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भारत के सभी पड़ोसी देशों ”अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका” ने चीन की ‘वन चाइना’ पॉलिसी का समर्थन किया, भारत चुप क्यों है : रिपोर्ट

चीन, अमेरिकी संसद के सदन, हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी के दौरे को ‘वन चाइना’ पॉलिसी का उल्लंघन मानता है.

नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे और उससे हुए विवाद पर भारत ने अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया है.

वहीं, भारत के लगभग सभी पड़ोसी देशों (अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका) ने चीन की ‘वन चाइना’ पॉलिसी का समर्थन किया है.

If China does not firmly resist such irresponsible & irrational actions by the US, the principle of respecting sovereignty and territorial integrity will become a dead letter, and the hard-won peace in the region will be undermined, State Councilor and FM Wang Yi said Thu pic.twitter.com/9y3bkpKHbM

— Global Times (@globaltimesnews) August 4, 2022

लेकिन भारत की चुप्पी से कहीं ज़्यादा उसके पड़ोसी देशों का चीन के समर्थन में मुखर होना ध्यान खींचता है.

इस बात पर चर्चा इसलिए भी क्योंकि चीन के संदर्भ में भारत जब भी अपनी क्षेत्रीय अखंडता या संप्रभुता की बात करता है तो उसके पड़ोसी देश कभी भी, इस तरह खुले तौर पर उसका समर्थन नहीं करते हैं.

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) का एक प्रभावी देश होने के बावजूद चीन के सापेक्ष भारत को उसके सहयोगी-पड़ोसी देशों का समर्थन नहीं मिलता है.

भारत जब चीन को लेकर लद्दाख में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बात करता है तो पड़ोसी देशों से ऐसी मुखर प्रतिक्रिया कभी नहीं आई.

इस पर जेएनयू में साउथ एशियन स्टडीज़ सेंटर के प्रोफ़ेसर महेंद्र लामा कहते हैं, “इसके कई कारण है.”

“एक कारण तो यह कि जिस तरह से चीन अपनी विदेश नीति को लेकर आगे चलता है, वह अद्वितीय है. उनकी नीति का प्रसार इस तरह से किया जाता है कि लोग वन-चाइना पॉलिसी पर यकीन करें. चीन अपनी इस नीति को कामयाब बनाने के लिए प्रोपेगेंडा का भी भरपूर इस्तेमाल करता है.”

वह कहते हैं, “हमारे देश में जो विदेश नीति रही है, ख़ासतौर पर लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को लेकर, उसमें हम सार्क देशों को विश्वास में लेना ही नहीं चाहते हैं. माना कि पाकिस्तान के साथ हमारे अलग किस्म के मसले हैं लेकिन बाकी देश जैसे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश वगैरह को बार-बार अपना स्टैंड स्पष्ट करना चाहिए, उन्हें विश्वास में लेना चाहिए लेकिन हम नियमित तौर पर, एक नीति के तहत ये नहीं करते हैं जबकि चीन अपनी नीतियों को फैलाने में आक्रामक तरीके से काम करता है.”

प्रोफ़ेसर पी लामा कहते हैं कि दूसरी एक वजह ये भी है कि चीन से जुड़ी जब कोई बात होती है जो उसके विरुद्ध जाती है तो, वह उसका मुखर तौर पर विरोध करता है.

वह कहते हैं, “अभी हालिया घटना को ही लें तो आप देखेंगे कि चीन ने व्यापक तौर पर अमेरिका की मुख़ालफ़त की और ज़ोर-शोर से सभी को अपने पक्ष में करने की कोशिश की लेकिन भारत के संदर्भ में जब लद्दाख की बात आती है तो हम एंटी-चाइनीज़ प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ा ही नहीं पाते हैं.”

हालांकि, लामा मानते हैं कि भारत की पहले की ‘सौम्य’ नीति की तुलना में आज भारत काफी आक्रामक तरीक़े से जवाब देता है. वह चीन के ख़िलाफ़ भारत की मौजूदा स्थिति को देखते हुए मानते हैं कि अब भारत ‘वन-इंडिया पॉलिसी’ को पहले की तुलना में कहीं बेहतर तरीक़े से रख पा रहा है.

