देश

भारत अहम पड़ोसी है लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध बराबरी का होना चाहिए : जनरल वकार-उज़-ज़मां, बांग्लादेश

बांग्लादेश से शेख़ हसीना की सरकार जाने के बाद वहाँ की अंतरिम सरकार के लोगों के अलावा बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के नेता भारत की नीतियों की आलोचना कर रहे थे.

लेकिन पहली बार बांग्लादेश के सेना प्रमुख ने भी भारत को लेकर अपनी बात कही है. बांग्लादेश के अख़बार ‘प्रथम आलो’ को दिए इंटरव्यू में वहाँ के आर्मी प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मां ने भारत पर बोलने में बहुत सतर्कता बरती है, इसके बावजूद भारत के प्रति उनकी सोच ज़ाहिर होती है.

जनरल वकार-उज़-ज़मां ने एक जनवरी को प्रथम आलो से कहा था कि भारत से लेन-देन का संबंध है. वहीं उन्होंने चीन को बांग्लादेश के विकास में साझेदार बताया है.

बांग्लादेश के आर्मी प्रमुख ने यह भी कहा कि ऐसा कोई भी क़दम नहीं उठाया जाएगा, जिससे भारत के रणनीतिक हित को चोट पहुँचे. जनरल वकार-उज़-ज़मां ने कहा कि भारत अहम पड़ोसी है लेकिन इस बात पर भी ज़ोर दिया कि दोनों देशों के बीच संबंध बराबरी का होना चाहिए.

एक तरफ़ जनरल वकार-उज़-ज़मां ने कहा कि बांग्लादेश कई मामलों में भारत पर निर्भर है, वहीं दूसरी तरफ़ यह भी कहा कि भारत को भी बांग्लादेश से कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं. यानी जनरल वकार-उज़-ज़मां ने खुलकर यह बात कही है कि भारत से बांग्लादेश को फ़ायदा है तो बांग्लादेश से भारत को भी फ़ायदा है.

क्या बांग्लादेश के आर्मी प्रमुख भारत से संबंधों की सीमा बता रहे हैं? एक तरफ़ उन्होंने भारत से लेन-देन का संबंध बताया तो दूसरी तरफ़ चीन को बांग्लादेश के विकास में साझेदार बताया. क्या बांग्लादेश के सेना प्रमुख यह कहना चाह रहे हैं कि कुछ भी एकतरफ़ा नहीं है?

भारत से लेन-देन का संंबंध, लेकिन चीन साझेदार

थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो सुशांत सरीन कहते हैं कि बांग्लादेश के आर्मी प्रमुख ने जो बात कही है, वो दुरुस्त है.

सरीन कहते हैं, ”दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है, जिसका द्विपक्षीय संबंध लेन-देन से अलग है. संबंध वही आगे बढ़ता है, जहाँ पारस्परिक फ़ायदा हो. भारत अगर बांग्लादेश में आधारभूत संरचना पर काम कर रहा है, तो उसका फ़ायदा बांग्लादेश को भी मिल रहा है.”

सरीन कहते हैं, ”बांग्लादेश के आर्मी प्रमुख को लगता है कि चीन उनका साझेदार है, तो आज़मा लें. श्रीलंका और मालदीव के अलावा दुनिया के कई देश चीन को आज़मा चुके हैं. अब बांग्लादेश की बारी है. यह संभव है कि चीन जो प्रोजेक्ट शुरू कर सकता है, वैसा भारत न कर पाए, लेकिन चीन सब कुछ क़र्ज़ के रूप में करता है.”

“बांग्लादेश अगर ये सोचता है कि भारत की भरपाई चीन कर सकता है तो यह उसका ग़लत आकलन है. चीन किधर से बांग्लादेश जाएगा? म्यांमार से जा सकता है लेकिन वहाँ तो पहले से ही ख़ून-ख़राबा जारी है.”

सरीन कहते हैं, ”भारत को इससे दिक़्क़त नहीं है कि बांग्लादेश किससे क़रीबी बढ़ाता है. वह पाकिस्तान से भी क़रीबी बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन भारत की चिंता ये रहती है कि बांग्लादेश की ज़मीन का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ ना हो.”

“शेख़ हसीना के पहले बांग्लादेश की ज़मीन का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ होता रहा है. ऐसे में बांग्लादेश को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा न हो.”

कई लोग मानते हैं कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का चेहरा भले मोहम्मद युनूस हैं लेकिन सत्ता की असली कमान फौज के पास है.

सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है, ”बांग्लादेश की सेना ने इस्लामी सरकार स्थापित की है और यह सरकार हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचार पर चुप है. हिंसक हमले के ख़िलाफ़ एक हिन्दू पुजारी ने विरोध किया तो उन्हें जेल में डाल दिया गया. वहां की न्यायपालिका भी स्वतंत्र होकर काम नहीं कर रही है.”

 

भारत को बांग्लादेश से क्या सुविधाएं मिलती हैं?

बांग्लादेश के आर्मी चीफ़ का यह कहना है कि भारत को भी बांग्लादेश से कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं, तो आख़िर वो कौन सी सुविधाएं हैं?

बांग्लादेश के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ढाका ट्रिब्यून ने लिखा है कि शेख़ हसीना के 16 साल के शासन में भारत को बांग्लादेश के मोंगला और चटगाँव बंदरगाह के अलावा ब्राह्मणबरिया में अशुगंज रीवर पोर्ट के साथ देश के राष्ट्रीय राजमार्गों तक पहुँच मिली हुई थी.

