साहित्य

मनियारी काकी

Madhu Singh
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चूड़िहारिन/ मनियारी काकी🥰
जो कोई भी तीज त्योहार हो या शादी बियाह अपने टोकरे में लाल,पीली,हरी चूड़ियां लेकर हाजिर रहती थी…….उनके आते ही हम सब बड़ो से पहले उनकी डलिया घेर कर बैठ जाती । हमारी नजरे तब तक उससे नहीं हटती जब तक काकी उसका कपड़ा हटा नहीं देती। उसके बाद उन रंग बिरंगी मनमोहक चूड़ियाँ हमे तब तक रिझाती जब तक हम उन्हे रो धो कर जिद मनुहार करके पहन ना लेती ।उनके हाथो मे जाने कौन सा जादू होता था जो छोटी छोटी चूड़ियाँ पलक झपकते ही चढ़ा देती और हम उन रंग बिरंगी चूड़ियों को घंटो निहारते ……….चूड़ियाँ के साथ वो छोटे छोटे डिब्बो मे रंग बिरंगी बिंदी टिकुली, शीशा और लाली पावडर भी लाती …..हर बार वो यही बोलती की अभी जो फिलिम आई है उसमे हिरोइन ने पहना है बिलकुल नया बाज़ार मे आया है …….. वो जब भी आती तो सिर पर डलिया और कमर मे एक छोटे से बच्चे को कनिया जरूर लिए रहती और जब तक वो सब को चूड़ियाँ दिखाती वही आँगन मे एक कोने बच्चा खेलता रहता ……मां के साथ वो घंटों बतियाती थी ,मां घर का काम करते करते उनको चाय पिलाती ………..खरीदा हो या न खरीदा हो लेकिन वो हंसकर निकल जाती थी अगली गली में नए घर की तलाश में….लड़की की शादी मे मंडप के नीचे चढ़ावे के बाद ससुराल से आई हुई चूड़ियाँ को अपनी कुछ चूड़ियाँ के साथ मिलाकर मनिहारिन काकी ही पहनाती थी इसके बाद नेग के लिए घंटो झिक झिक भी करती …अब तो शायद ही शादी ब्याह मे इनका बुलावा होता हो क्योकि शादियाँ होटल से होने लगी और लोगो को ये खर्चे फालतू लगने लगे