साहित्य

बुढ़िया बुआ, घर में सबसे बड़ी थीं बुआ!

अरूणिमा सिंह
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बुढ़िया बुआ!

घर में सबसे बड़ी थीं बुआ!
बुआ हमारी नहीं बल्कि बाबू जी की बुआ हैं इसलिए जब तक हमें समझदारी आई बुआ बुजुर्ग हो गई थी।
उनकी झुकी कमर, दांत विहीन पोपले मुंह और धवल बालों को देखकर हम सभी बच्चे उनको बुढ़िया बुआ कहते थे क्योंकि हमारी बुआ तो इनकी बेटी थी।
तीन भाइयों की इकलौती बुआ सबसे बड़ी थीं। ये बाबा जी के काका की इकलौती संतान थी।

तीन भाई, तीन भौजाई, पांच भतीजे, पांच भतीजा बहु दस पोतियों और छः पोतों से भरा पूरा बुआ का नईहर है।
तीनों भाई लोग तो अपनी आयु पूरी करके गोलोक निवासी हो गए, दो भौजी भी चली गई, छोटी भौजाई हैं जो हर छोटे बड़े कार्यक्रम में अपनी दीदी को बुलाती हैं।

उनकी दीदी भी अपने सारे शारीरिक दुःख भूल कर तुरंत आती हैं।
शरीर में भले दम नहीं है लेकिन नइहर आते ही बुआ में गजब की फुर्ती आ जाती है। भौजाई के हिस्से के कामों में हाथ बांटने लगती हैं। आजी भी बुआ के आते ही एकदम भोली बन जाती हैं और हर छोटी बड़ी बात में बुआ से सलाह लेती हैं।

दीदी तब ई कमवा कईसे करी?
बुआ फिर हुलस कर बड़े तरीके से आजी को सब समझाती हैं कि माई इहिका अइसे करत रहीं, फलां काम वैसे होत रहा।
हम बच्चे बुआ को छेड़ छेड़ कर परेशान करते रहते और बुआ हंसती रहती थीं।

जाते समय आजी बुआ के पसंद की बढ़िया रंग वाली सूती धोती, कमीज, साया साथ में पता नहीं क्या क्या बांध देती और बुआ आजी को निहारती रहतीं थीं क्योंकि आजी के अस्तित्व से ही तो बुआ को अपने नइहर होने का एहसास होता है।

इस नवरात्रि में जब घर गई थी तो आजी ने अपनी सभी सखियों को इकट्ठा कर रखा था।

मेरे पास समय कम था इसलिए एक दिन गई दूसरा दिन रुककर सबसे मिली और तीसरे दिन वापस आ गई थी।

बुआ को यूं मक्खन निकालते देखा तो उनकी तस्वीर किल्क कर लिया और जब बुआ को दिखाया तो फोटो देखकर बुआ के मुख पर जो मधुर मुस्कान आई थी वर्णन नहीं कर सकती।

मां से बात हो रही थी तो हमने यूं ही घर के रिश्तेदारों के बारे में पूछना शुरू किया कि _मां फलां गांव से अपना कौन सा रिश्ता है, उस गांव में कौन से रिश्तेदार रहते हैं?

मां बता रही थीं कि तुम्हारे बाबा के मामा का घर है, फलां गांव में उनकी मौसी थीं, फलां जगह आइया की बहन थीं।

ये सारे वो रिश्ते हैं जो कई पीढ़ी पुराने हो गए हैं और फिर भी अभी संभाले हुए हैं। हर कार्यक्रम में बराबर आना जाना होता है। जब मां ने रिश्ते संभाल रखें तो हमें भी जानना चाहिए ताकि आगे हम सब भी निभा सकें।

पुराने लोग, पुराने रिश्ते हमारे लिए आशीर्वाद हैं जिसका मिलना हमारा सौभाग्य होता है।

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अरूणिमा सिंह