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भाजपा को हटाना है, देश को बचाना है : नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात की : डिटेल रिपोर्ट

विपक्ष को एकजुट करने के मक़सद से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने रविवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से नई दिल्ली में मुलाक़ात की है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सोनिया गांधी के नई दिल्ली स्थित आवास 10, जनपथ में यह मुलाक़ात हुई है.

मुलाक़ात के बाद लालू यादव ने कहा कि तीनों नेता फिर मिलेंगे.

नीतीश कुमार ने कहा, “हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं. मिलकर देश की प्रगति के लिए काम करना है.”

नीतीश कुमार ने कहा कि उनके यहां (कांग्रेस में) अध्यक्ष पद का चुनाव है. उसके बाद ही वो कुछ कहेंगी.

लालू यादव ने कहा, “भाजपा को हटाना है, देश को बचाना है. हमने सोनिया जी से कहा कि आपकी पार्टी सबसे बड़ी है. आप सबको बुलाइए.”

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Bihar CM Nitish Kumar, RJD chief Lalu Yadav meet Cong president Sonia Gandhi at her residence in Delhi

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों को एकजुट करने और कांग्रेस के साथ विपक्ष के अन्य दलों के बीच के मौजूदा मतभेदों को कम करने के इरादे से हुई इस मुलाक़ात को काफ़ी अहम माना जा रहा है.

पिछले महीने बीजेपी के साथ बिहार में अपना गठबंधन तोड़ने और राजद व कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार की सोनिया गांधी से हुई यह पहली मुलाक़ात है.

इससे पहले नीतीश कुमार ने दिन में हरियाणा के फतेहाबाद में इंडियन नेशनल लोकदल की एक रैली में विपक्ष के कई नेताओं के साथ भाग लिया.

इस रैली में उन्होंने बीजेपी पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगाया था


नीतीश कुमार और रलालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात की.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने रविवार (25 सितंबर) शाम को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात की.

मुलाक़ात के बाद लालू यादव ने कहा कि तीनों नेता फिर मिलेंगे. नीतीश कुमार ने कहा, ‘हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं. मिलकर देश की प्रगति के लिए काम करना है.’

नीतीश कुमार ने कहा कि उनके यहां (कांग्रेस में) अध्यक्ष पद का चुनाव है. उसके बाद ही वो कुछ कहेंगी.

लालू यादव ने कहा, ” भाजपा को हटाना है, देश को बचाना है. हमने सोनिया जी कहा कि आपकी सबसे बड़ी पार्टी है. आप सबको बुलाइए.”

इससे पहले 2015 में नीतीश और सोनिया के बीच मुलाक़ात हुई थी. उसी समय बिहार में महागठबंधन का पहला प्रयोग शुरू हुआ था.

तीन नेताओं की मुलाक़ात के पहले जेडीयू ने सोनिया गांधी से भेंट को 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए को एक शिष्टाचार मुलाक़ात बताया. वहीं लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि तीनों नेता विपक्षी एकता को बढ़ाने के लिए मिल रहे हैं.

नीतीश कुमार और सोनिया गांधी के बीच ये मुलाक़ात ऐसे वक़्त पर हुई जब कांग्रेस की राजनीति में एक बड़ा बदलाव दिख रहा है. संभावना यह भी है कि जल्दी ही कांग्रेस को गांधी परिवार के बाहर से कोई अध्यक्ष मिल सकता है.

रविवार को हुई तीनों नेताओं की मुलाक़ात कई मायनों में बहुत ही ख़ास है. नीतीश कुमार पहले भी इसी महीने की शुरुआत में दिल्ली आये थे.

उस दौरान नीतीश ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, एनसीपी नेता शरद पवार, सपा के अखिलेश यादव के अलावा लेफ़्ट पार्टी के नेताओं से मुलाक़ात की थी.

नीतीश कुमार उस दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी मिले थे लेकिन सोनिया गांधी देश में मौजूद नहीं थीं. इसलिए नीतीश कुमार ने इस बार की दिल्ली यात्रा में सोनिया गांधी से समय मांगा था.

Sonia Gandhi tells Lalu Yadav, Nitish Kumar to meet again after Congress President election to work on opposition unity

ANI
@ANI
Delhi | We both held talks with Sonia Gandhi. We have to unite together and work for the country’s progress. They have their party president elections after which she will speak: Bihar CM Nitish Kumar after meeting Congress interim president Sonia Gandhi

मुलाक़ात के क्या हैं मायने?

कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू के सबसे बड़े नेताओं की इस मुलाक़ात से क्या हासिल होगा, ये आगे साफ होगा.

