भारत से एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद हसनैन इस सप्ताह अपने बेटे इसहाक़ अमीर के साथ पाकिस्तान में शरण लेने के लिए पहुंचे हैं. वो ग़ैरक़ानूनी तौर पर अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते कराची पहुंचे हैं.
उनका आरोप है कि भारत में उन्हें ‘धार्मिक विद्वेष और प्रताड़ना’ का सामना करना पड़ रहा था और वह वापस जाने की बजाय पाकिस्तान में ‘मरना या जेल में रहना पसंद करेंगे.’
ये दोनों भारतीय नागरिक कराची के इलाक़े अंचौली में ईधी होम में रह रहे हैं. उन पर ईधी होम से निकलने पर पाबंदी है और दो पुलिस अधिकारी उनकी निगरानी के लिए नियुक्त किए गए हैं.
66 साल के मोहम्मद हसनैन और 31 साल के इसहाक़ अमीर ने बीबीसी से बात करते हुए दावा किया कि वो इस साल पांच सितंबर को दिल्ली से अबू धाबी गए थे जहां से उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान का वीज़ा लगवाया. वो काबुल पहुंचे और वहां से कंधार में स्पिन बोल्डक में कुछ लोगों ने पैसे लेकर उन्हें ग़ैर क़ानूनी तौर पर पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र चमन में दाख़िल होने में मदद की.
मोहम्मद हसनैन ने बताया, “चमन से हमने क्वेटा के लिए दस हज़ार रुपये में टैक्सी पकड़ी और उसी टैक्सी को पचास हज़ार रुपये देकर हम क्वेटा से कराची पहुंचे.”
मोहम्मद हसनैन का अख़बार
उनके अनुसार, “होटल में रहने की जगह न मिली तो ख़ुद पुलिस अफ़सरों से मिले और उनको अपनी कहानी बताई और कहा कि वे सीमा पार करने के मुल्ज़िम हैं और शरण चाहते हैं.”
उनके मुताबिक फिर पुलिस ने ख़ुद उनको ईधी सेंटर पहुंचा दिया.
मोहम्मद हसनैन ने बताया कि भारत में वह पत्रकारिता के पेशे से जुड़े थे और दिल्ली से आठ पन्नों का एक साप्ताहिक अख़बार ‘चार्जशीट’ निकाला करते थे, जिसका नाम बाद में बदल करके ‘द मीडिया प्रोफ़ाइल’ रख दिया गया था.
भारत में कहां से है नाता?
मोहम्मद हसनैन का जन्म झारखंड के शहर जमशेदपुर में साल 1957 में हुआ लेकिन उनका कहना है कि वह पिछले कई साल से दिल्ली में रह रहे हैं.
1989 में उनकी शादी हुई जो पौने चार साल चली. उस शादी से हुए दो बेटों में से एक की मौत हो गई जबकि दूसरा बेटा इसहाक़ अमीर उनकी इकलौती संतान हैं.
मोहम्मद हसनैन की दो बहनें ज़ैबुन्निसा और कौसर हैं. बड़ी बहन ज़ैबुन्निसा उनसे 21 साल बड़ी हैं और झारखंड में ही रहती हैं जबकि छोटी बहन कौसर लखनऊ की निवासी हैं.
इकतीस साल के इसहाक़ अमीर ने बताया कि वह मदरसे जाते थे जहां उन्होंने क़ुरान पढ़ना सीखा और कंठस्थ किया. उनके पिता उन्हें आलिम-ए-दीन (धार्मिक विद्वान) या वकील बनना चाहते थे लेकिन 10वीं और 12वीं के बाद वह रोज़गार में लग गए. वह अपने जीवन में कभी स्कूल नहीं गए लेकिन उन्होंने दिल्ली में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) से 10वीं और 12वीं की शिक्षा प्राप्त की.
इसहाक़ के मुताबिक उन्होंने 2014 से 2019 तक डीन ब्रॉडबैंड के नाम से एक कंपनी में काम किया. उन्होंने इंडस्ट्रियल सेफ़्टी मैनेजमेंट का डिप्लोमा भी किया था और अप्रैल 2021 से 15 अक्टूबर 2021 यानी लगभग छह महीने तक दुबई की एक कंपनी में सेफ़्टी इंस्पेक्टर की नौकरी भी की. 2021 में वापस भारत आने के बाद नाईगोस इंटरनेशनल जनरल सर्टिफ़िकेट का कोर्स भी किया.
