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मदरसे में पढ़कर IAS ऑफिसर बना शाहिद-कभी स्कूल या कॉलेज में नही करी पढ़ाई,आतँकवाद का अड्डा बताने वालों को मुँहतोड़ जवाब

तिरुवनंतपुरम: देशभर में मीडिया और लोगों में एक भरम फैला हुआ है कि मदरसों में कट्टरपंथी विचारधारा के लोगो को जन्म दिया जाता है,और मदरसो में मॉर्डन एजुकेशन नही दी जाती है,तथा पिछले दिनों मदरसे के नाम उस समय काफी उछाला गया था जब वसीम रिज़वी ने एक चिट्ठी लिखकर मदरसों को बंद करवाने की माँग करी थी।

लेकिन हमेशा से मदरसे देश के योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं और देश का नाम रोशन करते रहे हैं,UPSC के नतीजों में इस बार देशभर से 990 छात्र छत्राओं ने कामयाबी हासिल करी है,उनमें 51 मुसलमान हैं।

टी शाहिद नाम के एक मुस्लिम नोजवान ने केरला से UPSC का एग्ज़ाम निकाला है जिसके बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार शाहिद ने अपनी पढ़ाई मदरसे में करी है और फिर बाद में मदरसे में ही पढ़ाया है।

शाहिद को मुख्यधारा के स्कूल में पढ़ने का मौका कभी नहीं मिला। केरल के पूर्व मदरसा शिक्षक टी शाहिद ने साबित कर दिया है कि अंततः दृढ़ता से जीत हासिल होती है। कोझिकोड जिले के तिरुवल्लूर गांव में रहने वाले 28 वर्षीय शाहिद ने अपने छठवें प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ली है।

यूपीएससी की परीक्षा में उन्हें 693वां स्थान मिला है। उनके पिता अब्दुल रहमान मुसालीयार मदरसा शिक्षक हैं और मां सुलेखा गृहणी हैं। शाहिद ने कहा कि उन्हें कोझिकोड में कप्पा में एक अनाथालय द्वारा संचालित एक मुस्लिम धार्मिक शैक्षिक संस्थान में पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि जब वह 10 साल के थे, तो घर में वित्तीय संकट था।

पैसों की कमी के चलते में अच्छे स्कूल में पढ़ाई नहीं कर पाए। हालांकि, इसकी वजह से वह कभी हताश नहीं हुए। 12 साल की धार्मिक शिक्षा के बाद और इस्लामी धर्मशास्त्र में एक अलग जीवन जीने के बाद शाहिद ने धार्मिक डिग्री ‘हस्नी’ हासिल की। इस कोर्स को करने के बाद वह मदरसा शिक्षक बनने के लिए तैयार हो गए। हस्नी की पढ़ाई के दौरान उन्होंने 10वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की और डिस्टेंस लर्निंग के जरिये अंग्रेजी की डिग्री हासिल की।

शाहिद ने साल 2010 से 2012 तक कन्नूर में मदरसा शिक्षक के रूप में 6,000 रुपए महीने में काम किया। साल 2012 में अंग्रेजी में डिग्री हासिल करने के बाद कुछ समय के लिए उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा संचालित मलयालम डेली चंद्रिका में काम किया।

शाहिद ने कहा कि इस दौरान जिंदगी के प्रति उनका दृष्टिकोण बदल गया। मैंने सामान्य मुद्दों के बारे में पढ़ना शुरू कर दिया। इस्लामी संस्थान में 12 साल के जीवन ने मेरे नजरिये को संकीर्ण कर दिया था। मगर, एक पत्रकार के रूप में काम करने के दौरान मुझे बाहरी दुनिया को देखने का मौका मिला।

इस दौरान उन्हें लगा कि उन्हें धार्मिक विद्वान बनने के अलावा अन्य क्षेत्र में भी करियर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। यूपीएससी में वैकल्पिक विषय के रूप में शाहिद ने मलयालम साहित्य को चुना। उन्होंने कहा कि आईयूएमएल के छात्रों के विंग एमएसएफ द्वारा प्रायोजित दिल्ली में कोचिंग कक्षाओं ने उनके दिमाग को खोल दिया।

शाहिद ने कहा कि उन कोचिंग दिनों ने मुझे बहुत सारे एक्सपोजर दिए, जो मेरे अंदर मदरसा शिक्षक के रूप में कभी नहीं मिले थे। उन्होंने कहा कि सिविल सर्विस परीक्षा को पास करना समाज को यह बताने का एक तरीका था कि मदरसे से आतंकी नहीं निकलते हैं। उन्होंने कहा कि ये मुद्दे भटकने वाले या विवाद का विषय हो सकते हैं। मगर, केरल में मदरसे भी सिविल सर्विसेस में योगदान कर सकते हैं