पड़ोसी अगर चीन हो तो…
शंघाई में लंबे समय तक रहे चुके पत्रकार अमित देशमुख कहते हैं, “चीन एक ऐसा देश है जो मॉडर्न-कैपिटलिस्ट की तरह काम कर रहा है. मतलब, भारत के आस-पास के जितने भी मुल्क हैं, उनके निजी मसलों में चीन की काफी दख़लअंदाज़ी है. कुल मिलाकर बात यह है कि भारत के जितने भी पड़ोसी देश हैं, इन सभी को इंस्टेट-प्रॉफ़िट पहुंचाने में चीन, भारत से बहुत आगे है. आम लोगों की ज़रूरत की चीज़ें चीन व्यापक तौर पर बना रहा है. हर छोटे-बड़े देश में चीन कर्ज़ दे रहा है.”

वह आगे कहते हैं, “चीन फ़ौरी-मदद दे रहा है, कर्ज़ दे रहा है. कुल मिलाकर बाज़ारवाद हावी है और बाज़ारवाद के कारण चीन का समर्थन करना इन देशों की एक मजबूरी भी है.”

अमित देशमुख कहते हैं कि चीन अपने आंतरिक मामलों में किसी को भी दख़ल नहीं देने देता. कोरोना महामारी की शुरुआत में उसने डब्ल्यूएचओ तक को प्रवेश नहीं दिया. इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वो अपने आंतरिक मामलों को लेकर कितना तटस्थ है.

वह कहते हैं, “अगर बात भारत के समर्थन की करें तो भारत इन देशों की उस तरह से मदद नहीं कर पाता है जिस तरह से चीन करता है. वो चाहे आर्थिक मदद हो, निर्माण संबंधी मदद हो या फिर उद्योग स्थापित करने से जुड़ी मदद.”

चीन का दावा है कि हालिया घटनाक्रम के बाद सौ से अधिक देशों ने उसकी नीति का समर्थन किया है.

चीन का दावा

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि 100 से अधिक देशों ने मौजूदा हालातों के दरम्यान वन चाइना पॉलिसी के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता जताई है.

इससे पहले, तीन अगस्त को चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुया चुनिइंग ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया था, “दुनिया में सिर्फ़ एक चीन है और ताइवान उसका हिस्सा है.”

अपने बयान में चुनिइंग ने कहा था कि अमेरिका समेत दुनिया के 181 देशों ने वन-चाइना सिद्धांत के तहत ही चीन के साथ रणनीतिक संबंध स्थापित किए हैं.

भारत के पड़ोसी देशों की ओर से ताइवान मामले पर जो आधिकारिक बयान आए हैं, वे भी चुनिइंग के इस दावे को काफी हद तक सही ठहराते हैं.

श्रीलंका ने किया है चीन की वन पॉलिसी का समर्थन
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श्रीलंका ने चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन किया है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे ने ट्वीट करके चीन को अपना समर्थन दिया है.

During a meeting with H.E. Qi Zhenghong, Ambassador of China, I reiterated Sri Lanka’s firm commitment to the one-China policy, as well as to the UN Charter principles of sovereignty and territorial integrity of nations. (1/2)

— Ranil Wickremesinghe (@RW_UNP) August 4, 2022

विक्रमसिंघे ने ट्वीट किया, “चीन के राजदूत एच.ई.की. झेंगहोंग से मुलाक़ात के दौरान मैंने वन चाइना पॉलिसी के प्रति श्रीलंका की प्रतिबद्धता को दोहराया. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के चार्टर सिद्धांतों के तहत राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति भी अपनी वचनबद्धता ज़ाहिर की.”

रनिल विक्रमसिंघे ने ट्वीट में दुनिया के देशों से उकसावे की कार्रवाई से बचने का आह्वान किया है.

उन्होंने आगे लिखा है, “देशों को उकसावे की कार्रवाइयों से बचना चाहिए क्योंकि यह आगे चलकर मौजूदा वैश्विक-तनाव का रूप ले लेती हैं. आपसी सम्मान और देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना शांतिपूर्ण सहयोग और टकराव की स्थिति से बचने की बुनियाद है.”

