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भारत में इसराइल के लिए भर्तियां निकली, उठ रहे हैं गंभीर सवाल : रिपोर्ट

दिसंबर 2023 में भारत में इसराइल के लिए भर्तियां निकली थीं. अब इस मामले में आगे की प्रक्रिया शुरू हो गई है. मगर कुछ चिंताएँ भी हैं.

द हिंदू अख़बार में पत्रकार सुहासिनी हैदर और ए एम जिगीश ने इसी से जुड़ी एक रिपोर्ट की है.

द हिंदू की रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम दो राज्य यूपी और हरियाणा के अधिकारी हज़ारों आवेदनों की जांच करने की तैयारी कर रहे हैं.

व्यापार संगठनों और उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार इस भर्ती के लिए उन सारे नियमों को ताक पर रख रही है, जिसके तहत संघर्ष वाली जगहों पर नौकरी के लिए जाने वाले भारतीय कामगारों को सुरक्षा मिलती है.

रिपोर्ट के मुताबिक़, जिन कामगारों को इसराइल जाना होगा, उनको विदेश मंत्रालय की वेबसाइट ‘ई माइग्रेट’ पर रजिस्टर करने की भी ज़रूरत नहीं होगी. सरकार के कई मंत्रियों और एजेंसियों ने इन कामगारों की सलामती और सुरक्षा का ज़िम्मा उठाने से भी इनकार किया है.

नेशनल स्किल्स डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन यानी एनएसडीसी ने एक विस्तृत दस्तावेज जारी किया है. इसके बाद इस मामले में अब मज़दूर संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता अदालत का रुख़ करने की तैयारी कर रहे हैं.

किस बात पर है आपत्ति?
द हिंदू की रिपोर्ट में एक्टिविस्ट के हवाले से इस क़दम को अमानवीय कहा गया है.

इन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे वक़्त में जब ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में इसराइली सैन्य हमले जारी हैं, तब भारत के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, नर्सों और केयरगिवर की तेज़ी से भर्ती किए जाने का फ़ैसला जोखिम भरा है.

भारत की ओर से इन कामगारों को इसराइल भेजने की कोशिशें ऐसे वक़्त में तेज़ हुई हैं, जब 19 दिसंबर 2023 को इसराइली पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी से फ़ोन पर बात की थी और भारतीय मज़दूरों को जल्दी भेजने की गुज़ारिश की थी.

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस यानी एआईटीयूसी के जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने द हिंदू से कहा, ”ये क़दम भारतीय आचरण के ख़िलाफ़ है. हम इसराइल से सीज़फ़ायर चाहते हैं. हम मज़दूरों की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं. मज़दूर संगठन अब अदालत का रुख़ करने का सोच रहे हैं.”

द हिंदू ने उन दस्तावेज़ों को देखा है, जो कामगारों को नौकरी के लिए इसराइल भेजने से जुड़े हैं. इसमें आकर्षक सैलरी का तो ज़िक्र मिलता है लेकिन किस तरह की सुरक्षा दी जाएगी, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है.

इन दस्तावेज़ों के मुताबिक़

इसराइल जाने वालों को अपनी फ्लाइट टिकट के पैस ख़ुद देने होंगे
इन लोगों को एनएसडीसी को फ़ीस के तौर पर 10 हज़ार रुपये देने होंगे
इन कामगारों को किसी तरह का इंश्योरेंस, मेडिकल कवरेज और रोज़गार की गारंटी नहीं दी जाएगी

इसराइल में कितनी नौकरी
एनएसडीसी की वेबसाइट में नौकरी के लिए जो पोस्टर लगाया गया है, उसमें लिखा है- इसराइल में नए क्षितिज को पाने का मौक़ा.

द हिंदू के मुताबिक़, वेबसाइट में प्लास्टर से जुड़ा काम करने वालों के लिए 2000 नौकरियां, टाइल मज़दूरों के लिए 2000 नौकरियां, लोहे का काम करने वालों के लिए 3000 नौकरियां हैं.

इन लोगों की महीने की सैलरी क़रीब एक लाख 37 हज़ार रुपये बताई गई है. इनमें से खाने, मेडिकल इंश्योरेंस का पैसा भी काटा जाएगा.

हरियाणा और यूपी में इसी से जुड़े विज्ञापन निकाले गए थे और कहा गया था कि 10-10 हज़ार नौकरियां हैं.

एनएसडीसी इंटरनेशनल के हवाले से इसराइल में नौकरी के लिए जो दस्तावेज़ जारी किया गया है, उससे कई सरकारी एजेंसियां औपचारिक तौर पर दूरी बरत रही हैं.

