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भारत, बांग्‍लादेश और पाकिस्‍तान के 13 करोड़ लोगों के सिरों पर मंडराते ख़तरे के बादल : रिपोर्ट

धरती पर मंडरा रहे जलवायु परिवर्तन के संकट को रोकने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र का 28वां जलवायु परिवर्तन महासम्‍मेलन आगामी 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक संयुक्‍त अरब इमारात में होने जा रहा है। इसमें दुनिया के 192 देशों के प्रतिनिधि हिस्‍सा लेंगे।

बीते सवा लाख बरसों में इस साल सबसे अधिक गर्म जुलाई से जूझने के बाद तो सारी दुनिया पर यह बात साफ़ ज़ाहिर है की इस वर्ष, पहले से कहीं ज़्यादा, सफलता के लिए एकता आवश्यक है। इसकी सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि यह दुनिया को साल 2030 तक 43 फ़ीसद उत्सर्जन में कटौती के तरफ़ ले जाए ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित किया जा सके। साथ ही उसको इस दिशा में एक सुदृढ़ रोडमैप पर चलने के लिए प्रेरित करे ताकि हम एक क्लाइमेट रेसिलिएंट दुनिया बना सकें जो जलवायु परिवर्तन को आगे बढ़ने से रोक सके। वहीं भारत, पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश के 13 करोड़ लोगों पर सबसे ज़्यादा जलवायु परिवर्तन से ख़तरा मंडरा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5-2 डिग्री सेल्सियस के अंदर रोकने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीवाश्म ईंधन की मांग और आपूर्ति को चरणबद्ध तरीक़े से कम करना अपरिहार्य और आवश्यक है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मज़बूत नीतियों की आवश्यकता है। इस काम के लिये एक समग्र दृष्टिकोण चाहिए जो आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों को एकीकृत तरीक़े से एक साथ लाए।

उल्लेखनीय है कि आने वाली शताब्दी में ग्रीनहाउस गैस निकासी में हो रही वृद्धि से यदि ग्लोबल तापमान 2 डिग्री सेंटीग्रेड से उपर बढ़ गया, तो जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र के स्तर में वृद्धि, मानसून में बदलाव, मौसम का बदलता मिजाज़, समुद्री तूफ़ान, चक्रवात और कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा, कभी जलापूर्ति के अभाव के कारण पड़ने वाले अकाल से दक्षिण एशिया क्षेत्र में प्रवासियों की बाढ़ सी आ जाएगी। तीन दक्षिण एशियाई तटीय देशों- बंगलादेश, पाकिस्तान और भारत में इस समय लगभग 13 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्र में रह रहे हैं जिसे कम ऊंचाई वाला तटीय क्षेत्र कहा जाता है। अर्थात वह स्थान जो औसत समुद्र स्तर से 10 मीटर से भी कम ऊंचा होता है। ऐसे में अगर ग्लोबल वार्मिंग पर लगाम ना कसी तो लगभग 125 मिलियन लोग बेघर हो जाएंगे जिसमें 75 मिलियन लोग बंगलादेश और भारत से होंगे। इसका मतलब यह है कि आने वाली पीढ़ी के लिये विकास और सुविधाओं के तमाम रास्ते बन्द हो सकते हैं और उन्हें बड़े पैमाने पर साफ़ सुथरी ऊर्जा के लिए संसाधन तलाश करने होंगे, वरना जलवायु परिवर्तन के असर से चक्रवाती तूफान, बाढ़ ,सूखा और भायनक लू के साथ बढ़ते समुद्र जल स्तर और पिघलते ग्लेशियरों के ख़तरे का सामना करना पड़ेगा।