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#भारत_जोड़ो_यात्रा की क़ामयाबी, भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक रूप से मात दी जा सकती है, बीजेपी से आगे जाएगी कांग्रेस? !!रिपोर्ट!!

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में लगभग दो हज़ार किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं.

भारत के दक्षिणी छोर कन्याकुमारी से शुरू हुई ये यात्रा उत्तर भारतीय राज्यों से होते हुए फ़रवरी में श्रीनगर पहुंचेगी.

बीबीसी की टीम राहुल गांधी से महाराष्ट्र के विदर्भ में मिली.

ये भारत के सबसे अमीर राज्य महाराष्ट्र का सबसे ग़रीब इलाका है जो किसानों की आत्महत्याओं की वजह से ख़बरों में आता रहा है.

राहुल गांधी यहां अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर तमाम अधिकार समूहों और आम लोगों से घिरे दिखाई दिए.

वह इस यात्रा के ज़रिए लोगों में एक अलग भारत का सपना बोने की कोशिश कर रहे हैं.

बीजेपी से आगे जाएगी कांग्रेस?

राहुल गांधी ने इस यात्रा के असर पर बात करते हुए कहा, “थोड़ी और मेहनत की जाए तो भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक रूप से मात दी जा सकती है.”

ये एक ऐसा दावा है जिसने राहुल गांधी और उनकी पार्टी के समर्थकों में जोश भर दिया है.

हालांकि, उनके आलोचक इस दावे को शक़ भरी निगाह से देख रहे हैं.

इस समय कांग्रेस भारत के 28 में से सिर्फ़ दो राज्यों में सत्ता में है.

कभी भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी रही कांग्रेस के लिए ये एक बड़ी राजनीतिक क्षति है.

राहुल गांधी की यात्रा पर बीजेपी ने कहा है कि वह उस भारत को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जो टूटा ही नहीं है.

लेकिन पिछले 75 दिनों में राहुल गांधी के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने वालों में उनकी पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ-साथ बॉलीवुड एक्टर्स समेत अलग-अलग क्षेत्रों के लोग शामिल हैं.

ये यात्रा जहां से गुज़र रही है, उसके आसपास का क्षेत्र कांग्रेसमय नज़र आता है.

पार्टी के चुनाव चिह्न से लेकर नेताओं की विशालकाय तस्वीरों से ढकी सड़कों पर ‘नफ़रत छोड़ो, भारत जोड़ो’ जैसे नारे और गीत गाते लोग नज़र आए.

इन्हीं सड़कों से गुज़रते हुए हमारी राहुल गांधी से संक्षिप्त बातचीत हुई.

क्या कहते हैं आम लोग?

इस मुलाक़ात से एक दिन पहले राहुल गांधी ने सत्तारूढ़ पार्टी की ‘बंटवारे वाली राजनीति’ पर जोशीले अंदाज़ में भाषण दिया है जिसे सुनने के लिए एक लाख से ज़्यादा लोगों की भीड़ आई.

बीबीसी ने राहुल गांधी के साथ यात्रा करने वाले आम लोगों से भी बात की है.

साल 2014 में बीजेपी को वोट देने वाले नरेंद्र मोदी समर्थक रहे एक मैनेजमेंट कंसल्टेंट ने हमें बताया कि वह वहां मौजूदा सरकार से निराश होकर पहुंचा है.

पुणे में आइसक्रीम पार्लर चलाने वाला एक जोड़ा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान हाथों में बैनर लिए दिखाई दिया जिसमें भारतीय विश्वविद्यालयों के कथित राजनीतिकरण का विरोध करने की कोशिश की गयी थी.

इस क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों का कहना था कि उनकी उत्सुकता की वजह उनके गांव के पास कभी इतना बड़ा कुछ नहीं होना है.

अब तक की यात्रा कितनी कामयाब

महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने भी इस यात्रा में एक दिन गुज़ारा.

वे कहते हैं, “मैं यहां इस उम्मीद से आया हूं कि शायद ये यात्रा उस बिसरे हुए भारत को याद दिला सके जो उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, समावेशी और प्रगतिवादी मूल्यों के लिए जाना जाता था.”

बीजेपी का पक्ष लेने वाली मीडिया की ओर से इस यात्रा को पर्याप्त कवरेज़ नहीं मिली है. लेकिन ये स्पष्ट है कि राहुल गांधी अब तक जिन पांच राज्यों से होकर गुज़रे हैं, वहां अच्छी ख़ासी भीड़ जुटाने में सफल रहे हैं.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये यात्रा कांग्रेस के राजनीतिक सूरज को उगाने में मदद कर पाएगी.

क्या ये लोगों के बीच राहुल गांधी की छवि को बदल पाएगी जिन्हें उनके विरोधी अनैच्छिक राजनेता करार देते हैं.