बांग्लादेश ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के पालन पर दिया ज़ोर
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बांग्लादेश ने भी चीन के वन चाइना नीति को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय की ओर से इस संदर्भ में, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार और आपसी बातचीत से आपसी मतभेदों को दूर करने का आग्रह किया गया.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय की ओर से बयान के मुताबिक़, “बांग्लादेश पूरे घटनाक्रम पर नज़र रख रहा है. ताइवान जलडमरू पर जिस भी तरह की गतिविधियां हो रही हैं, सभी पर बांग्लादेश की नज़र है. इसके साथ ही हम सभी पक्षों से यह अनुरोध करते हैं कि वे संयम बरतें और किसी भी ऐसी कार्रवाई से परहेज़ करें जिससे तनाव बढ़ सकता है.”

बांग्लादेश के विदेश राज्य मंत्री मोहम्मद शहरियार आलम ने कहा, “इस बयान में कोई नई बात नहीं है क्योंकि बांग्लादेश शुरू से ही वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता रहा है.”

उन्होंने आगे कहा कि बांग्लादेश इस मुद्दे पर कोई नया तनाव नहीं चाहता है.

उन्होंने अपने बयान में कहा, “दुनिया पहले से ही अलग-अलग तरह की कई समस्याओं से जूझ रही है. हम नहीं चाहते हैं कि कोई दूसरी नई समस्या आन खड़ी हो. बांग्लादेश हमेशा से वन चाइना पॉलिसी का समर्थन रहा है और नहीं चाहता है कि इस मुद्दे पर कोई नया तनाव जन्म ले.”

बांग्लादेश में चीन के राजदूत ली जिमिंग ने बांग्लादेश की सरकार से दोनों देशों के बीच की दोस्ती का उल्लेख करते हुए कहा था, “चीन की वन चाइना पॉलिसी के प्रति बांग्लादेश की प्रतिबद्धता और ताइवान की स्वतंत्रता के प्रति दृढ-विरोध की चीन सराहना करता है.”

नेपाल ने भी दोहराई अपनी प्रतिबद्धता

नेपाल ने भी चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन किया है.

नेपाल के विदेश मंत्रालय ने ताइवान मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए ट्वीट किया है.

ट्वीट के अनुसार, “नेपाल ताइवान-जलडमरू की मौजूद स्थिति पर पैनी-नज़र बनाए हुए है. नेपाल हमेशा से वन-चाइना पॉलिसी का समर्थक रहा है. दोनों ही देश, नेपाल और चीन एक-दूसरे की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता का सम्मान करते रहे हैं.”

Nepal is closely following the evolving situation in the Taiwan Straits. Nepal has always been upholding One China Policy. Both Nepal and China have been respecting each other’s sovereignty, territorial integrity, and national independence. @PaudyalBR @sewa_lamsal

— MOFA of Nepal 🇳🇵 (@MofaNepal) August 5, 2022

नेपाल ने ख़ुद को एक शांतिप्रिय राष्ट्र बताते हुए कहा है कि नेपाल क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बनाए रखने का समर्थन करता है.

वहीं नेपाल में चीन की राजदूत होऊ यांकी ने नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को वन-चाइना सिद्धांत का घोर उल्लंघन बताया है और साथ ही ये भी कहा है कि अमेरिका ने यह क़दम उठाकर चीन-अमेरिका के राजनीतिक रिश्ते की बुनियाद का भी उल्लंघन किया है.

होऊ यांकी ने नेपाल के समर्थन पर बयान जारी कर कहा कि चीन और नेपाल अच्छे पड़ोसी हैं, एक-दूसरे पर भरोसा रखने वाले दोस्त हैं और भरोसेमंद पार्टनर हैं. उन्होंने नेपाल-चीन के रिश्ते को पहाड़-नदी के रिश्ते की तरह बताया है.

म्यांमार के विदेश मंत्रालय की ओर से नैंसी पेलोसी की यात्रा पर चिंता ज़ाहिर की गई थी.

तीन अगस्त को मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर बयान जारी कर लिखा गया कि म्यांमार अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर चिंतित है, जिसकी वजह से ताइवान जल-डमरू पर तनाव बढ़ रहा है.