इसहाक़ अमीर ने बताया कि अबू धाबी की एक कंपनी ने उन्हें नौकरी का प्रस्ताव दिया था जिसकी तनख्वाह चार हज़ार दिरहम थी और 10 सितंबर 2023 को ही नौकरी शुरू करनी थी लेकिन उनके अनुसार, “हमने हिजरत (भारत छोड़ने) का एक पूरा प्लान बना रखा था.”
“वालिद साहब ने कहा था कि इस देश में नहीं रहना तो पांच सितंबर को हमने टिकट कर लिया. पिताजी ने कहा कि एक बार कोशिश करते हैं. अबू धाबी से अफ़ग़ानिस्तान चलकर देखते हैं, शायद कुछ हो जाए.”
भारत में परिचित हैं हैरान
इन दोनों बाप-बेटों के पाकिस्तान जाने के फ़ैसले पर भारत में उनसे परिचित कम से कम तीन लोगों ने बीबीसी से बातचीत में आश्चर्य व्यक्त किया. उनका कहना है कि उन्हें उनके पाकिस्तान जाने के बारे में मीडिया के ज़रिए ख़बर मिली.
एमएम हाशमी ख़ुद को मोहम्मद हसनैन का वकील बताते हैं. हाशमी का कहना है कि उन्हें भी उनके पाकिस्तान जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
वह कहते हैं, “मैं उनका वकील हूं. मुझे बस इतना पता है कि वह अपने बेटे को नौकरी के लिए दुबई लेकर गए थे. इसके बाद मुझे कुछ मालूम नहीं. जब ख़बर आई तो मुझे मालूम हुआ इसके बारे में.”
पाकिस्तान रवाना होने से पहले जिस पते पर वह रहते थे वहां उनके पड़ोसी भी ताज्जुब करते हैं. वो कहते हैं कि जब मीडिया और पुलिस हसनैन के बारे में पूछने आई तो उन्हें उनके पाकिस्तान जाने के बारे में मालूम हुआ.
एक पड़ोसी का कहना था, “उन्होंने कहा कि उनके बेटे को दुबई में नौकरी मिल गई है. वह वहां जा रहे हैं और अगले दस दिनों में वापस लौट आएंगे.”
मोहम्मद हसनैन के मालिक मकान और पड़ोसियों का कहना है कि वह अधिकतर अकेले और चुपचाप रहते थे. “बस इतना होता था कि अगर कोई उन्हें सलाम कर दे तो वह जवाब देते थे.”
एक स्थानीय नेता, जिनका दावा है कि उन्होंने हसनैन की राजनीतिक पार्टी के समर्थन से 2017 में स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ा था, बताते हैं कि उन्हें भी इसके बारे में अख़बार से मालूम हुआ.
वह कहते हैं, “हमें तो ख़ुद झटका लगा कि वह चले गए.”
वह बताते हैं कि इलेक्शन लड़ने के बाद से उनका हसनैन से विशेष संपर्क नहीं लेकिन हाल ही में उनसे एक छोटी सी मुलाक़ात हुई थी.
स्थानीय नेता ने पुष्टि करते हुए कहा कि फ़ंड्स की कमी की वजह से उनका अख़बार भी लगभग पांच साल पहले बंद हो गया था.
जिस पते पर हसनैन की पार्टी का कार्यालय हुआ करता था उसके आसपास के लोगों का कहना है कि पार्टी कुछ साल पहले ख़त्म हो गई थी.
निर्वाचन आयोग को जमा करवाए गए पते पर पार्टी का नाम और उनके अख़बार के पुराने नाम के बैनर को ‘गूगल स्ट्रीट व्यू’ में देखा जा सकता है.
उर्दू और हिंदी भाषा में छपने वाले उनके साप्ताहिक अख़बार के पन्नों की कॉपियां, जो फ़ेसबुक पर उपलब्ध हैं, भारत में मुसलमानों की शिकायत और दुख-दर्द को उजागर करती हैं.
कई बार चुनाव लड़े
निर्वाचन आयोग को जमा करवाए गए शपथ पत्र से स्पष्ट होता है कि उन्होंने सन 2013 के दिल्ली विधानसभा (सीलमपुर सीट) और 2014 के संसदीय चुनाव में (नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में) भाग लिया था. इसमें उन्हें 571 और 879 वोट मिले थे.
