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‘मदर ऑफ़ मोहम्मद सुलेमान बैरिस्टर’

इक्कीसवीं सदी में क्या कोई सोच सकता है कि किसी उपन्यास में लेखिका के नाम के बजाय यह छपे कि वह फलां व्यक्ति की मां है। लेकिन उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में पटना में कुछ ऐसा ही हुआ, जब लेखिका के नाम की जगह लिखा गया, ‘मदर ऑफ मोहम्मद सुलेमान, बैरिस्टर।’ बैरिस्टर मोहम्मद सुलेमान की मां थीं राशिद उन-निसा (या रशीदत उन-निसा)। उन्होंने अपना उपन्यास ‘इस्लाह उन-निसा’ 1881 में लिख लिया था, लेकिन वह छपा 1894 में, जब उनके बेटे मोहम्मद सुलेमान विदेश से बैरिस्टरी की पढ़ाई कर के लौटे। राशिद का यह उपन्यास एक महिला का किसी भारतीय भाषा में लिखा गया पहला उपन्यास था।