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भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे नही, बाबा तिलका मांझी थे

Kranti Kumar
@KraantiKumar
भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे नही, बाबा तिलका मांझी थे. संथाल भाषा में तिलका का अर्थ है गुस्सेल विद्रोही. 1778 में झारखंड के रामगढ़ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुवात की.

तिलका मांझी बचपन से राजमहलों का शोषण झेलते और देखते आ रहे थे. उन्होंने कसम खाई अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगे.

राजाओं के मिलीभगत से ब्रिटिश हुकूमत ने आदिवासी संथाल क्षेत्र में खनिज संपदा को लूटने के लिए ज़मींदारों और ठेकेदारों को लाकर बसाना शुरू किया.

जमींदार आदिवासियों से अधिक टैक्स वसूलकर खून चूस रहे थे. दूसरी तरफ सामंत ठेकेदार खनिज संपदा के लिए आदिवासियों को उनकी भूमि से बेदखल करने का काम करने लगे.

ब्रिटिश शासन और ठेकेदार संसाधनों को हथियाने लगे. ज़मींदार साहूकार सामंत आदिवासी समुदाय का शोषण करने लगे. इसी अन्याय के खिलाफ बाबा तिलका मांझी ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उच्च जाति के ज़मींदारों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा दिया.

आदिवासियों को संगठित किया. 1778 में युद्ध लड़कर रामगढ़ इलाके को ब्रिटिश और ज़मींदारों से मुक्त कराया. पारंपरिक हथियारों जैसे धनुष बाण, गुलेल से मुकाबला किया.

1784 में अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए ब्रिटिश कमिश्नर ऑगस्टस क्लीवलैंड मारा गया. उसी वर्ष स्थानीय राजाओं के मदद से ब्रिटिश सेना ने जाल बिछा कर तिलका मांझी को गिरफ्तार कर लिया. फांसी देने से पहले उन्हें बहुत यातना दी गई, खून में डूबी उनकी देह तब भी गुस्सेल थी.

तिलका मांझी की लाल-लाल आंखे ब्रिटिश साम्राज्य और ज़मींदारों को डरा रही थी. राजाओं और ज़मींदारों को भय लग रहा था, ब्रिटिश शासन पर दबाव डालकर तिलका मांझी को सूली पर लटका दिया गया.

महाश्वेता देवी ने अपने बंगाली उपन्यास शालगिरर डाको में तिलका मांझी को शूरवीर लड़ाकू क्रांतिकारी दर्शाया है. 1784 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता स्वाधीनता संग्राम क्रांति का आगाज़ करने बबाबा तिलका मांझी की आज पुण्यतिथि है, उन्हें कोटि कोटि नमन 🙏.

पेंटिंग साभार :- लोकेश ऊके