चुनावी पारदर्शिता की वकालत करने वाले संगठन एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (एडीआर) के रिकॉर्ड से पता चलता है कि उन्होंने 2004 और 2009 के संसदीय चुनाव में भी हिस्सा लिया था.
उनके चुनावी शपथ पत्र से मालूम होता है कि उन पर आईपीसी के तहत तीन मुक़दमे दर्ज हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हिंसा के विरुद्ध प्रदर्शन वाले पोस्टर चिपकाने के बाद जेल भेज दिया गया था. यह स्पष्ट नहीं है कि वह कितने समय तक जेल में रहे.
एडवोकेट एमएम हाशमी पुष्टि करते हैं कि उनके विरुद्ध तीन मुक़दमे दर्ज थे.
उन्होंने कहा, “एक में वह बरी हो चुके हैं, एक में चार्ज फ़्रेम नहीं हुए और एक में चार्जशीट फ़ाइल नहीं हुई.”
वह कहते हैं कि ये सभी राजनीतिक मामले थे, कोई फ़ौजदारी केस नहीं था. उन्होंने इसके बारे में और जानकारी देने से इनकार कर दिया.
पाकिस्तान को क्यों चुना?
मोहम्मद हसनैन ने बीबीसी से कहा, “देखें यह कोई अचानक या बिना सोचे समझे लिया गया फ़ैसला नहीं कि एकदम से कोई बात हो और हमने कहा कि अब चलो यहां से.”
उन्होंने बाबरी मस्जिद से संबंधित अदालत के फ़ैसले का हवाला दिया, साथ ही ‘अगले साल होने वाले चुनाव में नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी की जीत का इशारा करते हुए आशंका व्यक्त की.’
ध्यान रहे कि दिल्ली में मोहम्मद हसनैन जिस संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे थे, वहां 2020 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिसमें पचास से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकतर संख्या मुसलमानों की थी.
मोहम्मद हसनैन ने बताया, “कोई त्योहार का दिन हो और त्योहार के दिन हमारे हिंदू भाई तिलक लगाकर आते हैं तो बड़ी आसानी से पहचान हो जाती है कि ये हिंदू हैं और ये मुसलमान हैं. एक बार थोड़ी सी बात बढ़ी तो लोगों ने मुद्दा बना दिया, गाली गलौज और हाथापाई शुरू हो गई.”
“बेटे के साथ भी दो-तीन बार ऐसा हुआ तो उन हालात से दुखी होकर हमें लगा कि हमें देश छोड़ देना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “सड़क पर जाएं, दफ़्तर जाएं, ट्रेन में जाएं, बाहर किसी काम से भी जाएं तो बस एक ही डर रहता है कि कुछ हो न जाए. समस्या लूटमार की नहीं, समस्या नारों की है, धर्म को टारगेट बनाना, टारगेट करके मारना.”
लेकिन इन दोनों बाप-बेटे ने किसी और देश जाने की बजाय पाकिस्तान का चुनाव ही क्यों किया? हमारे इस सवाल पर मोहम्मद हसनैन बोले, “देखें, हम तो पैसे वाले लोग नहीं थे कि किसी देश में जाकर दस-पांच करोड़ ख़र्च करके नागरिकता ख़रीद लेते.”
“हमारे पास पाकिस्तान का ही ऑप्शन था कि जहां के लोग हमारी तरह बोलते चालते हैं और जिसको बनाने में हमारे पूर्वजों का भी हिस्सा रहा है.”
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में उनका कोई रिश्तेदार नहीं इसलिए उन्हें वीज़ा नहीं मिल सकता था.
“ख़्याल यही था कि पर्यटक वीज़ा लेकर चलेंगे और फिर वहां पर शरण ले लेंगे. जब वहां (पाकिस्तान दूतावास) से इनकार हो गया तो हम पता करने लगे कि क्या हो सकता है. इस तरह दो-तीन साल बीत गए. फिर हमें अचानक मालूम हुआ कि अगर आप दुबई चले जाएं और वहां से अफ़ग़ानिस्तान का वीज़ा मिल सकता है.”
