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भारत की अग्निपथ योजना का मुद्दा नेपाल की शेर बहादुर देउबा सरकार के लिए सिर दर्द बना

भारतीय सेना में जवानों की नई भर्ती योजना अग्निपथ को लेकर नेपाल की सरकार असमंजस में पड़ गई है।

अग्निपथ योजना के तहत ही नेपाल के गोरखा नौजवानों को भारतीय सेना में भर्ती किया जाना है, इसके लिए गोरखा रिक्रूटमेंट डिपो गोरखपुर और दार्जिलिंग ने नेपाल के बुटवल और धरान में भर्ती रैली की तारीख़ की भी घोषणा कर दी है। बुटवल में 25 अगस्त से सात सितंबर तक नेपाली गोरखाओं के लिए भर्ती रैली होनी थी और धरान में 19 से 28 सितंबर तक. लेकिन अब यह तारीख़ टलने जा रही है।

काठमांडू में भारतीय दूतावास के अनुसार, भारत ने नेपाल की सरकार से इन तारीख़ों पर अनुमति मांगी थी नेपाल की सरकार ही भर्ती रैली स्थल पर सुरक्षा मुहैया कराती है।

भारत की ओर से इसे लेकर नेपाल के विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा गया था लेकिन नेपाल की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं आया है, दूसरी तरफ़ भर्ती रैली की तारीख़ क़रीब आ गई है, ऐसे में नेपाल सरकार पर भी दबाव है कि वह जल्दी कोई फ़ैसला ले।

इसी साल नेपाल में नवंबर महीने के आख़िर में चुनाव होने वाले हैं और इस बीच अग्निपथ का मुद्दा शेर बहादुर देउबा सरकार के लिए सिर दर्द बना हुआ है। सरकार कोई भी ऐसा क़दम नहीं उठाना चाहती है, जिससे चुनाव में नुक़सान उठाना पड़े।

नेपाल की विपक्षी पार्टियां भी अग्निपथ के मुद्दे पर देउबा सरकार को घेर रही हैं, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार में विदेश मंत्री रहे प्रदीप ज्ञवाली ने कहा कि अग्निपथ योजना 1947 की त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है।

प्रदीप ज्ञवाली ने कहा कि भारत सरकार इस बात के लिए स्वतंत्र है कि सेना में भर्ती की नीति अपने हिसाब बनाए लेकिन हम अग्निपथ के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार नहीं करेंगे, 1947 की त्रिपक्षीय संधि के बाद जिन सेवा शर्तों और सेवा अवधि के साथ नेपाल के नागरिकों को भारतीय सेना में भर्ती किया जा रहा था, उसे अचानक से बदलना इस संधि का उल्लंघन है, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) इसे स्वीकर नहीं करेगी।

इस योजना को लेकर भारत में भी भारी विरोधी जताया गया और कई जगहों पर हिंसक प्रदर्शन हुए थे।