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#बेटा_पढ़_ले…… By – #मुकेश_शर्मा

Lekhak Mukesh Sharma
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#बेटा_पढ़_ले #मुकेश_शर्मा

हम जब बालक थे तब ग्रामीण अंचल में पढ़ाई का महत्व कलेक्टर बनने का नहीं था।माता-पिता बच्चे को अधिकारी बनाने का सपना नहीं देखते थे।किसान और मजदूर के लिए पढ़ाई का महत्व जो हमने सुना कि,-“बेटा पढ़ ले,ज्यादा नहीं तो इतना पढ़ ले कि बस के नंबर देख सके।” अब आपको इस वाक्य की पीड़ा समझना आसान नहीं क्योंकि मोबाइल की इस दुनियाँ में बस के नंबर तो हर व्यक्ति पहचानने लगा है।तब इस शब्द की कीमत इतनी थी कि यह सिविल परीक्षा देने जितना भार था।यदि मैं कहूँ कि आज भारत उसी मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है तब यह अतिशयोक्ति न होगी।हर युग में शिक्षा का दौर भिन्न होता है।इस टेक्नोलॉजी के युग में शिक्षा करवट बदल रही है।

एक दौर था जब हम चीज (वस्तु, यहाँ अपने खाने के लिए टॉफी, लेमनचूस, दालसेव इत्यादि वस्तुओं से है।) लाने के लिए झोली (शर्ट के निचले हिस्से) में अनाज भरकर ले जाते थे और उधर से लेमनचूस चूसते हुए आते थे।कभी-कभार लड़कियों व महिलाओं के साथ पिचकुट्टा (कंकड़ के टुकड़ो से खेला जाने वाला खेल) खेलने बैठ जाते थे।बग्गौर (भैंसा बाँधने वाला खेल जिसमें बीस छोटी कंकड़ी और चार बड़ी कंकड़ी से खेला जाने वाला खेल) खेलने बैठ जाते थे।अपने गाँव के पड़ोसी चंपत बाबा को हराने के लिए हम दूसरे मुहल्ले में यह खेल सीखने जाते परन्तु हरा नहीं पाये।गाँव वाले भी मक्का देकर चावल बदलते थे क्योंकि हमारे यहाँ चावल नहीं होते थे।ये सब दौर हैं जो बदलते रहते हैं।संसार में स्थायी कुछ नहीं तब शिक्षा का वह पुस्तकी ज्ञान अब आभासी इंटरनेट की दुनियाँ में प्रवेश कर चुका है।

वे सारे दौर अब बदल चुके हैं और अब तो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी अपने पिता को ये बताते मिल जायेंगे कि ,-“पापा, किसी को ओ.टी.पी मत देना अन्यथा कोई बैंक खाली कर देगा।” एक ही झटके में शिक्षा का यह दौर बदल सा गया है।अब बच्चे भले ही इंटरनेट का लुत्फ उठा रहे हों हमारे भू०पू० संचार मंत्री श्री रामविलास पासवान जी को फोन चलाना नहीं आता था।यह दौर दूसरा है वह दौर दूसरा था।अभी कुछ समय पूर्व फोन में पासवर्ड लग जाता था तब कंपनी से PUK नंबर माँगकर खोलते थे।आखिर इतना सब लिखने के पीछे कारण क्या है यह समझने वाली बात है।

आगामी दौर AI का दौर होगा।आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जिसका प्रयोग 2024 के चुनाव में होने की संभावना है।यह इंटरनेट की दुनियाँ में सबसे धोखेबाज प्रयोग है जिसके माध्यम से रोते चेहरों को हँसाना और हँसते को रुलाना आम बात होगी।गंजे को बाल और बाल वाले को गंजा करना इस टेक्नोलॉजी की खाशियत है।अब कौन कहाँ और किसके साथ खड़ा है यह पता लगाना आम आदमी को आसान न होगा।जब चुनावों में ऐसे मैसेज सर्कुलेट होंगे और उनकी सच्चाई पता लगेगी तब तक तो वायरल करने वालों की दुनियाँ लाखों मतदाता को गुमराह कर चुकी होगी।इसलिए अब इस दौर को समझना बेहद आवश्यक है।

2024 से मानो इसका सूत्रपात यदि हो गया तब यह ओ.टी.पी से बहुत आगे निकल जाने वाला माध्यम है जहाँ न शिक्षा काम आयेगी न जागरूकता काम आयेगी।इससे बचने के लिए हमें ध्यान लगाकर खामोश बैठना होगा।ऐसे मानकर चलो कि आप दसवीं मंजिल पर हो और भूकंप आ जाये तब स्वयं को बचाने का प्रयत्न ही आपकी जान का दुश्मन बन जायेगा।इसलिए इस परिस्थिति से निकलने के लिए एक सेकण्ड में स्वयं को फर्श पर गिराकर ध्यान लगा लो क्योंकि अब आपके हाथ में कुछ नहीं।यहाँ भी ऐसी कोई भी आपत्तिजनक विडियो, फोटो या अन्य सामिग्री हो तो उसे तत्काल मिटा दो ताकि वह कहीं जज्बातों में आपसे सर्कुलेट न हो जाये।आप नहीं जानते कि वह वास्तविक है, पुरानी है या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा निर्मित है लेकिन इतना आपको समझना होगा कि ऐसी विषयवस्तु का आपके पास आना कोई उद्देश्य अवश्य दिखाता है।

बस हमें अब स्वयं पर नियंत्रण रखने की कला सीखनी है और बिना भेदभाव के स्वयं को वार्तालाप करके जागृत करना है।दुनियाँ को जगाने की ठेकेदारी का अब दौर समाप्त हो गया है इसलिए किसी को जगाने के लिए अपने शब्दों का प्रयोग करें किसी के संदेश फॉरवर्ड करने से बचें।ऐसा करने से यदि आप भ्रामक जानकारी के प्रसार में उलझ गये तब पुलिस प्रशासन आपको तगड़ी नसीहत देगा।स्वयं को संदेश फॉरवर्ड करने से रोकें यही आभासी दुनियाँ के इस युग से बचाव है।प्रचार ऑडी का नहीं होता मारूती का होता है नसीहत गरीब को दी जाती है अमीर सुनेगा नहीं इसलिए आप स्वयं को अमीर मानकर जीवन जीएं और स्वयं पर नियंत्रण रखें।