सीएसडीएस के संजय कुमार कहते हैं, “इस मुलाक़ात का बस एक ही मक़सद है कि अगर 2024 में नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करना है तो विपक्ष को एक साथ आना होगा. नीतीश एक महीने से इसी कोशिश में लगे हैं.”

इस मुलाक़ात में 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद आरजेडी और कांग्रेस के बीच बनी दरार को पाटने की भी कोशिश हो सकती है. दरअसल आरजेडी के कुछ नेताओं ने बिहार में 2020 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन की हार के लिए कांग्रेस पर भी आरोप लगाए थे.

उस वक़्त गठबंधन में कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं जबकि वो महज़ 19 सीटों पर ही जीत पाई.

जेडीयू लगातार नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के पद के लिए प्रोजेक्ट करने में लगी हुई है, हालांकि नीतीश लगातार इससे इनकार कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस ऐसी किसी भी कोशिश में अब तक नीतीश के साथ पूरी तरह खड़ी नज़र नहीं आती है.

दूसरी तरफ़ नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए लगातार विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश में हैं.

एकजुटता कब तक बनी रहेगी ?

सीएसडीएस के संजय कुमार बताते हैं, “फ़िलहाल इस तरह की मुलाक़ात में आपको सबकुछ अच्छा ही दिखेगा. क्योंकि इसमें केवल एक साथ आने की बात होगी. इस तरह की एकता में नेता कौन होगा, कौन-सी पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी और कौन किस सीट से चुनाव लड़ेगा, ऐसे मुद्दों पर फ़िलहाल कोई चर्चा नहीं होगी.”

संजय कुमार का मानना है कि विपक्ष की एकता को लेकर अभी तो सबकुछ सही होता दिखेगा लेकिन चुनाव आते ही इसमें दरार दिखनी शुरू हो सकती है.

क्षेत्रीय दलों की राजनीति
मौजूदा समय की भी बात करें तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव कांग्रेस को भाव न देने के मूड में दिखते हैं.

वहीं रविवार (25 सितंबर) को हरियाणा के फ़तेहाबाद में पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती मनाई जा रही है. इस रैली को इंडियन नेशलन लोकदल के ओम प्रकाश चौटाला की तरफ़ से विपक्ष को एक मंच पर लाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

उनके पिता चौधरी देवीलाल भी 1977 में आपातकाल के बाद एक दशक से ज़्यादा समय तक विपक्ष को एकजुट करने में लगे रहे थे.

ओम प्रकाश चौटाला ने इसमें अखिलेश यादव, एच डी देवगौड़ा, प्रकाश सिंह बादल, फ़ारूक़ अब्दुल्लाह, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव और शरद पवार जैसे विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया. लेकिन कांग्रेस की तरफ़ से इसमें किसी को नहीं बुलाया गया.

पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफ़ेसर डीएम दिवाकर का कहना है कि क्षेत्रीय दलों का जन्म ही कांग्रेस के ख़िलाफ़ हुआ है. ऐसे में ममता, केसीआर या बाक़ी कोई दल कांग्रेस का विरोध करे तो कोई हैरानी की बात नहीं है.

डीएम दिवाकर कहते हैं, “नीतीश कुमार की राजनीति पर ध्यान दें तो वो संवाद बनाए रखते हैं. उन्होंने पहले भी कांग्रेस पर कोई तीखा हमला नहीं किया है. उनको पता है कि फ़िलहाल केंद्र की राजनीति में विपक्ष की तरफ़ जो सन्नाटा है उसमें नीतीश अपनी जगह बना सकते हैं.”

डीएम दिवाकर का मानना है कि इसमें आरजेडी भी नीतीश का समर्थन कर सकती है क्योंकि अभी उसका एक ही मक़सद है कि नीतीश को केंद्र की राजनीति में भेज दें और नीतीश बिहार की राजनीति को आरजेडी के लिए छोड़ दें.

नीतीश-सोनिया मुलाक़ात जेडीयू के लिए कितनी अहम

जेडीयू नेता केसी त्यागी का कहना है कि हरियाणा में कांग्रेस और लोकदल के बीच टकराव की वजह से कांग्रेस को इससे बाहर रखा गया है लेकिन ‘इससे हमें ज़्यादा मतलब नहीं है, हम वहां देवीलाल जी की जयंती मनाने जा रहे हैं.’

जेडीयू फ़िलहाल सोनिया और नीतीश कुमार के बीच मुलाक़ात को महज़ एक शिष्टाचार भेंट बता रही है.

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा, “नीतीश कुमार जी ने पहले ही कह दिया है कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं बनना चाहते, बल्कि वो केवल विपक्षी एकता के झंडाबरदार बनना चाहते हैं.”

