साहित्य

मदद : राहत बहुत परेशान था…..कहाँ से लाए पचास लाख रुपये?…By-Praveen Rana Verma

Praveen Rana Verma
===============
·
मदद
राहत बहुत परेशान था। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ से लाए पचास लाख रुपये? उसकी बेटी आश्विका का पिछले दो सालों से इलाज चल रहा है। सब जमा पूंजी इलाज पर खर्च हो गई। अपनी बेटी के इलाज के लिए उसे उसके साथ-साथ रहना पड़ा, जिस कारण वो भी छः माह से अवैतनिक अवकाश पर है। वो अस्पताल के बाहर आश्विका को घुमाने आया था। आश्विका भी अपने पापा की परेशानी समझ रही थी। वो समझ पा रही थी कि उसके पापा इतने चिड़चिड़े क्यों हो गए हैं।

आश्विका ने कहा, ” पापा! जीना क्या बहुत ज़रूरी है ?” राहत बेटी का प्रश्न सुन कर सन्न रह गया। खुद को सम्भालते हुए उसने कहा, “हाँ , बहुत ज़रूरी है। तुम्हें भी जीना है और मुझे भी जीना है इक-दूजे के लिए ।” “मैंने आपकी बातें सुनी थी पापा। आपको हमारा घर तक बेचना पड़ रहा है। पापा अगर मैं…. ” आश्विका कहते-कहते रुक गई। राहत ने समझाते हुए कहा” बेटा ! तू ही एक मेरे पास और कोई नहीं है मेरा। तू ही अगर ऐसी बात करेगी तो मैं तो तुझ से भी पहले ही मर जाऊँगा।” इतने में एक औरत वहाँ गोद में बच्चा लेकर आई और राहत से कुछ पैसे माँगने लगी । देखने में ठीक-ठाक लग रही थी। पर उसकी गोद का बच्चा बहुत रो रहा था।” सर थोड़ी मदद कर दीजिए। मेरे पति का कल एक्सीडेंट हो गया ।घर से हड़बड़ी में कुछ नहीं ला सकी। पर्स में जितने पैसे थे सब ख़त्म हो गए। मेरे पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं है।और मेरा बच्चा कल से भूखा है। आप थोड़ी मदद कर दीजिए। मैं अपने मम्मी-पापा के आते ही आपको लौटा दूँगीं । ” उस औरत ने कहा। राहत ने पर्स खोला तो उसमें दो सौ के दो नोट थे। राहत ने एक नोट उसे देते हुए कहा, ” आपको इसे लौटाने की कोई ज़रूरत नहीं बहन। आप बच्चे को कुछ खिला दीजिए और खुद भी कुछ खा लेना। ” उसने हाथ जोड़ कर राहत को धन्यवाद कहा। राहत आश्विका को लेकर अस्पताल आ गया। उसके डायलिसिस का समय हो गया था।

वो बार – बार किसी को फोन कर के घर के बिकने के बारे में पूछ रहा था। पर कोई भी चालीस लाख से ऊपर नहीं दे रहा था। इतने में आश्विका के डॉक्टर ने आकर कहा,”

एक एक्सीडेंट केस आया है जो कि ब्रेन डेड है। मैंने उसकी रिपोर्टस देखी हैं आश्विका को उसकी किडनी दी जा सकती हैं , परन्तु आपको उसकी फेमिली से बात करनी होगी। वो सामने उसके माता-पिता खड़े हैं। ” राहत के दिल में एक उम्मीद की किरण जाग उठी । राहत उन दोनों के पास गया उसने बड़ी हिम्मत कर उन से बात की पर वो मानने को तैयार ही नहीं थे । इतने में वही बच्चे वाली महिला वहाँ आई। उसने कहा, ” सर मैं अपने पति की किडनी देने के लिए तैयार हूँ।” आश्विका के डॉक्टर ने उसे सब पहले ही बता दिया था। उसने अपने पति के सब उपयोगी अंग दान करने का फैसला लिया क्योंकि वो इसका महत्व जानती थी क्योंकि वो खुद भी एक डॉक्टर थी।
प्रवीण राणा वर्मा।।।