अंजाम दिया गया। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे भयानक दिन कहा। समूह की मलयेशियाई शोधकर्ता रशेल शोआ-हावर्ड के मुताबिक, सहमति से संबंध बनाने वाले दो लोगों पर ऐसी क्रूर सजा को थोपना सरकार द्वारा मानवाधिकारों को बेहतर करने की कोशिशों पर बड़ा झटका है।

मलयेशिया में महिलाओं के समूह ‘जस्टिस फॉर सिस्टर्स एंड सिस्टर्स इन इस्लाम’ ने कानून की समीक्षा की मांग की है जिसमें महिलाओं को कोड़ों से मारने की इजाजत दी जाती है। समूह का कहना है, ‘जो सजा दी गई है, वह न्याय की हत्या है।’

हाल ही के दिनों में देश के भीतर ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं। अगस्त में एक ट्रांसजेंडर महिला को एक समूह ने पीट-पीटकर मार डाला था। जबकि कुछ हफ्ते पहले समलैंगिक कार्यकर्ताओं की तस्वीरों को प्रदर्शनी से हटा दिया गया था। धार्मिक मामलों के मंत्री मुजाहिद युसुफ रवा ने इसे सही करार दिया।

मलयेशिया में न्याय प्रणाली की दोहरी व्यवस्था है। मुसलमानों से संबंधित मामलों की सुनवाई इस्लामिक अदालतों में होती है, जबकि अन्य विवादों के निपटारे के लिए सिविल अदालतों की व्यवस्था है। महिलाओं को कोड़े मारना सिविल अदालत में प्रतिबंधित है, लेकिन कुछ राज्यों में इस्लामिक कानून के दायरे में इजाजत मिली है।