बेणेश्वर धाम का इतिहास आदिवासियों का कुम्भ कहे जाने वाला बेणेश्वर मेला राजस्थान के डूंगरपुर में लगता हैं. बेणेश्वर देश में आदिवासियों के बड़े मेलों में से एक हैं जहाँ बड़ी संख्या में लोग आते हैं. माही, सोम व जाखम नदियों के संगम पर माघ शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता हैं. जो डूंगरपुर शहर से 38 किमी की दूरी पर हैं.आज के इस लेख में हम बेणेश्वर धाम और मेले के बारे में जानकारी दे रहे हैं.
बेणेश्वर धाम का इतिहास
अंग्रेजी महीनों के अनुसार फरवरी माह में बेणेश्वर का मेला भरता हैं. मेले के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता हैं.
राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा गुजरात राज्यों से बड़ी संख्या में भील व आदिवासी समुदाय के लोग आते हैं. आदिवासियों के मुख्य संत मावजी हैं जिन्हें इस दिन विशेष रूप से याद किया जाता हैं.
मेले के दौरान बाणेश्वर महादेव का मंदिर सुबह पांच बजे से रात के 11 बजे तक खुला रहता है. सुबह के समय शिवलिंग को स्नान कराने के बाद केसर का भोग लगाया जाता है और उसके आगे जलती अगरबत्ती की आरती की जाती है.
शाम को लिंग पर ‘भभुत’ (राख) लगाया जाता है और महीन बाती वाला दीपक जलाकर आरती की जाती है। भक्त गेहूं का आटा, दाल, चावल, गुड़, घी, नमक, मिर्च, नारियल और नकदी चढ़ाते हैं.
बाणेश्वर मेले में भाग लेने वाले भील हर रात अलाव के आसपास बैठकर ऊंची आवाज में पारंपरिक लोक गीत गाते हैं. कल्चरल शो का आयोजन कबीले के युवाओं द्वारा किया जाता है। कार्यक्रम में भाग लेने के लिए ग्रामीणों के समूहों को भी आमंत्रित किया जाता है.