सरकारी सूत्रों ने द हिंदू से पुष्टि की है कि भर्ती की प्रक्रिया इस हफ़्ते शुरू हो जाएगी और कई शहरों में इंटरव्यू किए जाएंगे.

द हिंदू ने इस बारे में एनएसडीसी के सीईओ वेद मणि तिवारी से बात की. वो बोले- भर्ती का विज्ञापन राज्य सरकारों ने निकाला था, एनएसडीसी ने नहीं.

तिवारी कहते हैं, ”हम भर्ती करने वाली कंपनी नहीं हैं. इसराइल या कंपनी को लेकर हमारा कोई मैंडेट नहीं है. कुछ राज्य सरकारों ने इसराइल में नौकरियों के लिए विज्ञापन दिया था. हमारा काम बस ये है कि कामगारों को स्किल से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाए.”

श्रम मंत्रालय ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया है.

वहीं हरियाणा के श्रम मंत्री अनूप धनक ने कहा- कामगारों के विदेश जाने से जुड़े मामलों पर नज़र रखने का काम विदेश मंत्रालय का है.

विदेश मंत्रालय ने भी द हिंदू के पूछे सवालों पर जवाब देने से इनकार किया.

अधिकारियों का कहना है कि ये भर्ती प्रक्रिया बीटूबी यानी बिजनेस टू बिजनेस के तहत की जानी चाहिए.

मगर इसमें इन कामगारों के भविष्य को लेकर स्पष्ट तौर पर बातें नहीं कही गई हैं.

इसराइल और भारत का समझौता क्या है?
सात अक्टूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर जब हमला किया, तब क़रीब 80-100 विदेशी कामगार मारे गए थे. इसके बाद भारत समेत कई देशों ने इसराइल से अपने नागरिकों को निकाला था.

भारत ने इसे ऑपरेशन अजय नाम दिया था. इसके तहत इसराइल में रहने वाले 18 हज़ार भारतीयों में से सिर्फ़ 1300 भारतीय भारत लौटे थे.

इसराइल की इमिग्रेशन एजेंसी पीआईबीए ने भी द हिंदू के पूछे सवालों पर जवाब नहीं दिया.

लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसराइल भारत सरकार के साथ हुए समझौतों के तहत ही आगे बढ़ेगा.

बीते साल नवंबर में स्किल डिवेलपमेंट मंत्रालय ने इसराइल की सरकार के साथ तीन साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत भारत से कामगारों को इसराइल में निर्माण और केयरगिविंग क्षेत्र में नौकरी दी जाने की बातें थीं.

द हिंदू में कहा गया कि किसी भी एजेंसी ने इन कामगारों की सुरक्षा को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है.

अभी क्या नियम हैं?
द हिंदू की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भारत से अगर कोई कामगार किसी संघर्ष वाले क्षेत्र या बिना लेबर प्रोटेक्शन वाली जगह जाते हैं, तो उन्हें विदेश मंत्रालय की ई माइग्रेट पोर्टल पर रजिस्टर करना होता है.

इमिग्रेशन चैक रिकॉयर्ड स्कीम के तहत दर्ज वाले पासपोर्ट 18 देशों में जाने वाले कामगारों को कवर करती है.

इनमें अफ़ग़ानिस्तान, बहरीन, इंडोनेशिया, इराक़, जॉर्डन, सऊदी अरब, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, ओमान, कतर, साउथ सूडान, सूडान, सीरिया, थाईलैंड, यूएई और यमन शामिल हैं.

इस लिस्ट में इसराइल का नाम नहीं है. ये बदलाव ऐसे वक़्त में भी नहीं आया है, जब इसराइल में जारी मौजूदा संघर्ष में विदेशी कामगार मारे गए हैं.

एक अधिकारी ने द हिंदू से पुष्टि की है कि इसराइल के मामले में ई माइग्रेट सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. इस पोर्टल को 2015 में शुरू किया गया था.

कुछ अधिकारियों ने अपनी पहचान छिपाए रखते हुए सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा है कि भारत क्या फ़लस्तीनी कामगारों के विकल्प के तौर पर भारतीयों को भेज रहा है.

अधिकारियों का कहना है कि ऐसे में भारत ख़ुद को तटस्थ कहाँ से कह पाएगा. इन अधिकारियों ने आशंका जताई है कि इससे मध्य पूर्व में काम कर रहे 80 लाख भारतीयों पर भी ख़तरा मंडरा सकता है.

जब 14 दिसंबर 2023 को संसद में इस बारे में सवाल पूछा गया था तो विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा था कि फ़लस्तीनी कामगारों के विकल्प के तौर पर भारतीयों को भेजने से जुड़ी कोई बातचीत इसराइल से नहीं की गई है.