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……..”मदर्स डे”, एक मां 20 हड्डियां एक साथ टूटने जितना लेबर पेन सह कर बच्चे को जन्म देती है!

Tajinder Singh
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सही शिक्षिका……..”मदर्स डे”
एक छोटा बच्चा जब जन्म लेता है तो बहुत खूबसूरत नही होता। लेकिन जैसे जैसे वो 5 6 महीनों का होने लगता है। वो आकर्षक लगने लगता है। ऐसा केवल मनुष्यों के साथ ही नही होता। कुत्ते बिल्ली के बच्चों को भी अगर आप देखिए तो वो भी थोड़ा बड़े होने पर ही सुंदर लगते हैं।

आखिर ऐसा क्यों?….दरअसल ये प्रकृति का अपना तरीका है बच्चे के प्रति मोह पैदा करने का। क्योंकि अभी उसे बड़ा होने के लिए सबके सहारे की जरूरत है। एक मां जो 20 हड्डियां एक साथ टूटने जितना लेबर पेन सह कर बच्चे को जन्म देती है। उसका बच्चे से विशेष मोह होना लाजिमी है।

धीरे धीरे बच्चा बड़ा होने लगता है। कदम कदम पर उसे मां की जरूरत पड़ती है। मां ही है जो उसे संस्कार सिखाती है। दुनियादारी का ज्ञान कराती है। इससे मां और उसके बच्चे के बीच एक बन्धन बंध जाता है। इस अवस्था तक एक बच्चे के लिए उसकी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां होती है।

लेकिन धीरे धीरे बड़ा होता हुआ बच्चा देखता है कि उसकी मां भी कोई विशेष न होकर एक सामान्य स्त्री है। जिसमे अच्छाई और बुराई दोनों का समावेश है। उसे भी गुस्सा आता है। वो भी गलत शब्दों का उपयोग करती है। उसके भी अपने अंधविश्वास हैं। मानसिक ब्लॉकेज है, सामाजिक रूढ़ियाँ हैं, जिससे पार वो नही जा सकती। जिनसे ऊपर उठने का उसने कभी सोचा ही नही। बदलते समय के साथ वो खुद को नही बदल पा रही है।

महान होना या महान कहलाना इतना आसान नही कि किसी को भी महानता का तगमा दे दिया। अपने बच्चे के लिए सहे गए कष्ट और किये गए त्याग तक ही अगर सीमित रहा जाए तो हरेक मां महान है। लेकिन ये माँ बनने के बाद शरीर मे हुए रासायनिक परिवर्तनों का नतीजा है जिससे मां अपने बच्चे के लिए एक विशेष मोह महसूस करती है। इसमें उसकी कोई विशेष भूमिका नही।

मेरी नजर में महान कहलाने के लिए एक मां को अपनी सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। मैंने ऐसी मां भी देखी है जिसने लड़की को दूर कॉलेज नही जाने दिया। उसे सायकिल नही सीखने दी। उसे रात्रि क्लासेस नही जॉइन करने दी। उसने लड़के और लड़की में भेद किया। उसने अपने पूर्वाग्रह अपनी पीढ़ी को सौंप दिए।

क्यों आज भी कुछ लोग बिल्ली के रास्ता काटने पर आगे नही बढ़ते?
क्यों घर से बाहर जाते वक्त किसी के छींक देने पर दो मिनट रुक जाते हैं?

“मैंने एक कहानी पढ़ी थी। जिसमे एक व्यक्ति को फांसी होने वाली रहती है। अपनी अंतिम इच्छा के रूप में वो अपनी मां से मिलना चाहता है। जब उसकी मां उससे मिलने आती है तो व्यक्ति अपनी मां के कान में एक अंतिम बात कहने की जिद करता है।

व्यक्ति के दोनों हाथ बंधे होते हैं। मां जब उसकी बात सुनने के लिए अपना कान उसके मुंह के करीब ले जाती है तो वो व्यक्ति अपनी मां का कान काट लेता है। और चिल्ला कर कहता है कि काश पहली चोरी करने पर अगर उसकी मां ने भी कभी उसका कान पकड़ा होता तो आज ऐसी नोबत नही आती।”
इस दुनिया को बदलने में, इसे खूबसूरत बनाने में एक मां की महत्ती भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि एक मां ही बच्चे की पहली पाठशाला होती है। लेकिन मेरा मानना है कि इस पाठशाला में अक्सर सही पढ़ाई नही होती। अगर माँ को महान कहलाना है, या उसे महान मानना है। तो अपनी पाठशाला में उसे एक सही शिक्षिका होना होगा।