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भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री पर सवर्ण जातियों का आधिपत्य है : भारत में दलित और आदिवासी होना बहुत मुश्किल भरा काम है!

Kranti Kumar
@KraantiKumar
भारत में दलित और आदिवासी होना बहुत मुश्किल भरा काम है.

दलित और आदिवासी होना यानी आप हर वक़्त खतरों से घिरे हुए हैं.

सवर्ण होना बढ़ा आसान है. सवर्ण जाति से होने के बहुत सारे फायदे और सामाजिक विशेषाधिकार है जो उन्हें जन्म के आधार पर मुफ्त में मिला है.

दलित और आदिवासियों पर साल के 365 दिन जातीय हिंसा – जातीय भेदभाव का खतरा मंडराते रहता है.

सवर्ण जातियों को जातीय हिंसा और भेदभाव नही झेलना पड़ता. सवर्ण जातियों के नाम पर जातिसूचक गालियां नही बनी हैं.

जातिसूचक गालियां केवल उन्ही जातियों पर बनी है जो किसी पेशे से जुड़ी हैं.

सवर्ण जातियों को केवल एक दिन अपनी पहचान छिपाकर दलित और आदिवासी बनना चाहिए तब जाकर इन्हें पता चलेगा दलित और आदिवासी होना क्या होता है.

Photo : Tribal Women (Imaginary Purpose)

Kranti Kumar
@KraantiKumar
भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री पर सवर्ण जातियों का आधिपत्य है.

रवि किशन शुक्ला, मनोज तिवारी, पवन सिंह, दिनेश लाल यादव और खेसारी लाल यादव

केवल दो कलाकार OBC हैं.

यहां तक टॉप चार निर्देश भी सवर्ण हैं.
रजनीश मिश्रा
संतोष मिश्रा
राजकुमार पांडेय
अजय श्रीवास्तव

टॉप पांच हीरोइन भी सवर्ण हैं.

भोजपुरी सिनेमा में स्टार उन्ही जातियों से हैं जिनकी जनसंख्या ज्यादा है. जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और अहीर.

जनसंख्या तो जाटव और पासी जाति की भी ज्यादा है. लेकिन दो जातियों से कोई स्टार या निदेशक नही हैं.

SC जातियों के लिए भोजपुरी सिनेमा के दरवाजे बंद रखे गए हैं. यह जातिवाद है.