इन मार्गों के ज़रिए भारत बहुत ही आसानी से सामान को देश के पश्चिमी हिस्से से पूर्वोत्तर के राज्यों में भेजता रहा है. भारत के लिए यह रूट सस्ता भी है क्योंकि पूर्वोत्तर के राज्यों तक पहुँचने के लिए बांग्लादेश से दूरी कम हो जाती है.

ढाका ट्रिब्यून ने लिखा है, ”इन ट्रांजिट कॉरिडोर के इस्तेमाल के बदले भारत बांग्लादेश को न्यूनतम शुल्क देता है. पहले भारत पूर्वोत्तर के राज्यों में सामान सिलीगुड़ी के ज़रिए कोलकाता-अगरतला रूट से भेजता था और इस रूट से दूरी 1600 किलोमीटर हो जाती थी. अभी भारत, बांग्लादेश की सड़कों का इस्तेमाल करता है और दूरी 1600 किलोमीटर से घटकर 550 किलोमीटर हो गई है. महज़ 10 घंटे में ये दूरी तय हो जाती है.”

ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, भारत को बांग्लादेश की सड़कों, समुद्री मार्गों और नदी के रूटों के इस्तेमाल के कारण भारी बचत हो रही है, लेकिन बांग्लादेश को इसका फ़ायदा न के बराबर हो रहा है.

अख़बार लिखता है, “बल्कि बांग्लादेश में भारत के ट्रकों और अन्य वाहनों के कारण दुर्घटना, प्रदूषण, ट्रैफिक जाम और सड़कों के फैलाव के कारण खेती की ज़मीन कम होने जैसी समस्याएं हो रही हैं. बांग्लादेश ने इन सड़कों, बंदरगाहों और नदी मार्गों का निर्माण क़र्ज़ लेकर किया था, लेकिन फ़ायदा भारत को हो रहा है.”

ढाका ट्रिब्यून ने लिखा है, ”मिसाल के तौर पर प्रति शिपमेंट दस्तावेज़ बनाने की फीस महज़ 30 टका है. प्रति टन ट्रांसशिपमेंट फीस 20 टका है. सुरक्षा शुल्क 100 टका है. प्रशासनिक शुल्क 100 टका है और प्रति कंटेनर स्कैनिंग फीस 254 टका है, साथ में 15 प्रतिशत वैट. इसके अलावा पोर्ट से सामान ट्रक पर लोड होने के बाद प्रति किलोमीटर केवल 1.85 टका ही चार्ज किया जाता है.”

भारत विरोधी भावना

वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और बांग्लादेश का द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब डॉलर का था और बांग्लादेश ने 11.07 अरब डॉलर का आयात किया था. बांग्लादेश का निर्यात महज़ 1.85 अरब डॉलर का था. यानी बांग्लादेश का व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर से ज़्यादा का है.

बांग्लादेश के सेना प्रमुख ने यह भी कहा है कि यहां से लोग बड़ी संख्या में इलाज कराने भारत जाते हैं. यानी जनरल वकार-उज़-ज़मां कहना चाह रहे हैं कि भारत को इससे आर्थिक फ़ायदा होता है.

बांग्लादेश के अख़बार प्रथम आलो की रिपोर्ट के अनुसार, ”हर साल 20 लाख से ज़्यादा बांग्लादेशी इलाज के लिए भारत जाते हैं. बांग्लादेशी भारत में इलाज के लिए हर साल 500 अरब टका खर्च करते हैं. अब वो इलाज के लिए दूसरे देशों का रुख़ कर सकते हैं. बल्कि बांग्लादेश के लोगों ने दूसरे देशों में इलाज का विकल्प खोजना शुरू कर दिया है.”

बांग्लादेश तीन तरफ़ से भारत से घिरा है और एक तरफ़ से म्यांमार से सीमा लगती है. म्यांमार के इस इलाक़े में विद्रोहियों का दबदबा रहता है, ऐसे हालात में कारोबार नहीं होता है. ऐसी स्थिति में बांग्लादेश सुरक्षा और व्यापार के मामले में भारत पर निर्भर है.

वहीं बांग्लादेश से भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों में सस्ता और सुलभ संपर्क में मदद मिलती है. पूर्वोत्तर के राज्यों से बाक़ी भारत को जोड़ने में बांग्लादेश की अहम भूमिका है.

बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन मानती हैं कि शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान को लेकर उत्साह बढ़ा है.

तसलीमा नसरीन ने लिखा है, ”कुछ महीने पहले बांग्लादेश में बांग्ला बोलने वाले पाकिस्तान समर्थकों ने मोहम्मद अली जिन्ना की पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि दी थी. उसके बाद जिन्ना की जयंती मनाई गई. बांग्लादेश में अचानक जिन्ना प्रेम क्यों बढ़ा है? सच यह है कि जिन्ना प्रेम कोई नया नहीं है बल्कि शुरू से ही था.”

“बांग्ला बोलने वाले ये मुसलमान व्यापक इस्लामी दुनिया की सोच से संचालित होते हैं. मैं जानबूझकर इन्हें बांग्ला बोलने वाला कहती हूं, न कि बंगाली क्योंकि हर बांग्ला बोलने वाला व्यक्ति बंगाली नहीं हो सकता है. जो सच्चा बंगाली होगा, वह बंगाली संस्कृति से प्रेम करेगा.”