साहित्य

बैठी हूं ख़ामोशियां ओढ़कर बस इंतज़ार तेरा है : प्राची मिश्रा की रचना पढ़िये

Prachi Mishra
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बैठी हूं खामोशियां ओढ़कर
बस इंतजार तेरा है
आ भी जाओ वो कहानियां लेकर
जिन किस्सों में हक बस मेरा है
तुम न आए तो ये रात कैसे ढलेगी
कैसे आएगी सुबह,कब तक शमा ये जलेगी
आ भी जाओ ओस की डोलियां लेकर
तुमसे रात तुम्हीं से मेरा सवेरा है
बात की डोर तुम थाम लेना जरा
इक सिरा मुझसे तुम बांध लेना जरा
आ भी जाओ धड़कन की चिमनियाँ लेकर
तुम बिन दिल बड़ा घनेरा है
भूली बिसरी एक प्रेम कहानी
यादों में उलझी एक प्रेम दिवानी
आ भी जाओ फिर वो नादानियाँ लेकर
बीती बातों में सुकून मेरा है।
© प्राची मिश्रा

Prachi Mishra
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वो रेखा तेरे मेरे बीच की बड़ी महीन सी
जाने कब से थी खिंची फिर भी विलीन सी
न की पार हमने कभी न की पार तुमने कभी
हो गई है मूरत प्रेम की कुछ कुछ मलीन सी
वो रेखा तेरे मेरे बीच की बड़ी महीन सी
© प्राची मिश्रा

Prachi Mishra
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मेरी खिड़की के पर्दों से
बड़ी जद्दोजहद करके
कभी इधर तो कभी उधर से
इक छोटी किरण झांकती है
हल्की उम्मीद जागती है।