हसनैन का महेश भट्ट के साथ एक वीडियो
हसनैन के अख़बार के नाम से जुड़े एक अकाउंट से 2016 में ऑनलाइन एक वीडियो अपलोड किया गया है. इस वीडियो में उन्हें अपने इलाक़े में पुलिस के अत्याचार के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है.
2017 में अपलोड किए गए एक और वीडियो में वह मुसलमानों के शोषण पर भाषण देते हुए नज़र आ रहे हैं जिसमें वह कहते हैं कि सेक्यूलर होने का दावा करने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं ने भी मुसलमानों को निराश किया है.
इसके अलावा 2015 में अपलोड किए गए एक वीडियो में वह फ़िल्म निर्देशक महेश भट्ट के साथ एक प्रोग्राम में शामिल हैं जिसमें वह उनके किसी फ़िल्म को उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल करते हुए सेक्युलरिज़्म और सांप्रदायिकता के बारे में बात करते हुए नज़र आ रहे हैं.
एक वीडियो में मोहम्मद हसनैन ‘मुंबई कम्यूनल फेसेस विद महेश भट्ट’ नाम के एक कार्यक्रम में शिरकत करते दिखते हैं. ये वीडियो द मीडिया प्रोफ़ाइल के यूट्यूब चैनल पर आठ साल पहले पोस्ट किया गया है
इस वीडियो में वह महेश भट्ट की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि वह दोनों धर्म के लोगों की मानसिकता को अच्छी तरह से समझते हैं लेकिन वह भी बहुत ही सावधानी से काम करने पर मजबूर हैं. इसके जवाब में कैमरे में महेश भट्ट मुस्कुराते हुए उनकी बात सुनते हुए नज़र आ रहे हैं.
मोहम्मद हसनैन कहते हैं, “आपकी नीयत पर शक नहीं यह (आपकी) मजबूरी है. इस देश के हिंदू बुद्धिजीवी को इतना डर है, यह मजबूरी है.”
पंद्रह मिनट के इस वीडियो के दौरान वह भारतीय मुसलमानों की शिकायतों के बारे में व्यापक पैमाने पर बात करते हैं.
25 सितंबर को ये दोनों भारतीय नागरिक कराची प्रेस क्लब पहुंचे और भारत में मुसलमानों पर अत्याचार के विरुद्ध प्रदर्शन किया जिसके बाद से उनके पाकिस्तान आने की ख़बर आम हुई.
पाकिस्तान में नागरिकता नहीं मिली तो…
मोहम्मद हसनैन और इसहाक़ स्पष्ट तौर पर कह चुके हैं कि वह वापस भारत नहीं जाना चाहते लेकिन अगर पाकिस्तान ने उन्हें शरण और नागरिकता न दी तो वो क्या करेंगे?
इसहाक़ अमीर बोले,”हम तो केवल शरण चाह रहे हैं. हमारा मक़सद यहां पर घर या नौकरी मांगना नहीं. मैं अभी युवा हूं, मैं ड्राइविंग कर सकता हूं, रोटी बना सकता हूं. बाहर बहुत सारे मज़दूरी वाले काम हैं, वह कर सकता हूं.”
“वालिद साहब पढ़ा सकते हैं, मैं भी पढ़ा सकता हूं. क़ुरान तो पढ़ा सकता हूं. मैंने हिफ़्ज़ किया (क़ुरान कंठस्थ) है. बस शरण चाहते हैं, वापस नहीं जाना चाहते.”
“गोली मार दें, जेल में डालकर सड़ा दें, कोई दिक़्क़त नहीं. अगर आपको नहीं रखना तो वापस न भेजें बल्कि अपने पास किसी जेल के कोने में डाल दें, किसी पिंजरे में बंद कर दें, वह भी मंज़ूर है.”
मोहम्मद हसनैन का कहना था, “मैं इस देश में जीने के लिए नहीं आया हूं. मैं इस देश में सुकून के साथ मरने के लिए आया हूं. कोई जीने की तमन्ना नहीं अब.”
उन्होंने सीमा हैदर मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर सीमा को वहां की सरकार क़बूल कर सकती है तो पाकिस्तान सरकार को मुझे क़बूल करने से दुनिया की कौन ताक़त रोकती है.”
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नियाज़ फ़ारूक़ी, शुमाइला ख़ान
पदनाम,बीबीसी उर्दू संवाददाता