“इसलिए बिहार में सरकार बनवाने में मदद करने वाली सभी सात पार्टियों के नेताओं से सबसे पहले मिलने निकले थे. उस वक़्त सोनिया गांधी देश में नहीं थीं, इसलिए नीतीश जी अभी मिलने जा रहे हैं.”

हालांकि केसी त्यागी का कहना है कि ज़ाहिर तौर पर इसमें राजनीतिक चर्चा भी होगी, 2024 के लोकसभा चुनावों में अब ज़्यादा वक़्त नहीं है और 2024 हमारे एजेंडे में है.

वहीं डीएम दिवाकर का मानना है कि बीजेपी ने अरुणाचल और मणिपुर में जेडीयू को जिस तरह से ख़त्म कर दिया है, उससे नीतीश की नाराज़गी और बढ़ी है. हाल ही में अरुणाचल और मणिपुर के जेडीयू के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसलिए नीतीश बिहार में अपनी पार्टी को बचाने के लिए आरजेडी और कांग्रेस को नहीं छोड़ सकते.

बीजेपी का नीतीश पर हमला
इस बीच शुक्रवार को सीमांचल में एक जनसभा में बीजेपी नेता और गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला. अमित शाह ने आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री बनने के लिए बीजेपी को धोखा दिया है.

सीएसडीएस के संजय कुमार कहते हैं, “हम इसके अलावा कोई और अपेक्षा नहीं कर सकते. ज़ाहिर है अमित शाह नीतीश कुमार की आलोचना ही करेंगे.”

पूर्णिया की जनसभा में अमित शाह ने आक्रमक अंदाज़ में नीतीश कुमार को घेरने की कोशिश की थी.

संजय कुमार के मुताबिक़ बिहार में बीजेपी के पास अब और कोई रास्ता नहीं बचा है, वो अब आक्रमक तरीक़े से ही आगे बढ़ने की कोशिश करेगी, भले ही उसे वहां छोटा-मोटा साझेदार मिल जाए. लेकिन बिहार में अब बीजेपी को अकेले आगे बढ़ना होगा.

दूसरी तरफ़ अमित शाह की रैली पर जेडीयू ने कई सवाल खड़े किये हैं.

अमित शाह आख़िर सीमांचल ही क्यों गए?

जेडीयू नेता केसी त्यागी का कहते हैं “नीतीश कुमार ने सांप्रदायिकता के लिए सीमांचल में रैली की है. सीमांचल उनके एजेंडे के लिए फ़र्टाइल लैंड है.”

केसी त्यागी ने सवाल उठाया, “अमित शाह लोकनायक जयप्रकाश नारायण की भूमि क्यों नहीं गए, उन्हें जननायक कर्पुरी ठाकुर की जन्मभूमि समस्तीपुर जाना था. वो भगवान बुद्ध की धरती ‘गया’ जाते या सहरसा और मधेपुरा जाते जहां बाढ़ आई हुई है. लेकिन उन्होंने सीमांचल को चुना, जो उनके एजेंडे में फ़िट बैठता है.”

बीजेपी की बात करें तो सीमांचल कई मायनों में उनके लिए ख़ास है. सीमांचल की कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज की चार लोकसभा सीटों में से केवल अररिया की सीट बीजेपी के पास है.

जबकि इसी इलाक़े की सीट किशनजंग पर 2019 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. बिहार की यही एकमात्र सीट कांग्रेस के पास है. जबकि इलाक़े की बाक़ी दो सीटों पर जेडीयू की क़ब्ज़ा है.

ख़ास बात यह है कि सीमांचल की सीटों पर मुस्लिम वोटर काफ़ी असर रखते हैं. ऐसे में अगर बीजेपी हिन्दू वोट बैंक को अपनी तरफ़ खींचकर अपना जनाधार इस इलाक़े में बढ़ाने में सफल होती है तो इसका असर बिहार की कई सीटों पर हो सकता है.

दूसरी तरफ़ नीतीश कुमार को अपने ज़िद के लिए जाना जाता है. इस ज़िद के दम पर अगर वो अपने मक़सद में थोड़े-बहुत भी कामयाब होते हैं तो बिहार से लेकर दिल्ली तक वो बीजेपी की राह मुश्किल करने की कोशिश करेंगे.

बिहार में अमित शाह की रैली के बाद जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने मीडिया से बात करते हुए दावा किया है, ”बिहार बीजेपी मुक्त भारत का केंद्र बनेगा.”

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चंदन कुमार जजवाड़े
बीबीसी संवाददाता