“म्यांमार इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने वाली किसी भी उत्तेजक कार्रवाई और अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास का विरोध करता है.”

इसके साथ ही म्यांमार ने भी पूरी तरह वन चाइना पॉलिसी का समर्थन किया है. ताइवान ने अपने बयान में इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि ताइवान, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का अभिन्न हिस्सा है.

मालदीव ने चीन के प्रति जताई प्रतिबद्धता

मालदीव की स्थानीय मीडिया के मुताबिक़, मालदीव की सरकार ने वन-चाइना पॉलिसी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है और चीन के रुख़ के प्रति अपना समर्थन जताया है.

ताइवान के बढ़ते मुद्दे पर मालदीव के रुख़ के बारे में पूछे जाने पर मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव, चीन की वन-चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है. हालांकि, विदेश मंत्रालय इस मामले पर आधिकारिक बयान जारी नहीं करेगा.

मालदीव हमेशा से चीन की वन-चाइना पॉलिसी का समर्थक रहा है.

इससे पहले भी मालदीव चीन की वन-चाइना पॉलिसी का समर्थन करता रहा है.

साल 2019 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ मुलाक़ात के दौरान मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने इस संबंध में मालदीव की प्रतिबद्धता को दोहराया था.

मालदीव के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर अब्दुल्ला और वांग यी की एक तस्वीर के साथ इसका उल्लेख है.

इसके मुताबिक़, “मालदीव की सरकार चीन के वन-चाइना पॉलिसी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर दृढ-संकल्प है. चीन ने भी मालदीव के क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय विकास में सहयोग के प्रति अपना समर्थन जताया है.”

अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने भी किया समर्थन

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल क़हर बाल्खी ने ट्वीट करके चीन को समर्थन दिया है.

उन्होंने लिखा है, “पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना और अमेरिका के रिश्ते सुरक्षा, स्थायित्व और क्षेत्र के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं. “

د چین ولسي جمهوریت او امریکا متحده ایالاتو ترمنځ اړیکې د سیمې پر امنیت، ثبات او ښېرازۍ اغېز لري. د ا. ا. ا. له ټولو هېوادونو څخه غواړي چې له داسې پرېکړو څخه ډډه وکړي چې د دولتونو د ملي حاکمیت سرغړونه بلل کېږي او پاروونکو اقداماتو ته زمینه برابروي. pic.twitter.com/HFlOzQdusk

— Abdul Qahar Balkhi (@QaharBalkhi) August 3, 2022

ट्वीट में आगे कहा गया है कि सभी देशों को ऐसे फ़ैसले या कार्रवाई से परहेज़ करना चाहिए जो किसी भी दूसरे देश की संप्रभुता का उल्लंघन करते हों. या फिर उकसावे का काम करते हों.

पाकिस्तान ने दीर्घकालिक प्रतिबद्धता दोहराई

ताइवान मुद्दे पर चीन को पाकिस्तान का साथ भी मिला है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने तीन अगस्त को बयान जारी कर कहा था कि वो ‘वन-चाइना’ नीति पर क़ायम है और वो चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करता है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आसिम इफ़्तिख़ार अहमद ने कहा था कि ताइवान स्ट्रेट में पनपती स्थितियों को लेकर पाकिस्तान चिंतित है. क्षेत्रीय शांति और अस्थिरता पर इस स्थिति का गंभीर असर होगा.

उन्होंने कहा कि दुनिया यूक्रेन युद्ध की वजह से पहले ही गंभीर हालात से जूझ रही है. ऐसे में ये विश्व एक ऐसा संकट नहीं झेल सकता जिसका वैश्विक शांति, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर होगा.

🔊: PR NO. 3️⃣5️⃣0️⃣/2️⃣0️⃣2️⃣2️⃣

Pakistan reaffirms ‘One-China’ policy

🔗⬇️https://t.co/YMNPLJVnWZ pic.twitter.com/kZDEcKhBhV

— Spokesperson 🇵🇰 MoFA (@ForeignOfficePk) August 3, 2022

प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान का मानना है कि दो देशों के बीच रिश्ते पारस्परिक सम्मान, अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करने और यूएन चार्टर के अनुरूप शांतिपूर्ण मसलों को सुलझाने पर आधारित होते हैं.