कांग्रेस पार्टी के युवा नेता कन्हैया कुमार कहते हैं कि ‘वह कोई राजकुमार नहीं हैं. ये उनके विरोधियों की ओर से तैयार की गयी छवि है.”

वह कहते हैं कि वो इस यात्रा से ऐसे ही दुष्प्रचार को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं.

कांग्रेस ने कहा है कि ये चुनाव को ध्यान में रखकर की जा रही रैली नहीं है.

लेकिन कन्हैया कुमार बताते हैं कि इसका उद्देश्य मतदाताओं के साथ एक बार फिर भावनात्मक राब्ता कायम करना है.

इसी वजह से राहुल गांधी अपने भाषणों में लगातार अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोज़गारी और किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.

कांग्रेस के शीर्ष नेता जयराम रमेश कहते हैं कि आम कार्यकर्ताओं के साथ ज़मीन पर संपर्क स्थापित करने से संगठन में एक नयी जान आ रही है.

राहुल गांधी की लोकप्रियता में भी यात्रा शुरू होने के बाद से उछाल आता दिख रहा है.

पोलिंग एजेंसी सी-वोटर के मुताबिक़, राहुल गांधी जिन राज्यों से होकर गुज़रे हैं, वहां लोगों में उनके प्रति रुझान में 3 से 9 फीसद की बढ़त देखी जा रही है.

लेकिन ये मामूली सुधार बताते हैं कि अगर राहुल गांधी को 2024 में मोदी को टक्कर देनी है तो उन्हें कितना काम करना होगा.

सी-वोटर के संस्थापक-निदेशक यशवंत देशमुख बताते हैं कि इस यात्रा ने दक्षिणी राज्यों में राहुल गांधी की छवि सुधारी है जो बीजेपी के गढ़ नहीं हैं.

लेकिन इस बढ़ी हुई लोकप्रियता को वोटों में बदलना अपने आप में एक अलग तरह की चुनौती होगी.

वह कहते हैं, “एक सवाल ये भी है कि क्या उत्तर भारतीय राज्यों में आते-आते भारत जोड़ो यात्रा के समर्थकों में कमी आएगी क्योंकि इन हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी मज़बूत स्थिति में है.”


राजनीतिक आलोचक को अभी भी इस बात पर शक़ है कि क्या इस यात्रा का गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में फ़ायदा मिलेगा.

पूर्व कांग्रेस नेता संजय झा कहते हैं कि कांग्रेस को इस यात्रा से दीर्घकालिक फ़ायदा होगा या नहीं, ये इस बात से तय होगा कि वह यात्रा पूरी होने के बाद इससे मिली गतिशीलता को कब तक बनाए रख पाती है.”

संजय झा के मुताबिक़, कांग्रेस को गहरी सांगठनिक दिक़्क़तों का हल निकालने के लिए लगातार काम करना होगा. इनमें हतोत्साहित कार्यकर्ता, वंशवाद और अंतर्कलह शामिल है. इसके साथ ही कांग्रेस को बीजेपी की आलोचना से परे एक स्पष्ट वैचारिक रुख अख़्तियार करने की ज़रूरत है.

झा कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी को बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं को लेकर कम बेपरवाह होने और गांधी परिवार के प्रति आसक्ति से मुक्त होने की ज़रूरत है.

पिछले महीने कांग्रेस ने 24 साल में पहली बार एक ग़ैर गांधी व्यक्ति को पार्टी के अध्यक्ष के रूप में चुना है.

लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का क़रीबी माना जाता है.

पार्टी पर अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान शशि थरूर खेमे ने सभी उम्मीदवारों को समान मौके नहीं देने का आरोप लगाया था.

बीजेपी इसी पृष्ठभूमि में सवाल उठा रही है कि राहुल गांधी जो अपनी ही पार्टी को एकजुट नहीं रख पा रहे हैं, वो भारत को एक साथ कैसे जोड़ेंगे. या उन बयानों का क्या आधार है कि वह देश में लोकतंत्र को वापस लाना चाहते हैं जब उनकी ही पार्टी में लोकतंत्र की कमी है.

इसके बाद भी राजनीतिक पंडित मानते हैं कि एक ऐसा देश जहां विपक्ष इतने समय से ग़ायब था, वहां ऐसी पहल स्वाभाविक थी.

ये यात्रा कोई जादू की छड़ी नहीं है, लेकिन यह कांग्रेस पार्टी का 2014 में शुरु हुआ पतन रोकने की दिशा में पहला क़दम हो सकता है.

झा कहते हैं, “इससे कांग्रेस एक गंभीर विपक्ष के रूप में दोबारा उभर सकती है और वो विपक्षी एकता की धुरी बन सकती है.”

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निखिल इनामदार
पदनाम,बीबीसी संवाददाता