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भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक : इन विधेयकों के क़ानून बनने से क्या बदलाव होंगे : रिपोर्ट

देश के आपराधिक कानून को बदलने वाले तीन अहम विधेयकों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक का रास्ता बुधवार को लोकसभा में साफ़ हो गया.

साथ ही विपक्षी राजनीतिक दलों के गठबंधन इंडिया ने संभवतः इन विधेयकों के कुछ प्रावधानों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का फ़ैसला किया है.

आज यानी गुरुवार के अधिकांश अख़बारों में इस ख़बर को प्रमुखता से छापा गया है.

प्रेस रिव्यू में आज सबसे पहले ये जानते हैं कि इन विधेयकों के कानून बनने से पहले क्या अहम बदलाव होंगे.

एक बार लागू होने पर ये बिल भारतीय दंड संहिता (आपीसी), कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह ले लेंगे.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में इन विधेयकों को रखते हुए ये कहा, “अब कोई अभियुक्त आरोप मुक्त होने का निवेदन 60 दिनों के भीतर ही कर सकता है. पहले ये होता था कि एक केस में अगर 25 अभियुक्त हैं तो वो एक के बाद एक अपील दायर करते ही जाते थे और इस वजह से 10 साल तक मुक़दमा शुरू ही नहीं होता था.”

“अब 60 दिनों के अंदर ही न्यायाधीश को इस पर सुनवाई भी करनी है. ज़्यादा से ज़्यादा 120 दिनों में केस ट्रायल पर आएगा. प्ली बारगेनिंग के लिए नए कानून में 30 दिनों का समय दिया गया है. यानी आरोप तय होने के 30 दिनों के अंदर अगर किसी ने गुनाह मान लिया, तो ही सज़ा कम होगी. ट्रायल के दौरान कोई दस्तावेज़ पेश करने का प्रावधान नहीं था. लेकिन अब 30 दिनों के भीतर सभी दस्तावेज़ पेश करना अनिवार्य होगा. इसमें कोई देरी नहीं की जाएगी.”

इन विधेयकों में क्या प्रावधान हैं

अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने इस ख़बर की शुरुआत किसी अभियुक्त को पुलिस हिरासत में रखने की अधिकतम सीमा 15 दिन से बढ़ाकर 90 दिनों तक करने के प्रावधान से की है.

पिछले कानूनों को औपनिवेशिक काल का प्रतीक बताते हुए शाह ने गांधी परिवार पर निशाना साधा.

उन्होंने कहा, “कुछ लोग कहते थे कि हम इन्हें नहीं समझते, मैं उन्हें कहता हूं कि मन अगर भारतीय रखोगे तो समझ में आ जाएगा. लेकिन अगर मन ही इटली का है, तो कभी समझ नहीं आएगा.”

ये तीनों बिल पहली बार अगस्त में हुए संसद के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन सदन में रखे गए थे.

इसके बाद इन्हें संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस समिति की अध्यक्षता बीजेपी सांसद बृज लाल के पास है. समिति ने सितंबर से अक्टूबर के बीच छह दिनों से अधिक मुलाकात की.

इन विधेयकों पर चर्चा के दौरान विपक्ष के कुल 97 सांसद अनुपस्थित रहे. इन्हें सदन से निलंबित किया गया है. नए क्रिमिनल बिलों को अब राज्यसभा में रखा जाएगा. यहां से पास होने के बाद इन्हें राष्ट्रपति के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाएगा.

लोकसभा में 3 नए क्रिमिनल बिल पर जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, “अंग्रेज़ों के समय का राजद्रोह कानून खत्म किया गया है. नाबालिग़ से रेप और मॉब लिंचिंग जैसे अपराधों में फांसी की सज़ा दी जाएगी.”

उन्होंने कहा, “आतंकवाद की व्याख्या अब तक किसी भी कानून में नहीं थी. पहली बार अब मोदी सरकार आतंकवाद की व्याख्या करने जा रही है.”

उन्होंने कहा कि सरकार राजद्रोह को देशद्रोह में बदलने जा रही है. गृह मंत्री ने सदन में कहा कि ‘मॉब लिंचिंग’ घृणित अपराध है और इस कानून में मॉब लिंचिंग अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया जा रहा है.

विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि “व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सबके साथ समान व्यवहार” रूपी तीन सिद्धांत के आधार पर ये प्रस्तावित कानून लाये गए हैं.

विपक्ष सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी में

‘द हिंदू’ अख़बार ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि तीन नए विधेयकों के कुछ प्रावधनों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है.

अख़बार ने कुछ पुख्ता सूत्रों के हवाले से कहा है कि बुधवार को कांग्रेस चीफ़ मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई में विपक्षी पार्टियों के इंडिया गठबंधन के सांसदों की बैठक के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा हुई. हालांकि, अभी तक इस पर कोई औपचारिक एलान नहीं हुआ है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर किए एक ट्वीट में सरकार पर आरोप लगाया है कि इन विधेयकों को बिना किसी चर्चा के पास करवाने के लिए ही विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया.

जयराम रमेश ने लिखा, “आज गृह मंत्री ने क्रूर आपराधिक न्याय विधेयकों को लोकसभा में किसी भी असहमति के बिना पास करवा लिया. कल वह राज्यसभा में भी किसी अलग विचार को समाहित किए बिना ही इसे पास करवाएंगे. अब आपको पता है कि दोनों सदनों से इंडिया गठबंधन के 144 सांसदों को क्यों बाहर फेंक दिया गया.”

इंडिया गठबंधन के कुछ दल इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं. इनका तर्क है कि इसके कुछ प्रावधान ‘पुलिसिया राज’ को बढ़ावा देंगे.

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, “ये तीन आपराधिक विधेयक भारत को एक पुलिस राज्य में बदलने की नींव रख रहे हैं.”