इस बीच छह अगस्त को चीन में पाकिस्तान के राजदूत मोइन उल हक ने भी चीन की संप्रभुता को लेकर बयान जारी किया.

ग्लोबल टाइम्स की ख़बर के अनुसार, मोइन उल हक ने एक बयान जारी कर कहा है कि पाकिस्तान वन-चाइना नीति का समर्थन करता है. वह चीन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का भी समर्थन करता है.

पाकिस्तान के हवाले से बयान जारी करते हुए मोइन उल हक ने ताइवान और नैंसी पेलोसी की विवादित यात्रा से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान अपने “आयरन-ब्रदर” को समर्थन देना जारी रखेगा.

चीन की जवाबी कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए मोइन उल हक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून की सीमा के तहत, हर देश को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने का अधिकार है.

ईरान भी चीन के समर्थन में

ईरान ने ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन में चल रहे तनाव के बीच चीन की ‘वन चाइना’ नीति का खुलकर समर्थन किया है.

ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुलाहयन ने पूर्वी एशिया में हो रही गतिविधियों के संदर्भ में चीन को लेकर अमेरिका के व्यवहार की निंदा की है.

FM @Amirabdolahian highlights #Iran’s active efforts to reach stable, strong agreement https://t.co/HG7YC9zCuS pic.twitter.com/GQGXjlYwvm

— Government of the Islamic Republic of Iran (@Iran_GOV) August 6, 2022

चीन के विदेश मंत्री वांग यी से फ़ोन पर हुई बातचीत के दौरान उन्होंने ज़ोर दिया कि ईरान एक क़ानूनी दायित्व के तौर पर चीन की ‘वन चाइना’ नीति का पालन करता है.

वहीं, चीन ने देश की क्षेत्रीय अखंडता को लेकर ईरान की स्थिति की सराहना की और इस बात पर ज़ोर दिया कि विश्व समुदाय का एक बड़ा हिस्सा चीन के आंतरिक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप का विरोध करे.

भारत चुप क्यों है और उसकी चुप्पी के क्या हैं मायने

भारत ने चीन-ताइवान के हालिया मसले पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है. भारत की इस चुप्पी पर जानकार मानते हैं कि भारत सीमा विवाद को लेकर चल रही बातचीत के इस संवेदनशील समय में चीन के साथ कोई विवाद पैदा नहीं करना चाहता.

वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर और अनंत कृष्णन ने द हिंदू के लेख में एक लिखा है, “भारत सीमा विवाद को लेकर चल रही बातचीत के इस संवेदनशील समय में चीन के साथ कोई विवाद पैदा नहीं करना चाहता. हालांकि, भारत ‘वन चाइना पॉलिसी’ को लेकर अपना समर्थन भी ज़ाहिर नहीं करना चाहता है.”

भारत ने इस पूरे मामले में ‘सोची-समझी चुप्पी’ साधने का फ़ैसला किया है. यहां तक कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कंबोडिया में भारत-आसियान मंत्री स्‍तरीय बैठक में भी इस मसले पर कोई बयान नहीं दिया.

अमित देशमुख कहते हैं, “सबसे पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि दुनिया में जो देश आर्थिक रूप से समृद्ध हैं वही डॉमिनेट करने की ताक़त रखते हैं. फिलहाल दुनिया में कई तरह के और भी मुद्दे चल रहे हैं और भारत मौजूदा समय में उस स्थिति में नहीं है कि चीन के साथ तनाव को बढ़ाए. पोस्ट-कोविड की स्थिति और दूसरी कई चीज़ों से निपटना अभी उसकी प्राथमिकता है.”

जेएनयू में साउथ एशियन स्टडीज़ सेंटर के प्रोफ़ेसर महेंद्र लामा कहते हैं, “जिस तरह की चीन की विदेश नीति है और जिस तरह की भारत की विदेश-नीति है, उसमें कई मायनों में विरोधाभास है. इन्हीं विरोधाभासों के कारण भारत, चीन की नीति का समर्थन कर भी कैसे सकता है.”

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भूमिका राय
बीबीसी संवाददाता